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Updated: 15 मार्च, 2017 03:36 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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दिल्ली में एमसीडी चुनाव के घोषणा के साथ ही सभी प्रमुख पार्टियों में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है. सभी इलेक्शन स्ट्रेटेजी बनाने में लग गए हैं, कि कैसे एमसीडी के चुनाव में परचम लहराया जाए. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भारी बहुमत से जीतने के बाद बीजेपी के कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह है, और वो वही परफॉरमेंस एमसीडी चुनाव में दोहराना चाहते हैं. वही आप गोवा और पंजाब में पराजय के बाद किसी भी हालात में एमसीडी चुनाव में हारना नहीं चाहती है. 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप 70 में से 67 सीट जीतने में कामयाब हुई थी और इस बार भी वो किसी भी तरह से दिल्ली में अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती. गोवा और पंजाब की पराजय के बाद आप अपनी स्थिति भांपते हुए चुनाव की तैयारियों में लग गयी है.

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कांग्रेस के लिए तो हालात काफी गंभीर हैं. जहां एक ओर उसे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारी पराजय का सामना करना पड़ा तो वहीं गोवा और मणिपुर में सबसे ज्यादा सीट जीतने के बाद भी सरकार नहीं बना पाना, संगठन की लचर और सुस्त स्थिति को दर्शाता है. उनके पक्ष में सिर्फ एक चीज पॉजिटिव है कि वो पंजाब में भारी बहुमत से जीतने में कामयाबी हासिल कर पाई. 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पायी थी. लेकिन पिछले साल हुए 13 वार्डों के उपचुनाव में कांग्रेस 13 सीट में से 5 सीट जीतने में कामयाब हो पायी थी जिससे उसका मनोबल बढ़ा था. कांग्रेस भी एमसीडी चुनाव को लेकर काफी गंभीर है. हाल ही में राहुल गांधी ने रामलीला मैदान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था और उनमें उत्साह जगाया था.

बीजेपी पिछले 10 साल से एमसीडी की सत्ता पर काबिज है और वो तीसरी बार भी कब्ज़ा करना चाहती है. बीजेपी नेता भी जानते हैं कि आप एमसीडी चुनाव में उसे कड़ी टक्कर दे सकती है और इसी कारण से वो चुनाव जीतने के लिए नए-नए फार्मूला बना रहे हैं. बीजेपी ने एमसीडी चुनाव को नाक का सवाल बना लिया है और इसलिए मौजूदा पार्षदों के टिकट काटने का बड़ा फैसला भी कर लिया है और इसके बदले नए चेहरों को मौका देने की बात कही गयी है. बीजेपी जानती है की एमसीडी में जो सत्ता विरोधी लहर उसके खिलाफ है उसका उपाय यही है.

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कुछ महीने पहले ही बीजेपी ने मनोज तिवारी को राज्य में पार्टी का प्रेसिडेंट बनाया था. दिल्ली के पूर्वांचल वोटरों को साधने के साथ ही कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरने के लिए मनोज तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी गयी है. देखना यह है कि वो इसमें सफल हो पाते हैं कि नहीं. लेकिन ये डर भी जरूर लग रहा होगा कि मौजूदा पार्षदों के टिकट काटने का निर्णय कहीं बीजेपी के खिलाफ न चला जाए, क्योंकि कई दिग्गज नेताओं को घर बैठा देना कहीं बगावती तेवर को हवा न दे.

जब से दिल्ली में आप की सरकार बनी है तब से एमसीडी और उसमें तकरार होती रही है. वो समय-समय पर बीजेपी शासित एमसीडी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है. 2012 में तीनों नगर निगमों की 272 सीटों में से बीजेपी को 138 सीटें मिली थी. उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगम बीजेपी के पास हैं. पिछले साल हुए 13 वार्डों के उपचुनाव में आप ने 13 सीट में से 5 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी. दिल्ली में मुकाबला कांटे का है. आम आदमी पार्टी का पूरा ध्यान अब दिल्ली पर है. कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अगर एमसीडी चुनाव में आप को जीत मिलती है तो वह दिल्ली को लंदन जैसा बना देंगे. उन्होंने दावा किया था कि उनकी सरकार ने दिल्ली में दो वर्षों में जितना काम किया है उतना भाजपा 10-15 वर्षों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नहीं कर पाई है.

मुकाबला दिलचस्प है, अब देखना ये है कि आप एमसीडी के चुनाव में बीजेपी के विजय रथ को रोकने में कामयाब हो पाती है या नहीं. एमसीडी का चुनाव दोनों पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. बीजेपी पर जहां एमसीडी में अपनी 10 साल से आ रही सत्ता को बचाने का दबाव रहेगा, वहीं आप पर दिल्ली विधानसभा का सक्सेस दोहराने का दबाव रहेगा.

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आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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