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Updated: 31 अगस्त, 2021 10:39 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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दिल्ली के पिछले दो विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व प्रदर्शन के दम पर सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अपनी आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में कोई कोर-कसर बाकी नही रख रहे हैं. अगले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रही AAP को अकाली दल और भाजपा के मुकाबले पहले ही काफी बढ़त मिल चुकी है. वहीं, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Electins 2022) की बात करें, तो आम आदमी पार्टी (आप) ने यहां पहले ही चुनावी दस्तक दे दी है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अब कुछ ही महीनों का समय बचा है, तो तकरीबन सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंकना शुरू कर दिया है.

बसपा सुप्रीमो मायावती सोशल इंजीनियरिंग के सहारे, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) एमवाई समीकरण के साथ ब्राह्मण वर्ग को लुभाने, कांग्रेस (Congress) की ओर से मुस्लिम मतदाताओं में पैंठ बनाने और भाजपा (BJP) ने ओबीसी वोटरों को साधने की रणनीति के साथ हिंदुत्व का झंडा बुलंद कर दिया है. वहीं, उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन बनाने की कोशिश में जुटी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी अपने चुनावी हथियार निकाल लिए हैं. 'हनुमान भक्त' अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे को काउंटर करने की तैयारी शुरू कर दी है. आम आदमी पार्टी ने अपने 'सॉफ्ट हिंदुत्व' को देशभक्ति का कलेवर देते हुए भाजपा की मुश्किल बढ़ाने की तैयारी कर ली है.

खबर है कि आम आदमी पार्टी ने अयोध्या में तिरंगा यात्रा निकालने का फैसला लिया है. सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से विधानसभा चुनाव लड़ने की अटकलों के बीच AAP ने भाजपा को सीधे तौर पर चुनौती देने का मन बना लिया है. भाजपा का मजबूत किला मानी जाने वाली अयोध्या में आम आदमी पार्टी तिरंगा यात्रा के जरिए अपने राष्ट्रवाद और सॉफ्ट हिंदुत्व को धार देने की कोशिश कर रही है. 14 सितंबर को दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह के नेतृत्व में निकलने वाली तिरंगा यात्रा के दौरान हनुमानगढ़ी और रामलला के दर्शन भी किए जाएंगे. तिरंगा यात्रा के जरिये 'आप' केवल राष्ट्रवाद ही नहीं बल्कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भी भाजपा को चुनौती देने की रणनीति पर चल रही है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अरविंद केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व यूपी में 'खेला' कर पाएगा?

तिरंगा यात्रा के जरिये 'आप' केवल राष्ट्रवाद ही नहीं बल्कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भी भाजपा को चुनौती देने की रणनीति पर चल रही है.तिरंगा यात्रा के जरिये 'आप' केवल राष्ट्रवाद ही नहीं बल्कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भी भाजपा को चुनौती देने की रणनीति पर चल रही है.

अखिलेश यादव से मुलाकात का रंग दिखने लगा

पिछले महीने ही आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह (Sanjay Singh) ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के के साथ एक 'शिष्टाचार भेंट' की थी. इस मुलाकात से सियासी गलियारों में एक नए राजनीतिक समीकरण की सुगबुगाहट नजर आने लगी थी. हालांकि, सपा और आम आदमी पार्टी की ओर से अभी तक गठबंधन को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नही हुई है. लेकिन, माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी को कुछ शहरी विधानसभा सीटें देकर अखिलेश यादव अपने पक्ष में ला सकते हैं. वैसे भी अखिलेश यादव साफ कर चुके हैं कि वो किसी बड़े राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेंगे और छोटे दलों को साथ लाएंगे. तो, फिलहाल आम आदमी पार्टी की जैसी स्थिति है, उसके हिसाब से अखिलेश यादव के साथ जाने से उसे कम से कम अपना जनाधार खड़ा करने में मदद ही मिल जाएगी. वैसे, संजय सिंह भी गठबंधन को लेकर उत्तर प्रदेश के 'हित' में फैसला लेने की बात कहते नजर आ चुके हैं.

