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Updated: 25 दिसम्बर, 2022 06:55 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को राहुल गांधी और उनके साथ नफरत के खिलाफ एक मुहिम के तौर पर पेश कर रहे हैं. राहुल गांधी का दावा है कि सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं - और संघ-बीजेपी मिल कर देश में नफरत फैला रहे हैं. जवाबी हमले में बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी की मंशा पर ही सवाल उठा दिया है.

दिल्ली पहुंचते ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने लाल किले से अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, वे नफरत फैलाते हैं... और हम प्यार बांटते हैं... हम सभी भारतीयों को गले लगाते हैं. संघ और बीजेपी को लेकर राहुल गांधी पहले से ही ऐसी बातें करते रहे हैं. कहते हैं, वो सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं और यात्रा के अनुभव शेयर करते हुए वो समझाने की कोशिश करते हैं कि चीजों को वो बेहतर तरीके से समझने लगे हैं.

बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर उलटा इल्जाम लगाया है कि वो प्यार नहीं देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, राहुल गांधी प्यार बांटने की बात करते हैं, लेकिन वो ऐसे लोगों के साथ नजर आते हैं जो देश को बांटने की कोशिश करते हैं.

और सवाल उठाते हैं, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अलग-अलग जगह वो टुकड़े-टुकड़े गैंग से जुड़े लोगों के साथ नजर आये. उनके साथ चलते हुए वो प्यार कैसे बांट सकते हैं?

ऐसी बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तभी कही थी, जब मेधा पाटकर भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई थीं. रविशंकर प्रसाद लगता है, कन्हैया कुमार से लेकर स्वरा भास्कर और रघुराम राजन को टारगेट कर रहे हैं. कन्हैया कुमार तो अब कांग्रेस के ही नेता हैं, लेकिन अब भी उनके खिलाफ अदालत ने देशद्रोह के केस चल रहा है.

रविशंकर प्रसाद का रिएक्शन तो राजनीतिक ही है, लेकिन बीजेपी के एक विधायक रमेश मेंदोला तो दो कदम आगे बढ़ कर गांधी परिवार को ही नफरत के नाम पर नसीहत देने लगे हैं. रमेश मेंदोला ने राहुल गांधी को लिखा अपना पत्र ट्विटर पर शेयर किया है, जिसमें वो अंग्रेजी कहावत 'चैरिटी बिगिन्स ऐट होम' का हवाला देते हुए घर से ही नफरत खत्म करने की सलाह दे रहे हैं. रमेश मेंदोला की सलाह है कि राहुल गांधी को पहले अपनी चाची मेनका गांधी और चचेरे भाई वरुण गांधी के प्रति नफरत खत्म करने की सलाह दे रहे हैं.

नफरत के खिलाफ राहुल गांधी के मिशन पर सवाल खड़े करते हुए बीजेपी विधायक लिखते हैं, मैं देख रहा था कि ये नारा लगाते लगाते आप खुद आपके अपने... और अपने परिवार वालों के मन में नफरत निकाल पा रहे हैं या नहीं?

ये सारी बातें पहले से ही सोशल मीडिया और मीडिया में जगह बनायी हुई हैं - और इसी बीच वरुण गांधी (Varun Gandhi) के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने को लेकर भी है. ब्रेक के बाद भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों से गुजरने वाली है.

बीजेपी सांसद वरुण गांधी को लेकर समय समय पर अलग अलग कयास लगाये जाते रहे हैं. ऐसे कयासों में उनके अपने ही परिवार की पार्टी कांग्रेस से लेकर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने तक की बातें चल चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस रूप सामने नहीं आया है.

ऐसी चर्चाओं को बल इसलिए भी मिलता है क्योंकि वरुण गांधी काफी दिनों से बीजेपी नेतृत्व और यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ लोकहित से जुड़े मुद्दों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं. किसान आंदोलन के दौरान भी वो अपनी ही सरकार के खिलाफ बेहद आक्रामक नजर आ रहे थे - और हाल फिलहाल जिस तरह से वरुण गांधी ने अपनी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद किया है, वो भी 2019 में उनके बयान से बिलकुल यूटर्न लेने जैसा है.

वरुण गांधी को लेकर नयी चर्चा क्यों है

इंदिरा गांधी के परिवार से बेदखल किये जाने के बाद बीजेपी ही मेनका गांधी का मजबूत सहारा बनी. बीजेपी ने ही मेनका गांधी को केंद्र में सरकार बनने पर मंत्री भी बनाया और उनके बेटे वरुण गांधी को सांसद भी बनाया है.

varun gandhi, rahul gandhiक्या राहुल गांधी नफरत खत्म करने की शुरुआत घर से करेंगे?

ये तो वरुण गांधी भी मानते हैं कि काफी कम उम्र में ही बीजेपी ने उनको पश्चिम बंगाल जैसे राज्य की जिम्मेदारी भी दी थी, लेकिन ये सब तब की बातें हैं जब तक राजनाथ सिंह के हाथ में कमान रही - मोदी-शाह का दबदबा बढ़ने के साथ ही वरुण गांधी को हाशिये पर भेज दिया गया.

