राष्ट्रवाद जगाने के लिए "भारत माता" का मेकओवर और अपग्रेड
आज जो हालात हैं उनमें राष्ट्रवाद की अवधारणा बिन भारत माता के अधूरी है. लेकिन जब हम तर्क की दृष्टि से भारत मां को देखते हैं तो मिलता है कि, राष्टवाद की फील को गाढ़ा करने के लिए राजनीति द्वारा समय समय पर भारत माता को अपग्रेड किया गया है.
-
Total Shares
अधिकांश लोगों का मत है कि राष्ट्रवाद या राष्ट्रवाद की अवधारणा एक बेहद व्यक्तिगत विषय है. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि, यदि व्यक्ति में राष्ट्रवाद है तो उसके लिए ये आवश्यक है कि वो समय-समय पर उसका प्रदर्शन करता रहे. इस बात को आप सत्ताधारी पार्टी भाजपा के सन्दर्भ में रख कर देखिये. भाजपा और उसके कार्यकर्ता लगातार यही कह रहे हैं कि व्यक्ति को 'भारत माता की जय'. 'वन्दे मातरम्' का उद्घोष करने में जरा भी कोताही नहीं बरतनी चाहिए.
राष्ट्रवाद हमेशा भारत जैसे देश में एक अहम बिंदु रहा है
बात भजपा बनाम राष्ट्रवाद, भारत माता और उसकी जय पर हो रही है तो हमें ये समझना होगा कि शांत और बेहद साधारण ही दिखने वाली अबनिन्द्रनाथ टैगोर की भारत माता को क्यों एक ऐसी भारत माता में परिवर्तित किया गया जिसके हाथ में शस्त्र थे, जो सिंह पर सवार है. जब हम अबनिन्द्रनाथ टैगोर की भारत माता को देख रहे हैं तो मिल रहा है कि टैगोर की भारत माता भगवा वस्त्र धारण किये हुए हैं. जिनके हाथ में माला, घास, सफ़ेद कपड़ा और पांडुलिपियां हैं. भारत माता के इस रूप पर बुद्धिजीवियों का मत है कि, पांडुलिपि और माला इस बात का बोध कराते हैं कि व्यक्ति को आध्यात्मिक रहना चाहिए जबकि घास कृषि को दर्शा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और सबसे अंत में सफ़ेद कपड़ा शांति का बोध कराता है.1905 में अबनिन्द्रनाथ ने कुछ यूं की थी भारत माता की कल्पना
1857 से लेकर 2017 तक लगातार भारत मां का स्वरुप बदल रहा है या ये कहें कि इसके स्वरुप को परिवर्तित कर ये देखने का प्रयास किया जा रहा है कि भारत मां का कौन सा रूप व्यक्ति के अन्दर पनप रही राष्ट्रवाद की भावना के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा. इस बात को अपने इर्द गिर्द रख कर देखिये और सोचिये कई बातें खुद ब खुद साफ हो जाएंगी. सोशल मीडिया के इस दौर में जब चीजों को शेयर करने के उद्देश्य से किया जा रहा है और सभी इस दिशा में अपनी- अपनी तरह से अपना- अपना योगदान दे रहे हैं तो जाहिर है 'राष्ट्रवाद' अहम होगा. तो क्या अब ये मान लिया जाए कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रवाद में भी भारत माता के स्वरुप को सोशल मीडिया के हिसाब से अपग्रेड किया जा रहा है? या फिर भारत माता सोशल मीडिया तक सीमित हो चुकी हैं? इसपर 'जितने मुंह, उतनी बातें' की तर्ज पर तर्क कुछ भी हो सकते हैं. अबनिन्द्रनाथ टैगोर की भारत माता से 1905 में ही शोभा सिंह की भारत माता का मेकओवर. इस बात को अपने आप स्पष्ट कर देता है कि, न सिर्फ आज से बल्कि बहुत पहले से भारत माता को लेकर राजनीति होती चली आ रही है. और इसका मूल उद्देश्य व्यक्ति के 'खून में उबाल देना' और उसके अन्दर पनप रही राष्ट्रवाद की भावना को बाहर लाना है.
