पाकिस्तान के 4 नहीं 40 टुकड़े होंगे, 3 किमी फांसले पर बसे अटारी-वाघा में आटा-तेल की कीमत से यूं समझें
पाकिस्तान भारतीयों से घृणा और मजहब के आधार पर एक अलग देश बना था. भारत और पाकिस्तान के बीच तीन किमी दूरी में आटा-दाल की कीमतों से 74 साल बाद समझा जा सकता है कि वह फैसला कितना गलत था. भारत जरूर अमेरिका या चीन नहीं बन पाया, मगर जितना भी है पाकिस्तान नहीं जाने वाले अपने फैसले पर गर्व कर सकते हैं.
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पाकिस्तान की हालत पिछले दो साल से बहुत खराब है. पाकिस्तान की हालत जैसी है उसके लिए 'खराब' शब्द भी असल में मौजूदा सूरत-ए-हाल में एक साधारण शब्द है. वहां जिस तरह की स्थितियां हैं- उसे भयावहता का सर्वोच्च शिखर कहा जाएगा. बलूचिस्तान समेत तमाम इलाकों में पाकिस्तानी सरकार और सेना का अब कोई नियंत्रण ही नहीं रहा. जमीनी हकीकत यही है. पाकिस्तान पूरी तरह बिखर चुका है, दिवालिया हो चुका है, लेकिन घोषणा नहीं कर पा रहा. उसे लगता है कि आधिकारिक घोषणा करते ही पाकिस्तान के कई टुकड़े अस्तित्व में आ जाएंगे. जो छिपा रहा है- उसकी पोल खुल जाएगी. पिछले दो साल से पाकिस्तान इसे रोकने की भरसक कोशिश कर रहा है.
रोजमर्रा के जीवन में लोगों पर दबाव इतना बढ़ चुका है कि कभी भी अराजकता चरम पर होगी. लोग विद्रोह पर उतारू हैं और पाकिस्तान चाहकर भी उसे कंट्रोल नहीं कर सकता. क्योंकि लोगों को भूखे सोना पड़ रहा है. महंगाई इतनी ज्यादा है कि ज्यादातर लोग पेट भरने में असमर्थ हैं. वहां, गरीबों की हालत का अंदाजा क्या ही लगाया जाए. अच्छा ख़ासा मध्यवर्ग भी रसोईभर के खर्च को पूरा नहीं कर पा रहा है. भारतीय उपमहाद्वीप के पोषण (2400 कैलोरी) के लिहाज से महीनेभर एक व्यक्ति को 14,098 रुपये खर्च करना पड़ सकता है.
सिर्फ एक व्यक्ति के खाने भर का खर्च साफ़ बता रहा कि उसकी वहां हालात कितने खराब हैं. जिस परिवार में 10 या उससे ज्यादा लोग होंगे- आज की तारीख में उसे पोषक भोजन पर कितना खर्च करना पड़ता होगा समझा जा सकता है. बावजूद एक गरीब आदमी को सामान्य भोजन पर भी वहां महीने भर में कम से कम 5-8 हजार रुपये खर्च करना पड़ रहा है. जाहिर सी बात है कि जिसके पास काम नहीं है, वह भूखा सो रहा होगा.
भारत पाकिस्तान के बीच 3 किमी में अंतर भारत की उपलब्धि बताने के लिए पर्याप्त है.
यह उस देश की हालत है जिसने मजहबी आधार पर 1947 में एक नया भूगोल और नई संस्कृति चुनी थी. बावजूद वह संतुष्ट नहीं हुआ और एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा जब उसने 75 सालों में भारत को बर्बाद करने की कोशिशें ना की हो. पाकिस्तान के तमाम नैरेटिव के असर को भारत में साफ-साफ देखा जा सकता है. पाकिस्तान कितना सही था- इसका अंदाजा 75 साल बाद आज की तारीख में भारत और पाकिस्तान के दो सबसे नजदीकी इलाकों में आटा-तेल की कीमतों से भी समझ सकते हैं.
पंजाब में भारत और पाकिस्तान की स्थलीय सीमा है. असल में कभी पंजाब की एक ही जमीन, भाषा और संस्कृति थी जो बंटवारे में अलग-अलग हो गई. बावजूद कि आसमान, धूप, हवा, माटी का रंग आज भी दोनों तरफ एक जैसा है. मगर जब आटा-तेल के भाव को कसौटी पर कसते हैं तो समझ में आता है कि असल में 74 सालों ने दोनों देशों को कितना अलग कर दिया है. लगातार घाव खाने के बावजूद भारत जहां खड़ा दिखता है- हम अपने देश का शुक्रगुजार हो सकते हैं. अमृतसर में अटारी रेलवे स्टेशन से करीब 3.1 किमी दूर पकिस्तान का रेलवे स्टेशन वाघा है. पर्यटकों के लिए यह आकर्षण का विषय है.