2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने पर मेनका गांधी को भी मंत्री बनाया गया था, लेकिन 2019 का चुनाव आते आते परिस्थितियां काफी प्रतिकूल हो गयीं. और तब ऐसी खबर आयी कि बीजेपी नेतृत्व मां-बेटे दोनों में से किसी एक को ही टिकट देना चाह रहा था. फिर मेनका गांधी ने बेटे के साथ सीटों की अदला बदली के प्रस्ताव के साथ टिकट का दावा पेश किया - दावेदारी मजबूत करने के लिए संघ के कनेक्शन से भी जोर लगाना पड़ा - और बात बन गयी, लेकिन कुछ शर्तों के साथ.

जब वरुण को बोलना पड़ा, मोदी जैसा कोई नहीं: 2019 में चुनाव लड़ने के लिए जब मेनका गांधी और बेटे का टिकट पक्का हो गया तो वरुण गांधी ने मीडिया के सामने एक ऐसा बयान दिया था, जिसके बारे में माना जाता रहा कि वरुण गांधी वैसी बातों से बचने की कोशिश करते रहे हैं. हां, मेनका गांधी के बारे में ऐसी कोई धारणा नहीं रही है. वो शुरू से ही गांधी परिवार के खिलाफ खुल कर बोलती रही हैं.

तब वरुण गांधी ने कहा था, 'मेरे परिवार में भी कुछ लोग पीएम रहे हैं... लेकिन जो सम्मान मोदी ने देश को दिलाया है, वो बहुत लंबे समय से किसी ने देश को नहीं दिलाया... वो आदमी केवल देश के लिए जी रहा है... और वो मरेगा भी देश के लिए... उसको केवल देश की चिंता है.'

अभी 16 दिसंबर को ही 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को लेकर विजय दिवस मनाया गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सशस्त्र बलों के योगदान को याद किया - और ट्विटर पर लिखा, ‘विजय दिवस पर... मैं उन सभी बहादुर सशस्त्र बलों के कर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने 1971 के युद्ध में भारत की एक असाधारण जीत सुनिश्चित की... देश को सुरक्षित रखने में सशस्त्र बलों की भूमिका के लिए देश उनका ऋणी रहेगा.’

ये तो बीजेपी की पॉलिटिकल लाइन रही, लेकिन वरुण गांधी ने अलग ही तरीका अपनाया. वरुण गांधी ने 2019 के अपने स्टैंड से यूटर्न लेते हुए इंदिरा गांधी की इच्छाशक्ति की तारीफ की. तभी की एक तस्वीर के साथ वरुण गांधी ने ट्विटर पर लिखा, 'यह तस्वीर ऐतिहासिक है! जब हमारे वीर जवानों के शौर्य के आगे दुश्मन देश के 93000 सैनिकों के घुटने टेक दिये और एक नारी की इच्छाशक्ति ने विश्व का मानचित्र बदल दिया.

वरुण गांधी के ट्वीट की आखिरी लाइन है, 'प्रधानमंत्री जी... और सेना प्रमुखों की मुस्कान में अमेरिका समर्थित पाक को हराने का आत्मविश्वास झलक रहा है.'

सवाल ये है कि क्या 2019 में वरुण गांधी ये कैसे भूल गये, इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीत कर देश को जो सम्मान दिलाया वो कहीं से भी कम था. राजनीति दुनिया में सबसे ताकतवर प्रैक्टिस समझी जाती है, लेकिन वहां भी सबकी अपनी अपनी मजबूरियां होती हैं और ये निर्भर इस बात पर करता है कि कब कौन किस छोर पर खड़ा है.

वरुण गांधी के परिवार से प्रधानमंत्री बनने वाली सिर्फ इंदिरा गांधी ही नहीं थीं - जवाहरलाल नेहरू और राजीव गांधी भी रहे हैं. हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वरुण गांधी की मां मेनका गांधी अमेठी से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव भी लड़ चुकी हैं. मेनका गांधी को करीब 50 हजार वोट मिले थे, और राजीव गांधी ने तीन लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी.

31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर भी वरुण गांधी ने इंदिरा गांधी को देश की मां बताया था. वरुण गांधी ने ट्विटर पर लिखा, 'नेतृत्व ही नहीं उदारता भी... शक्ति ही नहीं मातृत्व भी... देश की मां - और मेरी प्यारी दादी को उनकी जयंती पर मेरा शत शत नमन.'

न्यायपालिका के मुद्दे पर सोनिया गांधी के स्टैंड का सपोर्ट: 21 दिसंबर को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने इल्जाम लगाया था कि केंद्र सरकार सुनियोजित तरीके से न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश कर रही है जो बहुत ही परेशान करने वाला है. सोनिया गांधी का कहना रहा कि सरकार जनता की नजर में न्यायपालिका की पोजीशन को कमतर बनाने का प्रयास कर रही है.

