जीत पर वाहवाही लूटने वाले नेता हारने पर ही क्यों EVM पर सवाल उठाते हैं?
पहले मायावती, फिर अखिलेश यादव और अजय माकन के साथ साथ अब अरविंद केजरीवाल भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने लगे हैं.
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ईवीएम को लेकर विवाद तो तभी शुरू हो गया जब भारत में पहली बार इसका इस्तेमाल हुआ. पैंतीस साल पहले चुनाव आयोग ने इसे केरल के 50 बूथों पर टेस्ट केस के तौर पर आजमाया - और बवाल इतना हुआ कि मामला कोर्ट पहुंच गया.
सबसे पहले मायावती, फिर अखिलेश यादव और अजय माकन के साथ साथ अब अरविंद केजरीवाल भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने लगे हैं. मजे की बात ये ही कि ऐसे सवाल भी सुविधा के हिसाब से उठाये जाते रहे हैं - खासकर तब जब कोई नेता या पार्टी चुनाव हार जाये.
ईवीएम को पहली चुनौती
1982 में केरल की पारावुर विधान सभा सीट पर कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवन पिल्लई के बीच मुकाबला था. मतदान से पहले ही सीपीआई उम्मीदवार पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक अपील दायर कर आयोग द्वारा ईवीएम के इस्तेमाल को चैलेंज किया. नोटिस पाकर चुनाव आयोग भी कोर्ट पहुंचा और मशीन का डेमो दिखाया तो कोर्ट ने दखल देने से इंकार कर दिया.
35 साल बाद...
खास बात ये रही की कांग्रेस उम्मीदवार जोस ने पूरे मामले से दूरी बनाये रखी. नतीजे आये तो पिल्लई 123 वोटों से विजयी घोषित किये गये. हारने के बाद कांग्रेस उम्मीदवार जोस भी हरकत में आये - और कोर्ट में ये कह कर चुनौती दी ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव प्रक्रिया कानूनों का उल्लंघन हुआ है. जब हाई कोर्ट ने फिर से फैसला चुनाव आयोग के पक्ष में सुनाया तो जोस सुप्रीम कोर्ट चले गये. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा और वो भी बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया.
मामला और भी दिलचस्प रहा. बैलट पेपर से दोबारा चुनाव हुए तो कांग्रेस के जोस चुनाव जीत गये.
नया EVM विवाद
22 अप्रैल को दिल्ली नगर निगम के लिए चुनाव होने वाले हैं - और ईवीएम के विरोध में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ साथ कांग्रेस नेता अजय माकन भी कूद पड़े हैं. माकन ने केजरीवाल और चुनाव आयोग को इस सिलसिले में पत्र लिख कर चुनाव में ईवीएम की जगह बैलट पेपर के इस्तेमाल की मांग रखी है.
Copy of my letter to Delhi State Election Commission, asking them to conduct ensuing Municipal Elections on Ballot Papers. pic.twitter.com/Fu5P2BFhcx
— Ajay Maken (@ajaymaken) March 14, 2017
आप नेता केजरीवाल ने अपने सवालों के सपोर्ट में रिसर्च के बाद दलील भी पेश की है. केजरीवाल का कहना है कि पंजाब के एक बूथ पर उन्हें महज तीन वोट मिले हैं जबकि वहां उनके कार्यकर्ताओं की संख्या 7 है और उनके 17 परिवारवाले हैं. केजरीवाल का सवाल है कि वे सारे वोट आखिर गये तो कहां गये?
दूसरा केस केजरीवाल महाराष्ट्र के सिविक पोल से उठाते हैं. केजरीवाल एक निर्दल उम्मीदवार का उदाहरण देते हुए पूछते हैं कि उसे एक भी वोट नहीं मिला, कम से कम उसका और उसकी पत्नी का वोट आखिर कहां गया? सही बात है, केजरीवाल के इस तर्क में दम तो है.
तब कोई सवाल नहीं?
ईवीएम पर विवाद 11 मार्च की शाम उस वक्त शुरू हुआ जब बीएसपी नेता मायावती ने यूपी चुनाव में हार की वजह मशीनों में छेड़छाड़ बता दी. उनके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उनके आरोप को जायज ठहराते हुए सरकार से जांच कराने की सलाह दी. ईवीएम को सवालों के घेरे में घसीटने के लिए पुराने मामलों का भी हवाला दिया जा रहा है जिसमें बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की आपत्तियों को भी शुमार किया जा रहा है.
चुनावी सर्वे पर शोर मचाने वाले कई आप नेताओं से इतर केजरीवाल फिलहाल कह रहे हैं कि सभी बड़े पत्रकार मान कर चल रहे थे पंजाब में दिल्ली का भी रिकॉर्ड टूटेगा.
ईवीएम पर बुआ जो भी कह रही हैं सच...
ऐसे में केजरीवाल के सामने दिल्ली में आपकी भारी जीत की नजीर दी जाती है तो पहले से तैयार जवाब मिलता है, "मेरा मानना है कि दिल्ली में किरन बेदी को सीएम कैंडिडेट घोषित करने के बाद बीजेपी अपने जीत के प्रति आत्मविश्वास से लबरेज हो गई थी और इसलिए ऐसा कुछ नहीं हुआ." फिर बिहार? जवाब हाजिर है, "बिहार में भी कई सर्वे में बीजेपी के जीत का अनुमान लगाया गया था."
तो इसलिए बीजेपी ने बिहार कुछ ऐसा वैसा नहीं किया. यूपी, उत्तराखंड और पंजाब के बारे में भी केजरीवाल के पास ऐसे ही जवाब मिल जाएंगे.
जीते तो वाहवाही और हारे तो...
केजरीवाल और माकन से दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी का सवाल भी कम दिलचस्प नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में तिवारी कहते हैं, "अगर केजरीवाल और माकन को ईवीएम पर भरोसा नहीं है तो केजरीवाल को दिल्ली में फिर से चुनाव कराने की बात करनी चाहिये. माकन को चाहिये कि कांग्रेस आलाकमान से कहें कि वो पंजाब में दोबारा बैलट पेपर से चुनाव की मांग उठायें."
ईवीएम पर उठते इन सवालों के बीच आप नेता संजय सिंह का एक वीडियो इन दिनों वायरल हो रखा है जो नतीजे आने से पहले का लगता है.
ईवीएम ने चुनाव प्रक्रिया को वैसे ही आसान और तेज कर दिया जैसे मोबाइल फोन ने हमारी बाकी जिंदगी - लेकिन जैसे मोबाइल कॉल ड्रॉप से नहीं उबर पा रहा वैसे ही ईवीएम भी रह रह के लपेटे में आ जा रहा है.
ईवीएम में किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं होने के चुनाव आयोग के अपने तर्क हैं. सवाल उठने पर जांच कराया जाना चाहिये ताकि किसी मशीन के चलते आयोग की चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल न उठे. लेकिन सवाल तभी क्यों उठते हैं जब कोई हार जाता है? उसमें भी वही शख्स जीतने पर खुद की वाहवाही लूटता है और हारने पर मशीन को कोसने लगता है. क्या उसे मालूम नहीं कि मशीनों में इंसानों वाले फीचर नहीं होते.
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