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Updated: 15 अगस्त, 2021 10:56 AM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत में लंबे समय से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आबादी की जातिगत मतगणना की मांग की जा रही है. लेकिन, फिलहाल इसके पूरा होने की संभावना नही है. लेकिन, इसके बावजूद बीते कुछ दिनों में बिहार और उत्तर प्रदेश के क्षत्रपों समेत कई पार्टियों ने 2021 में प्रस्तावित राष्ट्रीय जनगणना में ओबीसी समुदाय की जातिगत जनगणना (Caste Census) की मांग को दोहराया है. मानसून सत्र में 127वें संविधान संशोधन कानून के पारित होने के बाद जातिगत जनगणना की इस मांग ने और जोर पकड़ा है. हाल-फिलहाल में जातिगत जनगणना का मुद्दा सबसे पहले बिहार में आरजेडी ने उठाया. वहीं, एनडीए में शामिल नीतीश कुमार की जेडीयू भी इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के साथ खड़ी नजर आई.

127वें संशोधन कानून में राज्यों को ओबीसी की सूची बनाने का अधिकार दिए जाने के साथ ही तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों ने इसकी मांग की है. YSRCP और बीजेडी जैसे दल जो कई मुद्दों पर भाजपा के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं, वो भी जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा में और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने तो आरक्षण की कैप को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ाने की मांग कर दी है. 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ साझा विपक्ष की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दलों को जातिगत जनगणना के तौर पर एक बड़ा मुद्दा मिल गया है. वैसे, देश में हर दस वर्ष में होने वाली जनगणना में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों की गणना होती है. लेकिन, इस बार ओबीसी समुदाय के आंकड़ें भी सावर्जनिक करने की मांग पुरजोर तरीके से उठाई जा रही है.

बीते कुछ वर्षों में भाजपा की राजनीति काफी हद तक ओबीसी केंद्रित नजर आई है.बीते कुछ वर्षों में भाजपा की राजनीति काफी हद तक ओबीसी केंद्रित नजर आई है.

मोदी सरकार की ओबीसी केंद्रित राजनीति

विपक्षी दलों की इस मांग का सबसे बड़ा कारण है कि बीते कुछ वर्षों में भाजपा की राजनीति काफी हद तक ओबीसी केंद्रित नजर आई है. मानसून सत्र में मोदी सरकार (Modi Government) ने 127वें संविधान संशोधन कानून के तहत राज्यों को ओबीसी लिस्ट (OBC List Bill) तैयार करने का अधिकार देकर अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को अपने साथ बनाए रखने की भरपूर कोशिश की है. अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इस संविधान संशोधन का असर देखने को मिल सकता है. वहीं, इससे पहले मोदी सरकार ने मेडिकल शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के उम्मीदवारों के लिए केंद्रीय कोटे से आरक्षण (Reservation) की व्यवस्था की थी.

मोदी सरकार के हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में भी ओबीसी मंत्रियों की संख्या ने भी काफी हद तक साफ कर दिया कि भाजपा अब पूरी तरह से अन्य पिछड़ा वर्ग को शीशे में उतारने के प्रयास कर रही है. दरअसल, हिंदुत्व (Hindutva) की राजनीति करने वाली भाजपा ने लोगों को जाति से इतर धर्म के नाम पर एक साथ लाने की कोशिश की. और, वो इसमें कामयाब होकर 2014 और 2019 में नया कीर्तिमान भी स्थापित कर चुकी है. भाजपा ने जातिगत राजनीति करने वाली पार्टियों के वोट बैंक कहे जाने वाले दलित और ओबीसी समुदाय में भरपूर सेंध लगाई है. इसमें भी खास तौर से भाजपा का ओबीसी जनाधार बढ़ा है. नरेंद्र मोदी खुद भी ओबीसी समुदाय से आते हैं, तो उनकी इस छवि का भी भाजपा को भरपूर लाभ मिला है.

2015 में आरएसएस के बयान से हो चुका है नुकसान

2015 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण को लेकर दिए गए बयान के बाद बिहार की चुनावी राजनीति अचानक बदल गई थी. बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त मोहन भागवत ने कहा था कि आरक्षण पर विचार करने का फिर से समय आ गया है. आरक्षण की जरूरत और उसकी समय सीमा पर एक समिति बनाई जानी चाहिए. भागवत के इस बयान को आरक्षण विरोधी माना गया और डैमेज कंट्रोल की कोशिशों के बावजूद भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. यही कारण है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आरएसएस के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि आरएसएस आरक्षण का 'पुरजोर समर्थक हैं. उन्होंने आरक्षण को एक 'ऐतिहासिक जरूरत' बताते हुए कहा कि जब तक समाज का एक खास वर्ग 'असमानता' का अनुभव करता है, तब तक आरक्षण जारी रखा जाना चाहिए. आरक्षण को लेकर समय-समय पर संघ की ओर से बयान आते रहते हैं, जिस पर विपक्षी दलों की ओर से संघ और भाजपा को आरक्षण विरोधी घोषित किया जाता रहा है.