लाहौर जिले में भारतीय सीमा पर मौजूद वाघा रेलवे स्टेशन.
भारत पाकिस्तान में रोजमर्रा की इन चीजों से भी फर्क समझा जा सकता है
पकिस्तान के वाघा में एक लीटर दूध की कीमत 145 रुपये, आधा किलो व्हाइट ब्रेड की कीमत 100 रुपये, एक किली चावल की कीमत 200 रुपये, एक दर्जन अंडे की कीमत 234 रुपये, एक किलो आटा 150 रुपये, एक किलो चिकन की कीमत 550 रुपये, एक किलो रेड मीट की कीमत 857 रुपये, एक किलो टमाटर की कीमत 128 रुपये, एक किलो आलू की कीमत 66 रुपये, एक किलो प्याज की कीमत 77 रुपये और डेढ़ लीटर नॉर्मल बोतलबंद पानी 70 रुपये में है.
भारत के अटारी में इन्हीं चीजों की कीमत कुछ यूं है. एक लीटर दूध की कीमत 55 रुपये, आधा किलो व्हाइट ब्रेड की कीमत 39 रुपये, एक किलो चावल की कीमत 56 रुपये, एक दर्जन अंडे की कीमत 76 रुपये, एक किलो चिकन की कीमत 261 रुपये, एक किलो आटा 30 रुपये, एक किलो रेड मीट की कीमत 468 रुपये, एक किलो टमाटर की कीमत 35 रुपये, एक किलो आलू की कीमत 10-15 रुपये, एक किलो प्याज की कीमत 30 रुपये और डेढ़ लीटर नॉर्मल बोतलबंद पानी 30 रुपये में है. भारत में फ़ूड आइटम की कीमतें स्टैण्डर्ड हैं.
समझना मुश्किल नहीं कि एक साधारण गरीब के वश की बात नहीं. पाकिस्तान में खाने-पीने की चीजों का जो हाल है उसमें एक गरीब आदमी को इस वक्त भरपेट भोजन के लिए भारी संघर्ष से गुजरना पड़ रहा है. वह भूखा भी सोता होगा. उसका संघर्ष कितना बड़ा होगा अंदाजा, लगाना मुश्किल है. और भारत है कि पता नहीं क्यों अटारी बॉर्डर पर पाकिस्तान के साथ बराबरी वाला रीट्रीट सेरेमनी कर उसे चिढ़ाता रहता है. क्या यह ठीक बात है. पाकिस्तान को निश्चित ही ऐसे आयोजनों के लिए भी बजट का इंतजाम करना पड़ता होगा. भारत, पाकिस्तानी की बराबरी कैसे कर सकता है. समूचे पाकिस्तान की जीडीपी तो असम से भी बहुत नीचे है. चेक कर लीजिए.
पाकिस्तान की सीमा से सटा भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन अटारी.
सैलरी नहीं मिल रही लोगों को, फैक्ट्रियां बंद
तमाम सरकारी कर्मचारियों को पाकिस्तान में महीनों से सैलरी नहीं मिली है. कच्चा माल नहीं मिलने की वजह से कंपनियां बंद हो चुकी हैं. व्यापारियों के पास पैसे नहीं हैं कि बंदरगाह से अपने समन को छुड़ा सकें. पाकिस्तानी व्यापारियों को एडवांस तक देने के लिए कोई तैयार नहीं है. लोग बेकाम घरों में बैठे हैं और शाम के खाने के लिए आटा लूटने को भी किसी हद तक जाने को तैयार हैं. पीओके की स्थिति तो यह है कि वे अपने वतन भारत लौटना चाहते हैं. प्रदर्शन कर रहे हैं. मगर उनकी आवाज को कुचला जा रहा है. असल में पाकिस्तान कुछ लोगों की संपत्ति बन चुका है. सेना हो या कारोबार या फिर राजनीति. गिने-चुने मुस्लिम अशराफ समूचे पाकिस्तान को चलाते नजर आ रहे हैं. वहां जब भी सवाल होते हैं- दूसरे मुद्दे खड़े कर दिए जाते थे. लेकिन भारत ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते पूरी तरह ख़त्म क्या किए- चीजें सतह पर आ गई. और अब पाकिस्तान के तमाम टेस्टेड हथकंडे भी काम करते नहीं दिख रहे हैं.
