बीजेपी और अखिलेश के मुकाबले कांग्रेस के प्रति माया मुलायम क्यों हैं
क्या कांग्रेस उन्हें उसी रास्ते पर चलते दिखाई दे रही है जो रास्ता खुद मायावती ने अख्तियार किया हुआ है - दलित, मुस्लिम और बोनस में ब्राह्मण.
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यूपी में हर रोज बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच मायावती के लिए ये तय करना मुश्किल हो रहा है कि उनका दुश्मन नंबर 1 कौन है? समाजवादी पार्टी है या बीजेपी? बीजेपी तो उन्हें झटके पर झटके दे रही है - पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और अब ब्रजेश पाठक. समाजवादी पार्टी के लोग तो मायावती को टारगेट करने का शायद ही कोई मौका चूकते हों.
कांग्रेस को लेकर वो या तो कंफ्यूज हैं या फिर अंदर ही अंदर कोई खिचड़ी पक रही है, जो 'चुनाव पूर्व कोई गठबंधन नहीं' के दायरे में फिट बैठती हो.
बुआ तो मत बोलो
आगरा की रैली में मायावती ने अपने लोगों को समझाया कि अखिलेश यादव का उन्हें बुआ कहना भी बुरा लगता है. मायावती ने कहा कि जिन मुलायम सिंह यादव ने उन पर हमले की साजिश रची उनके बेटे अखिलेश यादव किस हक से उन्हें बुआ बुलाते हैं? बाकी अखिलेश शासन में गुंडाराज और दलितों की दुश्मन सरकार जैसी बातें तो उनके भाषणों में रुटीन फीचर हैं.
बीजेपी और संघ को टारगेट करने के लिए मायावती को आगरा में मसाला आसानी से मिल गया. आरएसएस चीफ मोहन भागवत का वो बयान जिसमें वो कहते हैं हिंदुओं को बच्चे पैदा करने से रोकने वाला कोई कानून तो है नहीं, मायावती के लिए काफी था.
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मायावती ने भागवत को तो भला-बुरा कहा ही, लगे हाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लपेट लिया - 'बच्चे पैदा तो कर लोगे... खिलाओगे कहां से... खिला पाओगे?'
कांग्रेस शायद उन्हें उसी रास्ते पर चलते दिखाई दे रही है जो रास्ता खुद मायावती ने अख्तियार किया हुआ है - दलित, मुस्लिम और बोनस में ब्राह्मण.
सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय? |
तो क्या यही वजह है कि बीजेपी और समाजवादी पार्टी के मुकाबले मायावती कांग्रेस के प्रति ज्यादा मुलायम नजर आ रही हैं.
बूढ़ी महिला?
बीएसपी और कांग्रेस की ओर से दो बातें खास तौर पर सामने आ चुकी हैं. एक बीएसपी चुनाव से पहले किसी से गठबंधन नहीं करेगी और दूसरा, कांग्रेस मान कर चल रही है कि 100 सीटें भी मिल जाएं तो बात बन जाए. मायावती तो मान कर चल ही रही होंगी कि कांग्रेस किसी भी सूरत में सरकार बनाने की हालत में नहीं है - और खुद कांग्रेस को भी इस बात का पूरा अहसास है.
दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है, ऐसी खबरें आती रही हैं. कांग्रेस पहले इतनी सीटें मांग रही थी जो बीएसपी को मंजूर नहीं था - क्योंकि मायावती कम से कम इतनी सीटों पर चुनाव लड़ने की पक्षधर हैं कि संभव हो तो बहुमत बीएसपी के पास ही रहे. वैसे मायावती ये भी जानती होंगी कि फिलहाल कोई भी फॉर्मूला इतना कारगर नहीं है जिसमें बीएसपी के अकेले दम पर बहुमत की गारंटी हो.
जहां तक साथ होने का सवाल है तो समाजवादी पार्टी के साथ तो नामुमकिन था - और अब बीजेपी की हरकतों ने तो इन बातों पर विचार भी असंभव कर दिया है. बीजेपी ने जिस ब्रजेश पाठक को ताजा ताजा झटका है वो बीएसपी के ब्राह्मण पक्ष सतीश मिश्रा के बेहद करीबी बताए जाते रहे हैं. पाठक बीएसपी से 2004 से जुड़े हुए थे.
कांग्रेस की लाइन मायावती मौजूदा हालात में ज्यादा सूट करती लग सकती है. मायावती दलितों के साथ मुस्लिमों को जोड़ने के फॉर्मूले पर काम कर रही हैं. कांग्रेस भी इसी वोट बैंक में वापसी के लिए संघर्ष कर रही है. मुस्लिम वोट बैंक पर कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी भी दावेदार है. अगर किसी अंडरस्टैंडिंग के तहत मायावती कांग्रेस की मदद से मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी से छीन सकीं तो ये बड़ी उपलब्धि होगी.
जिस तरह तयशुदा है कि मुस्लिम वोट बीजेपी को नहीं मिलनेवाले, उसी तरह साफ है कि वे उसी को वोट देंगे जो बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने में मजबूत नजर आये. ये भी साफ है कि इसके लिए आखिरी वक्त तक इंतजार होगा. फिर मायावती और अखिलेश या फिर तब तक किसी चमत्कार के बूते कांग्रेस में से जो भी मुस्लिम समुदाय को यकीन दिला दे कि वो बीजेपी की सत्ता की राह में सबसे बड़ी दीवार है - वोट उसे मिलना पक्का है.
कांग्रेस के प्रति मायावती का मुलायम-अप्रोच उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार के विश्वास प्रस्ताव में तो दिखा ही, राज्य सभा के चुनाव में भी सभी ने देखा.
आगरा में भी तकरीबन ऐसा ही महसूस किया गया. मायावती, मुलायम और अखिलेश के साथ साथ भागवत और मोदी पर तो खूब बरसीं, लेकिन कांग्रेस में सिर्फ शीला दीक्षित तक सीमित रहीं - जिन्हें उन्होंने बूढ़ी महिला बताया. साथ ही, दिल्ली को बर्बाद करने वाली और अपनी गलतियां छिपाने के लिए यूपी-बिहार के लोगों पर गंदगी फैलाने का इल्जाम मढ़नेवाली महिला के रूप में पेश किया.
आगरा से शुरू हुआ मायावती की संडे रैलियों का सिलसिला दिवाली तक चलेगा. मायावती अब 28 अगस्त को आजमगढ़, 4 सितंबर को इलाहाबाद और 11 सितंबर को सहारनपुर में रैली करेंगी. इस क्रम में उनकी आखिरी रैली लखनऊ में 9 अक्टूबर को होने वाली है.
तो क्या उत्तराखंड और राज्य सभा चुनावों में बीएसपी की मदद के बदले कांग्रेस के साथ कोई डील हुई है? क्या बीएसपी यूपी में कांग्रेस के साथ कुछ सीटों पर फ्रेंडली मैच खेलने वाली है? कांग्रेस के पास अपने 25 सीट तो हैं ही - अगर उसे 75 और चाहिये तो क्या बीएसपी उसमें मददगार बनने वाली है?
मायावती की आगरा रैली पर गौर किया जाए तो अधपकी ही सही खिचड़ी की खूशबू जरूर फैल रही है, लेकिन अभी पक्के तौर पर भला कौन कह सकता है - 'सही पकड़े हैं.'
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