जातिगत जनगणना पर विपक्ष के जोर देने की वजह क्या है?

भारत में आरक्षण एक ऐसा विषय है, जिसका तमाम राजनीतिक दल एक सुर में समर्थन करते नजर आते हैं. चाहे वो सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण हो या 127वें संविधान संशोधन कानून के तहत राज्यों को ओबीसी जातियां तय करने का अधिकार देने का मामला ये इकलौता ऐसा मुद्दा है, जिस पर सियासी पार्टियां अपनी असहमतियों को किनारे रखते हुए एक साथ खड़ी हो जाती हैं. जातिगत जनगणना को लेकर भी कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा है. भाजपा नीत एनडीए में शामिल अपना दल और निषाद पार्टी भी जातिगत जनगणना के पक्ष में खड़े नजर आते हैं. वहीं, जेडीयू, आरजेडी, समाजवादी पार्टी जैसे क्षत्रपों की राजनीति पूरी तरह से एक जाति विशेष पर केंद्रित है. हालांकि, ये सभी दल पूरे ओबीसी समुदाय की राजनीति करने का दावा करते हैं. दरअसल, इन तमाम पार्टियों के नेता अन्य पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं. इन पार्टियों के अनुसार, देश में ओबीसी की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है और समुदाय को आबादी के लिहाज से शिक्षा, रोजगार और अन्य संसाधनों में सही प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. दरअसल, जातिगत मतगणना से इतर विपक्षी दलों के पास भाजपा के सामने टिकने के लिए कोई प्रभावी मुद्दे नजर नहीं आते हैं.

भाजपा ने देश में हिंदुत्व के बलबूते पर तमाम जातियों को एक किया है. इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए विपक्ष के पास जातिगत जनगणना ही एकमात्र हथियार है. जातिगत मतगणना के बाद भाजपा का हिंदू वोट बैंक जातियों में बंट जाएगा. भाजपा ये कभी नहीं चाहेगी कि जिन जातियों को वो 2014 में हिंदुत्व के नाम पर एक साथ लाई, वो जाति में बंटकर उसे सत्ता से बाहर कर दें. अब तक के सभी चुनावों में भाजपा ने जातिगत राजनीति को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से कमजोर किया है. अगर देश में जाति आधारित राजनीति बढ़ती है, तो भाजपा के हाथ से सत्ता की चाभी गिर सकती है. जातिगत जनगणना से विपक्षी दलों को भाजपा पर हावी होने का मौका मिल जाएगा. अगर विपक्षी दल इस मुद्दे को ठीक तरह से उठा ले जाते हैं, तो भाजपा की राजनीति ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढह जाएगी.

तुरुप का पत्ता साबित हो सकती है रोहिणी आयोग की रिपोर्ट

मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस जी. रोहिणी की अगुवाई में चार सदस्यीय एक आयोग का गठन किया था. दरअसल, ऐसी शिकायतें सामने आती रही हैं कि ओबीसी की लिस्ट में शामिल कुछ प्रभावशाली जातियां ही आरक्षण का लाभ उठा रही हैं और अन्य जातियों को समान रूप से इसका लाभ नहीं मिल रहा है. इस आयोग को जिम्मेदारी दी गई है कि ये देखे कि ओबीसी लिस्ट में शामिल कौन सी जातियां अबतक इसका पूरा लाभ उठा पाने से वंचित रह गई हैं. रोहिणी आयोग का कार्यकाल 31 जुलाई, 2021 तक बढ़ाया गया. जानकारी के अनुसार, रोहिणी आयोग ओबीसी कोटे को चार उप-श्रेणियों में विभाजित करने पर चर्चा कर चुका है. आयोग ने इन चारों श्रेणियों में से पहली को 2 फीसदी, दूसरी को 6 फीसदी, तीसरी को 9 फीसदी और चौथी को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव तैयार किया है. अगर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट सामने आ जाती है, तो जातिगत जनगणना का भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एकमात्र हथियार कमजोर पड़ सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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