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Updated: 10 मार्च, 2016 04:51 PM
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स्पीकर सुमित्रा महाजन को भी पहली दफा बात शायद हजम नहीं हुई होगी - वैसे टीवी पर संसद की कार्यवाही देख रहे लोगों को तो सब अजीब ही लग रहा था. न शोर, न हंगामा - और न ही कोई बॉयकॉट.

लेकिन 8 मार्च को नजारा बिलकुल ऐसा ही था - अद्भुत था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर उस दिन सिर्फ महिला सांसदों को ही बोलने का मौका दिया गया था.

मुमकिन है!

आम दिनों की हालत देख कर लगता नहीं कि संसद की सुचारू कार्यवाही मुमकिन है. उस दिन का नजारा देख कर लगा कि वाकई मुमकिन है.

पार्टी लाइन से इतर महिला सांसदों का भाषण सुन लग रहा था जैसे लोकतंत्र का इससे खूबसूरत नजारा तो हो ही नहीं सकता. एक दूसरे पर कीचड़ उछालने की बजाए कोई इलाके की समस्या सामने रख रहा था तो कोई ऐसे मुद्दे उठा रहा था जो सबके लिए कॉमन हो. किसी को महिलाओं को असली आर्थिक आजादी की चिंता थी तो किसी को देश में लड़कियों की कम होती ताताद की फिक्र रही. एक ने घर में बेटियों की जगह बेटों से काम कराने की बात कही, तो दूसरे ने बहू को बेटी की तरह प्यार देने की सलाह दी.

प्रधानमंत्री की पहल

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते वक्त प्रधानमंत्री मोदी बोले, "स्पीकर ने देशभर की विधानसभाओं की महिला विधायकों का एक सम्मेलन रखा है... इसमें सभी दलों की महिला सांसदों एवं नेताओं ने पूरा सहयोग दिया है... यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा."

इसके साथ ही मोदी ने सदन के पटल पर मन की बात भी रख दी, "क्या हम यह तय कर सकते हैं कि 8 मार्च को महिला दिवस पर सदन में केवल महिला सांसद ही बोलें?"

आइडिया सबको अच्छा लगा - और स्पीकर की मंजूरी के साथ उस पर अमल भी हुआ.

महिला सम्मेलन की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने महिला आरक्षण की जोरदार वकालत की.

राष्ट्रपति की पहल

महिला सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा था, "ये राजनीतिक दलों का दायित्व है. उनकी प्रतिबद्धता कार्यरूप में अमल में आनी चाहिए."

उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी राजनीतिक पार्टियों से इस कानून के अमल में आने तक महिला उम्मीदवारों का नॉमिनेशन स्वेच्छा से बढ़ाने की वकालत की थी.

प्रधानमंत्री मोदी मौजूद तो उद्घाटन सत्र में भी रहे और राष्ट्रपति की बात को गौर से सुना भी, पर बोले वो समापन सत्र में. ये बात अलग है कि अपने भाषण में मोदी ने महिला आरक्षण का जिक्र तक न किया.

खुद को कर बुलंद इतना

समापन सत्र में मोदी ने बड़ा ही मोटिवेशनल लेक्चर दिया, "जनता के प्रतिनिधि के तौर पर अपनी स्वतंत्र इमेज डेवलप करने की कोशिश कीजिए. ये कोशिश करें कि आपके इलाके में आपकी अपनी छवि हो."

मोदी बोले, "आपको खुद को प्रभावकारी बनाना होगा. आपको तथ्यों और आंकड़ों के साथ मुद्दों को पेश करना होगा... अपना नेतृत्व स्थापित करने के लिए आपके पास विषयों का ज्ञान होना चाहिए."

अपनी बातों से शायद मोदी समझा रहे थे कि महिलाओं को आरक्षण की जरूरत नहीं है. मोदी ने कहा कि महिलाओं को तकनीकी तौर पर खुद को मजबूत बनाना चाहिए. इसके लिए उन्होंने तरीके भी सुझाए कि वे हमेशा तथ्यों और आंकड़ों से लैस रहें. किसी भी सूरत में आरक्षण की मोहताज न रहें. मोदी ने आरक्षण की बात तो नहीं की लेकिन बात बात पर लग रहा था जैसे वो खुद ही तथ्य और आंकड़े पेश कर बता रहे हों कि आरक्षण से महिलाओं का भला नहीं होने वाला.

जातीय आरक्षण पर आरएसएस चीफ मोहन भागवत के बयान पर भले जितना भी बवाल हुआ हो, महिला आरक्षण को लेकर वैसा नहीं होने वाला. महिला आरक्षण पर तकरीबन हर दल का रवैया एक जैसा ही रहा है. सत्तारुढ़ दल ने हमेशा खुद को महिला आरक्षण का पक्षधर लेकिन दूसरे दलों के आगे बेबस बताने की कोशिश की.

जेडीयू नेता शरद यादव ने तो यहां तक कहा था कि इस विधेयक के जरिए क्या आप 'परकटी महिलाओं' को सदन में लाना चाहते हैं? कभी समाजवादी पार्टी के सांसदों ने महिला बिल की कॉपी को लेकर छीनाझपटी की तो कभी आरजेडी सांसद ने स्पीकर से छीन कर बिल की कॉपी फाड़ डाली.

दादरी के मामले में महामहिम की बात को ही गाइडलाइन बताने वाले मोदी भी लगता नहीं कि महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की बात से इत्तेफाक रखते हैं.

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