अब राष्ट्रपति भवन में नहीं होगी इफ्तार पार्टी !
इफ्तार ही ऐसा एकमात्र रात्रिभोज कार्यक्रम था जो किसी खास धर्म पर आधारित हो और जिसे राष्ट्रपति भवन द्वारा आयोजित किया जाता है. लेकिन अगले पांच सालों तक इसके आयोजन पर ग्रहण लगने वाला है. जानिए क्यों...
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा रखी गई इफ्तार पार्टी में हिस्सा नहीं लिया. इस बात पर भी बवाल खड़ा हो गया है. लेकिन पीएम पर हमला करने वालों को अगले साल एक बड़ा झटका लग सकता है. संभावना है कि एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद अपने पूर्ववर्तियों की इस परंपरा को जारी नहीं रखेंगे.
इफ्तार ही ऐसा एकमात्र रात्रिभोज कार्यक्रम था जो किसी खास धर्म पर आधारित हो और जिसे राष्ट्रपति भवन द्वारा आयोजित किया जाता है. राष्ट्रपति इस भोज में मुख्य रूप से अन्य क्षेत्रों के कुछ प्रख्यात लोगों के अलावा राजनेताओं को आमंत्रित करते हैं. जबकि दीवाली और क्रिसमस जैसे त्योहारों पर राष्ट्रपति भवन पर हर आमो-खास के लिए धार्मिक त्योहारों का आयोजन किया जाता है. लेकिन इससे अधिक जरुरी ये बात है कि इन अवसरों पर राष्ट्रपति द्वारा कोई रात्रिभोज या दोपहर के भोज का आयोजन नहीं किया जाता है.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 23 जून को अपने कार्यकाल के आखिरी इफ्तार पार्टी की मेजबानी की थी. इस पार्टी में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व राज्यसभा सांसद मोहसिना किदवई और सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी ने भाग लिया था.
#PresidentMukherjee hosted an Iftar Reception at Rashtrapati Bhavan today pic.twitter.com/XmB3IC3i5k
— President of India (@RashtrapatiBhvn) June 23, 2017
लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इफ्तार पार्टी में अनुपस्थित रहे
2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये चौथी बार राष्ट्रपति भवन द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में अनुपस्थित रहे हैं. बल्कि उसी सुबह वो तीन देशों के दौरे के लिए रवाना हो गए. पिछले साल (2016) और उसके पहले साल 2015 में दिल्ली में मौजूद होने के बावजूद वो इस वार्षिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे. पिछले साल वो गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा आंतरिक सुरक्षा मामले पर एक महत्वपूर्ण बैठक कर रहे थे. 2015 में वो पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक में शामिल थे. वहीं 2014 में मोदी एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मुंबई में थे.
पिछले तीन सालों में भले ही पीएम इफ्तार पार्टी से दूर रहे लेकिन किसी न किसी केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रपति के इफ्तार पार्टी में हिस्सा जरूर लिया था. लेकिन ये पहली बार था जब केंद्र का कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ था. ये शायद अगले साल से राष्ट्रपति भवन में बदलने वाली चीजों का संकेत है.
क्यों रामनाथ कोविंद, एपीजे अब्दुल कलाम का अनुसरण करेंगे
एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद 17 जुलाई के चुनाव में जीत जाएंगे इस बात की पूरी संभावना है. तो माना जा रहा है कि महामहिम का पद संभालते ही कोविंद राष्ट्रपति भवन में होने वाली इस राजनीतिक-धार्मिक परंपरा पर रोक लगा देंगे.
राष्ट्रपति मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के पूरे पांच साल इफ्तार पार्टी का आयोजन किया. हर साल इसमें कांग्रेस और वाम नेताओं ने भाग भी लिया. पिछले तीन मौकों पर अरुण जेटली, राजनाथ सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे भाजपा के भी कुछ प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए. लेकिन इस साल ऐसा कुछ नहीं हुआ, न तो कोई मंत्री और न ही किसी भी बीजेपी नेता ने इस बार राष्ट्रपति भवन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
लेकिन अगर कोविंद इफ्तार पार्टी का आयोजन करने का फैसला करते हैं, तो जिन लोगों ने उन्हें मैदान में उतारा है और जिनके समर्थन से वे राष्ट्रपति चुनाव जीतेंगे वो खुद उनका साथ छोड़ देंगे. ये घटना उनके लिए बहुत उत्साहित करने वाला नहीं होगा. इसके अलावा भी कोविंद के पास एक और कारण होगा जो शायद इस प्रथा को खत्म करने के लिए सटिक होगा. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2002 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से इस परंपरा को तोड़ दिया था.
कलाम किसी भी राजनीतिक-धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन पब्लिक के पैसे पर राष्ट्रपति भवन में कराने के खिलाफ थे. उन्होंने न सिर्फ इस परंपरा को बंद कर दिया बल्कि निर्देश भी दिया कि इफ्तार पर खर्च किए गए पैसे को अनाथालयों को दान में दे दिए जाएं. हालांकि, उनके उत्तराधिकारी प्रतिभा पाटिल ने 2007 में इफ्तार को फिर से शुरू कर दिया. प्रणब मुखर्जी ने भी इसे जारी रखा. लेकिन कोविंद कलाम के नक्शेकदम का अनुसरण कर सकते हैं. राष्ट्रपति भवन अगले पांच सालों तक इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं देख सकता है.
इफ्तार का आयोजन और इसका राजनीतिक महत्व
माना जाता है कि 1973 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने इफ्तार रिसेप्शन की शुरूआत की थी. इसके पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू निजी तौर पर कांग्रेस मुख्यालय में इसका आयोजन करते थे. उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने 1980 में सत्ता में वापसी करने के बाद मुस्लिमों को लुभाने के मकसद से इस प्रथा को जारी रखा. उनके बाद के सभी प्रधानमंत्रियो- अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह तक ने इस परंपरा को जारी रखा. लेकिन मोदी ने सरकारी खजाने से मुस्लिमों को खुश करने के इस सांकेतिक तरीके को तोड़ा.
कम से कम अगले दो सालों यानी 2019 के लोकसभा चुनाव तक ये पहली बार होगा कि न तो प्रधानमंत्री और न ही राष्ट्रपति इफ्तार की मेजबानी करेंगे.
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