दो साल से पाकिस्तान में चीजें सतह पर दिख रही हैं. हालांकि पाकिस्तान ट्रिक्स से उसे संभालते रहा है. लोग चुप रहे इसके लिए कभी फ्रांस से जुड़े एक कार्टून को पाकिस्तान की राजनीति में बड़ा मुद्दा बना दिया जाता है. समूचे पाकिस्तान में हफ़्तों फ्रांस के विरोध में हिंसक आंदोलन होते हैं और वही पाकिस्तान हर मंच पर विरोध करने के बावजूद हाल में 'चंदा' लेते दिखा. फ्रांस ने उसे कुछ सौ मिलियन डॉलर का चंदा दिया जो अमेरिका की तरफ से मिले चंदे से तीन गुना ज्यादा है.
पाकिस्तान अपनी पब्लिक को मस्त करने के लिए भारत विरोधी विचार पर खूब काम करता रहा है. जब भी वहां सरकार चीजों को संभालने में नाकाम रहती है- पाकिस्तान कश्मीर में आतंकी कार्रवाई करता है. क्रॉस फायरिंग करता है. भारत में अपने सिंडिकेट से भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिमों के उत्पीड़न का सवाल उठवाता है. मुस्लिम समाज का बड़ा रहनुमा बनकर खड़ा होता है.
अफगानिस्तान से पाकिस्तान को संभलने की उम्मीद थी, यह विकल्प भी गया हमेशा के लिए
ध्यान बंटाने के लिए पाकिस्तान अपने सिंडिकेट के जरिए मुस्लिम उत्पीड़न के सवालों को खड़ा करता है. भारत में राजनीतिक उथलपुथल मचाता है. और वहां की पब्लिक भारत को 'टाइट' देखकर खुश हो जाती है. पहले पाकिस्तान का काम इससे चल जाता था. अब हुआ ये है कि पाकिस्तान जैसे ही ध्यान हटाने की कोशिश करता है- अपनी जनता के सामने उसकी पोल खुल जाती है. पुलवामा और बालाकोट में वही हुआ था. भारत के फाइटर जेट पाकिस्तान के आसमान में इतनी ऊंचाई पर उड़ते रहते हैं कि वह जान भी नहीं पाता. और भारतीय सेना की 'गलती' की वजह से मिसाइल पाकिस्तान में गिर जाता है. उसका एंटी मिसाल स्क्वाड किसी काम का नहीं दिखता. इंटरनेट की भी इसमें बड़ी भूमिका है जिसकी वजह से प्रोपगेंडा कॉन्टेंट अब ज्यादा काम नहीं कर पाते. अब या तो राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह चीजों के मायने नहीं जानते- या बखूबी जानते हैं, तभी बार-बार भारतीय सेना की औकात मापने की हिमाकत करते रहते हैं.
फिलहाल पाकिस्तान जिस हालत में है- कहने की जरूरत नहीं कि उसके सारे हथकंडे अब किसी काम के नहीं. क्योंकि क्रॉस फायरिंग आदि से उसको लेने के देने पड़ सकते हैं. अब वह करे तो क्या करे? उसे लगा था कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद वहां पाकिस्तानी उपनिवेश बन जाएगा. इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी. लेकिन पाकिस्तान जो दूसरों के साथ करता रहा है, तालिबानी उसी के साथ कर रहे हैं. तालिबान तो मानो पाकिस्तान की कमर तोड़ने पर आमादा है. जैसे वह किसी को भरोसा दिलाना चाहता है कि आप यकीन करो हम उनके साथ नहीं हैं. हमारे लिए अफगानिस्तान फर्स्ट ज्यादा अहम है.
पाकिस्तान का टूटना तय है. हालत यह है कि कभी भी वहां लोग विद्रोह कर सकते हैं. और बहुत सारे निर्दोष लोगों का खून बहने की भी आशंका है. ताज्जुब इस बात पर है कि भारत के पड़ोस में उथल पुथल है मगर भारतीय राजनीति और मीडिया में चीजें ब्लैकआउट हैं. जबकि पाकिस्तान में हर छोटी-बड़ी चीज का सबसे ज्यादा असर भारत के पर पड़ता है. बावजूद भारतीय समाज में चुप्पी है- क्यों, यह समझ से परे है.
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