राम मंदिर निर्माण पूरा होने की 'तारीख' सामने आने से विपक्ष में घबराहट क्यों है?
राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख और निधि समर्पण अभियान की शुरुआत ने सियासी हलकों में भूचाल ला दिया है. इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण 'तारीख' ही है.
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राम मंदिर आंदोलन के शुरू होने के साथ भाजपा-विरोधी एक सुर में भाजपा के नारे का मजाक उड़ाते हुए कहते थे- 'मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे'. अब जबकि राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की तिथि सामने आ गई है तो उन्हीं भाजपा-विरोधियों की सांस अटकने लगी है. विपक्षी दल यह मानकर बैठे हैं कि भाजपा मंदिर निर्माण 2024 के ठीक पहले पूरा करवाकर इसे आगामी लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाएगी.
राम मंदिर के लिए देशभर में श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान की शुरुआत 15 जनवरी को हो गई है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राम मंदिर के लिए सबसे पहला चंदा दिया. कोविंद ने 5,00,100 रुपये की धनराशि दान दी. इसी के साथ राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की तारीख भी सामने आ गई है. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने रायबरेली में हुए कार्यक्रम में 39 महीने के अंदर मंदिर बना देने का ऐलान कर दिया है. चंपत राय के अनुसार, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अयोध्या में राम मंदिर बन जाएगा. राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख सामने आते ही विपक्षी दलों में घबराहट फैला गई है.
2024 आम चुनाव से पहले हो जाएगा राम मंदिर निर्माण
कई दशकों पुराने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से ही राम मंदिर के लिए तैयारियां शुरू हो गई थीं. ट्रस्ट बनने के साथ ही राम मंदिर निर्माण को लेकर अन्य चीजें भी तय हो गईं. वहीं, अब राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख और निधि समर्पण अभियान की शुरुआत ने सियासी हलकों में भूचाल ला दिया है. इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण 'तारीख' ही है. कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने 'सुप्रीम फैसला' आने से पहले तक भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को लेकर हमेशा ही सवाल उठाए हैं. भाजपा, आरएसएस और अन्य हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं के नारे 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे' के आगे भाजपा विरोधी पार्टियों ने 'तारीख नहीं बताएंगे' का तुकांत जोड़ दिया था. यही 'तारीख' अब विपक्ष के गले की फांस बनती नजर आ रही है.
चेंजमेकर के रूप में स्थापित हुई भाजपा
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में लगातार दो बार बहुमत से ज्यादा सीटें पाकर भाजपानीत एनडीए की सरकार बन चुकी है. भाजपा अपने चुनावी घोषणा पत्र के कई बड़े और तथाकथित विवादित मुद्दों का हल निकाल चुकी है. लोग मानें या ना मानें, लेकिन वो चाहे तीन तलाक का मामला हो, कश्मीर से धारा 370 और 35A हटाने का मामला हो या शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून का, भाजपा ने खुद को 'चेंजमेकर' के रूप में स्थापित कर लिया है. सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद आतंकवाद को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति को लेकर शायद ही कुछ कहने की जरूरत पड़े. खैर, ये हुई भाजपा के घोषणा पत्र के वादों की बात, अब चलते हैं दूसरी ओर.
बन सकते हैं कई चुनावी समीकरण
भाजपा ने दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों में दस्तक देने के साथ अपनी भौगोलिक पहुंच के विस्तार की शुरुआत भी कर दी है. 2021 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और पुडुचेरी (केंद्रशासित प्रदेश) में विधानसभा चुनाव होने हैं. पश्चिम बंगाल में भाजपा सत्ता में आने के लिए हर सियासी समीकरण बनाने और रणनीतियां अपनाने में जुटी हुई है. पश्चिम बंगाल में 2011 के विधानसभा चुनाव में केवल 4 फीसदी वोट हासिल करने वाली भाजपा, 2016 के चुनाव में 10 फीसदी वोटों तक पहुंच गई. वहीं, 2019 लोकसभा चुनाव में चमत्कारिक प्रदर्शन करते हुए 40 फीसदी वोटरों का समर्थन हासिल कर लिया. ऐसे में इस साल होने वाली विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन पर सभी की निगाहें टिकी हैं.
असम में भाजपा और सहयोगी दलों के गठबंधन के सामने विपक्षी दलों के सामने अपनी सत्ता बचाने की चुनौती है. फिलहाल, वहां भाजपानीत एनडीए की सरकार मजबूत स्थिति में नजर आ रही है. दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ दें तो, भाजपा का तमिलनाडु और केरल में कोई खास जनाधार नजर नहीं आता है. लेकिन, स्थानीय चुनावों में भाजपा ने अपनी स्थिति थोड़ी-बहुत मजबूत कर ली है. 2016 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में महज चार सीटें हासिल करने वाली भाजपा ने बीते साल 48 सीटों पर अपना परचम लहराया है. इसे भाजपा की बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है. लेकिन, पार्टी को ऐसा प्रदर्शन आगे भी जारी रखना होगा.
राम मंदिर से बदल सकते हैं कई विधानसभा चुनाव के नतीजे
अब आते हैं सबसे खास बात पर, राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए जा रहे निधि समर्पण अभियान में 13 करोड़ परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है. निधि समर्पण अभियान 27 फरवरी तक चलाया जाएगा. इसके तहत भाजपा, विहिप और आरएसएस के कार्यकर्ता देशभर में घर-घर जाकर चंदा एकत्रित करेंगे. इस अभियान को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की घर-घर में पहुंच बनाने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है. खासकर हिंदी भाषी राज्यों में इस अभियान का व्यापक असर देखने को मिल सकता है. साथ ही 2024 के आम चुनाव से पहले हर साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर पड़ेगा. 2022 के फरवरी-मार्च में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे. इनमें उत्तर प्रदेश के अलावा चार राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होना है. वहीं, 2022 के नवंबर-दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे. यहां भी कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होना है. 2023 में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होंगे. ऐसे में राम मंदिर निर्माण की तारीख के ऐलान से विपक्ष की बेचैनी बढ़ना लाजिमी है.
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