अव्वल तो सोनिया गांधी ने केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की कॉलेजियम सिस्टम पर हाल की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन मुद्दा तब और भी गंभीर लगने लगा जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ में राज्य सभा में सोनिया गांधी के बयान पर कड़ी आपत्ति जता डाली. किरण रिजिजू की टिप्पणी थी, भारत के संविधान के लिए कॉलेजियम सिस्टम एलियन की तरह है.

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का कहना रहा, 'यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी का बयान मेरी समझ से परे है... न्यायपालिका को कमजोर करना मेरे विचारों से बिल्कुल अलग है. ये लोकतंत्र का स्तंभ है... मैं नेताओं से आग्रह करता हूं - और अपेक्षा करता हूं कि वे बड़े संवैधानिक पदों पर पक्षपात का आरोप न लगायें.' सभापति धनखड़ ने यहां तक कहा कि अगर वो इस मामले में कुछ नहीं कहते, तो ये उनके द्वारा ली गई संविधान की शपथ को खारिज करना होता.

और 21 दिसंबर को ही इंडियन एक्सप्रेस में वरुण गांधी का न्यायपालिका को लेकर एक लेख प्रकाशित हुआ है - न्यायपालिका की स्वतंत्रता सबसे ऊपर होनी चाहिये. अपना लेख वरुण गांधी ट्विटर पर भी पोस्ट करते हैं, और लिखते हैं - सशक्ति न्यायपालिका के बगैर लोकतंत्र कमजोर हो सकता है.

निश्चित तौर पर वरुण गांधी वस्तुस्थिति की विस्तार से बात करते हैं और कई मामलों का उदाहरण देते हुए हाल में सरकार और सुप्रीम कोर्ट के रुख का भी बारी बारी जिक्र करते हैं - बाकी बातें अपनी जगह हैं, लाख टके की बात ये है कि वरुण गांधी साफ तौर पर सोनिया गांधी की बातों का सपोर्ट करते हैं.

यात्रा तो कश्मीर तक चलेगी

भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत से लेकर दिल्ली पहुंचने तक दक्षिण की राजनीति का ही दबदबा देखने को मिला है. कन्याकुमारी से निकलने से पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने रवाना किया था - और दिल्ली में दाखिल होने से पहले उनकी बहन और डीएमके सांसद कनिमोड़ी को भी राहुल गांधी के साथ पदयात्रा करते देखा गया - दिल्ली में तो राजनीतिक पारी पहले ही शुरू कर चुके कमल हासन भी डटे दिखे.

राहुल गांधी को हो सकता है ज्यादा अपेक्षा रही हो, लेकिन अब तक विपक्ष की तरफ से भारत जोड़ो यात्रा को कोई खास सपोर्ट हासिल नहीं हुआ है. बल्कि मल्लिकार्जुन खड़गे संसद सत्र के दौरान विपक्षी दलों की तरफ से ज्यादा नुमाइंदगी दर्ज कराने में सफल नजर आ रहे हैं. महाराष्ट्र पहुंचने पर राहुल गांधी के साथ एनसीपी नेता सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे को यात्रा में शामिल होते देखा गया था.

दिल्ली में ब्रेक के बाद भारत जोड़ो यात्रा पश्चिम उत्तर प्रदेश के बागपत, शामली और कैराना से होकर गुजरने वाली है. यूपी में यात्रा का सफर 110 किलोमीटर का होगा. बताते हैं कि यात्रा में शामिल होने के लिए कांग्रेस की तरफ से अखिलेश यादव, मायावती और ओमप्रकाश राजभर सहित कई ऐसे नेताओं को न्योता भेजा गया है जो बीजेपी विरोध की राजनीति करते रहे हैं. वैसे ओपी राजभर तो फिलहाल बीजेपी के इर्द गिर्द ही मंडराते देखे गये हैं.

माना जा रहा है कि आरएलडी नेता जयंत चौधरी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो सकते हैं. यूपी में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद तैयारियों पर नजर रखे हुए हैं - और प्रियंका गांधी वाड्रा के भी यात्रा में मौजूद रहने की बात है. वैसे भी यूपी की प्रभारी होने के नाते भी प्रियंका गांधी की मौजूदगी तो बनती ही है.

प्रियंका गांधी को 2019 में कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने के बाद वरुण गांधी के कांग्रेस के साथ आने के कयास लगाये जा रहे थे. प्रियंका गांधी और वरुण गांधी के अच्छे रिश्तों की दुहाई देते हुए दलीलें भी दी जा रही थी.

एक बार फिर वैसी ही परिस्थितियां बन रही हैं, लेकिन यूपी कोई भारत जोड़ो यात्रा का अंतिम पड़ाव तो है नहीं - वरुण गांधी के कश्मीर तक पहुंच कर राहुल गांधी के साथ तिरंगा फहराने का स्कोप बचा हुआ है. बाकी होगा तो वही जो राहुल गांधी को मंजूर होगा और भाइयों के बीच संघ और बीजेपी की तरह नफरत आड़े नहीं आएगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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