क्या फेल हो जाएगी नीतीश की शपथ-डिप्लोमेसी?
मोदी ने जहां सार्क देशों के नेताओं को बुलाया, तो नीतीश ने विपक्ष के नेताओं और मुख्यमंत्रियों को बुलाया.
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कामयाबी का कोई एक कारगर नुस्खा नहीं होता. नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह से अच्छे दिन का स्लोगन ले लिया. नीतीश कुमार ने मोदी से उनकी कैंपेन स्टाइल लपक ली. दोनों अपने अपने हिसाब से कामयाब रहे - और शह मात के इस सियासी खेल में एक हद तक हिसाब भी बराबर हो गया.
ओथ-डिप्लोमेसी
नीतीश ने एक और मामले में मोदी की कॉपी की. ये थी 'शपथ-डिप्लोमेसी' यानी शपथ ग्रहण समारोह में तमाम नेताओं को न्योता. मोदी ने जहां सार्क देशों के नेताओं को बुलाया, तो नीतीश ने विपक्ष के नेताओं और मुख्यमंत्रियों को बुलाया.
सार्क देशों को लेकर मोदी की डिप्लोमेसी पाकिस्तान के मामले में अब तक कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई है. नीतीश की डिप्लोमेसी असम के मामले में अब नाकाम नजर आने लगी है.
पिछले अठारह महीने में मोदी ऐसे ऐसे मुल्क गये जहां कई दशकों से देश का कोई प्रधानमंत्री पहुंचा भी नहीं था, जैसा कि ढिंढोरा पीट पीट कर बताया जाता है. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने के लिए कई पहल की, लेकिन ले दे कर मामला वही रहा - ढाक के तीन पात. मोदी की ही तरह नीतीश ने भी अपने शपथग्रहण के लिए असम के प्रमुख विपक्षी नेता को भी एक खास मकसद से बुलाया था.
असम समझौता
नीतीश कुमार ने शपथग्रहण समारोह के लिए सिर्फ खास लोगों को ही खुद फोन किया था. खास लोगों में एक थे एआईयूडीएफ नेता बदरुद्दीन अजमल. नीतीश की कोशिश असम में सत्तारूढ़ कांग्रेस और एआईयूडीएफ यानी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को साथ लाने की रही. असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और बदरुद्दीन अजमल के अलग होने के चलते दोनों पार्टियां पिछले चुनाव अलग अलग मैदान में उतरीं. चुनाव में कांग्रेस ने जहां 126 सीटों में से 78 जीते वहीं एआईयूडीएफ को 18 सीटें मिलीं. ताजा हाल ये है कि कांग्रेस के नौ विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
लेकिन गोगोई और अजमल के रिश्तों में सुधार आने की गुंजाइश ही नहीं के बराबर दिख रही है. इसे लेकर दिल्ली से लेकर गुवाहाटी तक के कांग्रेस नेता परेशान हैं. गोगोई असम में बीजेपी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन तो चाहते हैं लेकिन उसमें अजमल का साथ उन्हें मंजूर नहीं है. ये नीतीश के लिए भी शर्मिंदगी जैसी स्थिति पैदा कर रही है. नीतीश के बुलाने पर ही अजमल उस कार्यक्रम में पहुंचे जिसमें गोगोई को भी शामिल होना था.
अब कांग्रेस की मुश्किल ये है कि गोगोई के नाम पर चुनाव लड़े तो सत्ता बचाना मुश्किल है. और गोगोई की जगह कोई और चेहरा उतारे तो रिस्क बढ़ जाता है.
नीतीश के लिए ये बड़ा झटका है. कहां वो महागठबंधन का विस्तार करते हुए राष्ट्रीय राजनीति में फिर से दस्तक और असम में एंट्री की तैयारी कर रहे थे - और कहां महागठबंधन का बिहार से बाहर खड़ा होना ही खटाई में पड़ता नजर आ रहा है.
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