1905 में ही कुछ अंतराल के बाद भारत माता को कुछ इस तरह दर्शाया गया
शांत के मुकाबले उग्र व्यक्ति को क्यों आकर्षित करता है इसके पीछे मनोवैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं. फ्रायड से लेकर मुलर तक कई मनोवैज्ञानिकों का मत है कि शालीन आकृतियों पर हमारा दिमाग कम अभिक्रिया देता है. मगर जब इसे ऐसी चीजें दिखाई जाती हैं जो उग्र हों तब ये ज्यादा रियेक्ट करता है. ऐसा इसलिए भी होता है कि कहीं न कहीं हम मनुष्य 'सेंस ऑफ इनसिक्योरिटी' के अंतर्गत अपना जीवन निर्वाह करते हैं. कहा जा सकता है कि ये हमारी 'सेंस ऑफ इनसिक्योरिटी' ही है जिसने अबनिन्द्रनाथ टैगोर की शांत और सौम्य भारत माता को मजबूर किया शोभा सिंह की वो भारत माता बनने के लिए जो गुस्से में है, जिसका रूप उग्र है, जिसके हाथ में शस्त्र है जो शेर की सवारी करती है.
बीजेपी के अनुसार कुछ यूं दिखती हैं भारत माता
खैर, आम आदमी की भारत माता अलग है राजनीति की भारत माता अलग. कांग्रेस की भारत माता देखिये तो मिलेगा कि वो अपने पीछे तिरंगा लेकर सबके स्वागत के लिए बाहें फैलाए खड़ी है. तो वहीं बीजेपी के लिटरेचर में छपी भारत माता नक़्शे के दक्षिण में खड़ी हैं और सिंह पर सवार हैं और उनके हाथ में भगवा ध्वज लहरा रहा है. माना जा सकता है कि नेहरू से लेकर पटेल तक गांधी से लेकर सुभाष तक, जिसको जैसा समझ में आया उसने भारत माता को वैसे देखा.
नेहरू कुछ इस तरफ भारत माँ की छवि देखते थे
बहरहाल चूंकि भारत माता पर 18 वीं शताब्दी से चली आ रही राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही. अतः जाते- जाते आपको एक खबर से अवगत करा दें. खबर है कि चुनाव के मद्देनजर त्रिपुरा में भाजपा ने भारत माता का रूप बदल दिया है.त्रिपुरा में चुनाव तक, त्रिपुरा की भारत माता देश में किसी अन्य जगह पर दिखने वाली भारत माता से काफी अलग होगी. अगले साल त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी भारत माता का नया चित्रण कर रही है, इस नए रूप में भारत माता राज्य की पारंपरिक पोशाक पहने दिखाई देंगी. बताया जा रहा है कि त्रिपुरा के चार प्रमुख आदिवासी समुदाय जैसी पोशाक पहनते हैं, ठीक उसी तरह की पोशाक पहने भारत माता को भी दर्शाया जाएगा.
चुनावों के मद्देनजर त्रिपुरा में कुछ यूं दिखेंगी भारत माता
भारत माता के इस नए रूप पर बीजेपी का तर्क है कि. 'इस क्षेत्र का आदिवासी समुदाय सालों से खुद को देश से अलग महसूस करता आया है, इसलिए इसे खत्म करने के लिए यह कदम उठाया गया है. यहां की जनता भी भारत का हिस्सा है और भारत माता उनके लिए भी हैं. हर आदिवासी समुदाय की अपनी संस्कृति और अपनी पोशाक होती है, हम उन सभी का आदर करते हैं. गौरतलब है कि त्रिपुरा की कुल जनसंख्या का 77.8 फीसदी हिस्सा चार प्रमुख आदिवासी समुदायों का है. जिनमें देबबर्मा, त्रिपुरी / त्रिपुरा, रियांग को राज्य के 4 प्रमुख आदिवासी समुदायों में बांटा जा सकता है और किसी भी पार्टी की जीत हार के लिए इन चारों समुदायों का वोट निर्णायक भूमिका अदा करता है.
उपरोक्त बातों और इस खबर को जानकार बस इतना कहा जा सकता है कि जहां एक तरफ भारत माता, उनकी छवि, उनका उद्घोष व्यक्ति के मन में पनप रही राष्ट्रवाद की भावना को दर्शाता है तो वहीं दूसरी तरफ ये पार्टियों के चुनाव जीतने का हथियार भी है. कहा जा सकता है कि आज के परिपेक्ष में जो इस हथियार को जितना ज्यादा सामने वाले को दिखाएगा वो चुनावी रण में उतना अधिक कामयाब माना जाएगा और भविष्य में भारत जैसे मजबूत देश की सत्ता में काबिज रहकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराएगा. हां वही इतिहास जिसमें ज्यादा फील लाने के लिए समय समय पर, समय की ज़रुरत के अनुरूप भारत माता के स्वरुप में बदलाव किया गया है और उसे हम देशवासियों के सामने लाया गया.
ये भी पढ़ें -
पतंजलि है देशभक्ति का नया आधार
भारत माता है, तो पाकिस्तान-बांग्लादेश मौसी?
‘भारत माता की जय’ गैर-इस्लामिक है, सहमत न हों तो भी समझिए
आपकी राय