इस सियासी खिचड़ी में एक रोचक बात ये भी है कि अयोध्या में राम मंदिर ट्रस्ट के जिस जमीन विवाद को सपा सरकार के पूर्व मंत्री ने उठाया था. उसे संजय सिंह ने पुरजोर तरीके से उठाते हुए आरोपों की झड़ी लगा दी थी. चौंकाने वाली बात ये भी रही कि संजय सिंह के जमीन विवाद का मामला उठाते ही सपा एकदम शांत हो गई थी. इस मामले पर एक तरह से सपा ने पूरा थाल सजाकर आम आदमी पार्टी के सामने रख दिया था. वहीं, आम आदमी पार्टी अब अयोध्या में तिरंगा यात्रा के जरिये रामलला और हनुमानगढ़ी में दर्शन भी करने की तैयारी कर रही है, तो ये काफी हद तक एक सोची-समझी रणनीति नजर आती है. उत्तर प्रदेश के बहुकोणीय विधानसभा चुनाव को धीरे-धीरे द्विकोणीय किया जा रहा है. आम आदमी पार्टी इसमें अपने सॉफ्ट हिंदुत्व का तड़का लगा रही है. सपा और आम आदमी पार्टी की करीबियत बढ़ने से भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा होना तय है.

दिल्ली मॉडल बढ़ाएगा भाजपा की मुश्किलें

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल काफी लोकप्रिय है. फ्री बिजली-पानी और उच्च स्तर के सरकारी स्कूलों के सहारे दिल्ली में केजरीवाल सफलता की नई इबारत लिख रहे हैं. कोरोना महामारी के बाद भाजपा के लिए परिस्थितियां काफी हद तक बदल गई हैं. रही-सही कसर किसान आंदोलन ने भी निकाल दी है. उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर जैसे महानगरों में आम आदमी पार्टी के नेताओं के पोस्टरों पर फ्री बिजली-पानी और बेहतर शिक्षा व्यवस्था के वादों की झड़ी लगी हुई है. भाजपा से नाराज वोटर एक ठिकाना खोज रहा है और आम आदमी पार्टी के रूप में उसे वो मिल भी सकता है. बशर्ते, सपा के साथ उसका गठबंधन फाइनल हो. फिलहाल जैसी नजदीकियां अखिलेश यादव और संजय सिंह के बीच नजर आ रही हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले लोगों को चौंकाया जा सकता है.

भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को धड़ाम करने के लिए केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया था.भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को धड़ाम करने के लिए केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया था.

सॉफ्ट हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का कॉकटेल

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने अपनी विचारधारा को पॉलिटिकली करेक्ट करने की भरपूर कोशिश की. भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को धड़ाम करने के लिए खुद को हनुमान भक्त के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया था. हनुमान मंदिर में दर्शन से इतर उनकी चुनावी रैलियों की शुरूआत भी 'जय बजरंगबली' और 'जय हनुमान' से होने लगी. केजरीवाल ने साफ कर दिया था कि वो भगवान राम के भी भक्त हैं, लेकिन उनके राम और भाजपा के राम में अंतर है. राम मंदिर पर आए फैसले का उन्होंने स्वागत भी किया था. कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को कट्टर हिंदुत्व की पार्टी घोषित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. वहीं, सर्जिकल स्ट्राइक पर केंद्र की मोदी सरकार से सबूत मांगने वाले केजरीवाल ने भाजपा के राष्ट्रवाद के एजेंडे को कमजोर करने के लिए दिल्ली के स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरूआत की.

अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के अन्य नेता हमेशा से ही ये घोषित करते आ रहे हैं कि हिंदू धर्म और राष्ट्रवाद पर भाजपा के विचार कट्टर हैं. मनीष सिसोदिया ने तिरंगा यात्रा को हिंदू पहचान, धर्म और राष्ट्रवाद को भाजपा के तरीके से पूरी तरह अलग बताया. अरविंद केजरीवाल के सॉफ्ट हिंदुत्व का मॉडल दिल्ली में तो सफल नजर आ चुका है. अगर उत्तर प्रदेश में वो अपने सॉफ्ट हिंदुत्व को कैश करने में कामयाब हो जाते हैं, तो भाजपा के लिए मुश्किलें दोगुनी हो जाएंगी. हालांकि, इन तमाम संभावनाओं में सपा के साथ गठबंधन की शर्त जुड़ी हुई है. क्योंकि, आम आदमी पार्टी ने अभी प्रदेश में पहला कदम रखा है और भाजपा से नाराज मतदाताओं की पहली पसंद फिलहाल अरविंद केजरीवाल तो नही ही हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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