क्या कर्नाटक में 'बदलाव' का रिस्क भाजपा उठा पाएगी?
बीएस येदियुरप्पा आगामी 25 जुलाई को भाजपा के सभी विधायकों के साथ रात्रि भोज करने वाले हैं. माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान अपना कोई फैसला सुनाए, इससे पहले येदियुरप्पा शक्ति प्रदर्शन के सहारे अपने दावे को मजबूती के साथ पेश करने के लिए आखिरी हथियार के तौर पर इस डिनर डिप्लोमेसी का सहारा लेने वाले हैं.
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बीते दिनों कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा आलाकमान के कई नेताओं से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद कर्नाटक में लंबे समय से उठ रहे नेतृत्व परिवर्तन के कयासों को एक बार फिर से बल मिल गया है. हालांकि, कर्नाटक लौटते ही बीएस येदियुरप्पा को सीएम बनाए रखने की मांग तेज हो गई. वैसे, नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के बीच दिलचस्प बात ये भी है कि येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखने की मांग को लिंगायत समुदाय के मठों के साथ ही लिंगायत समुदाय के कांग्रेसी नेता भी समर्थन दे रहे हैं.
कांग्रेस विधायक एस शिवाशंकरप्पा और एमबी पाटिल ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाए रखने की मांग का खुलकर समर्थन किया है. हालांकि, कहा जा रहा है कि विपक्ष इस तरह की बयानबाजी से लिंगायत समुदाय को अपने पाले में लाने की रणनीति के तहत ऐसा कर रहा है. वैसे, येदियुरप्पा ने दिल्ली दौरे पर ही इन अटकलों को खारिज कर दिया था. खुद को भाजपा का 'वफादार सैनिक' बताने वाले येदियुरप्पा की राज्य की राजनीति और लिंगायत समुदाय में मजबूत पकड़ है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भाजपा कर्नाटक में 'बदलाव' का रिस्क उठा पाएगी?
बीएस येदियुरप्पा आगामी 25 जुलाई को भाजपा के सभी विधायकों के साथ रात्रि भोज करने वाले हैं.
येदियुरप्पा का बयान दे रहा भाजपा को राहत, लेकिन...
कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के समर्थन में लगातार शक्ति प्रदर्शन हो रहा है. लेकिन, उन्होंने हाल ही में एक बयान देकर लोगों को चौंका दिया है. येदियुरप्पा के इस बयान से संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें सीएम पद से हटाए जाने का फैसला कर लिया है. येदियुरप्पा ने भाजपा आलाकमान के फैसले का पालन करने के साथ ही लोगों से अपील की है कि उनके समर्थन में प्रदर्शन या बयानबाजी न करें. उन्होंने कहा कि पार्टी ने 78 साल की उम्र पार करने के बावजूद मेरे काम की सराहना करते हुए मुझे मौका दिया. 25 जुलाई को भाजपा अध्यक्ष का जो निर्देश आएगा, उसके आधार पर 26 जुलाई से काम शुरू कर दिया जाएगा. दरअसल, 26 जुलाई को येदियुरप्पा सीएम के तौर पर अपने चौथे कार्यकाल के दो साल पूरे कर लेंगे. इस दिन एक कार्यक्रम की घोषणा की गई है, जिसके बाद माना जा रहा है कि येदियुरप्पा सीएम पद से इस्तीफा दे सकते हैं. येदियुरप्पा के ये बयान आलाकमान के लिए राहत भरा कहा जा सकता है.
लेकिन, कर्नाटक में लगातार चढ़ रहे सियासी पारे के बीच मुख्यमंत्री येदियुरप्पा बेफिक्र ही नजर आते हैं. खबरें सामने आई हैं कि बीएस येदियुरप्पा आगामी 25 जुलाई को भाजपा के सभी विधायकों के साथ रात्रि भोज करने वाले हैं. माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान अपना कोई फैसला सुनाए, इससे पहले येदियुरप्पा शक्ति प्रदर्शन के सहारे अपने दावे को मजबूती के साथ पेश करने के लिए आखिरी हथियार के तौर पर इस डिनर डिप्लोमेसी का सहारा लेने वाले हैं. वहीं, लिंगायत समुदाय के प्रमुख संतों की ओर से चेतावनी दी गई है कि येदियुरप्पा को उनका ये कार्यकाल पूरा करने दिया जाए. येदियुरप्पा ने भी अपने हालिया बयान में पार्टी आलाकमान के हर फैसले को मानने की बात कही है. लेकिन, ऐसा लग नहीं रहा है कि वो बढ़ती उम्र के बावजूद इतनी आसानी से सीएम की कुर्सी छोड़ने के लिए हामी भर देंगे. भाजपा किसी भी हाल में उसे सत्ता में लाने वाले लिंगायत समुदाय में कोई गलत संदेश देने का रिस्क नहीं उठा पाएगी.
रिस्क का असर भाजपा 2013 में देख चुकी है
वैसे, 2008 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही कई बार येदियुरप्पा को हटाने की मांग होती रही है. 2011 में कोयला खनन मामले में नाम आने के बाद येदियुरप्पा को ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन, येदियुरप्पा के इस्तीफे से लिंगायत समुदाय की नाराजगी सामने आई थी. फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने पर उन्होंने भाजपा से किनारा कर अपनी नई पार्टी बना ली थी. 2013 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी के लिए इतने वोट पा लिए थे कि भाजपा सत्ता में नहीं आ सकी थी. जिसके बाद 2014 में मजबूरन भाजपा को उन्हें पार्टी में वापस लेना पड़ा था. वहीं, 2019 में 'ऑपरेशन लोटस' के सहारे भाजपा को फिर से सत्ता में लाने वाले येदियुरप्पा ही रहे हैं. वहीं, राज्य की 100 से ज्यादा विधानसभा सीटों के साथ पड़ोसी राज्यों में भी लिंगायत समुदाय का खासा प्रभाव है. येदियुरप्पा का इस समुदाय पर मजबूत पकड़ उन्हें सीएम पद के लिए ताकत देती है. इस स्थिति में भाजपा नए नेताओं को आगे बढ़ाने पर विचार तो कर सकती है. लेकिन, बिना येदियुरप्पा की मंजूरी के शायद ही वो कोई कदम बढ़ा सके.
येदियुरप्पा का क्या होगा?
वैसे, 2013 से 2021 तक में बहुत सी चीजें बदल गई हैं. 78 साल के येदियुरप्पा अब फिर से अपनी अलग पार्टी बनाकर नए सिरे से शुरुआत शायद ही करना चाहेंगे. येदियुरप्पा के बेटों को भी आगे भाजपा में ही अपना भविष्य टटोलना है, तो शायद वो पार्टी आलाकमान से नाराजगी मोल लेना नहीं चाहेंगे. माना जा सकता है कि भाजपा के पास अभी भी लिंगायत समुदाय में पकड़ रखने वाला येदियुरप्पा के कद का कोई नेता भले न हो. लेकिन, पार्टी के पास नेताओं की एक लंबी लिस्ट है, जो लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर जाने जाते हैं. इनमें से कई नाम येदियुरप्पा के करीबी भी माने जाते हैं.
माना जा रहा है कि येदियुरप्पा पर फैसला आने के बाद राज्य को नए मुख्यमंत्री के साथ ही नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिल सकता है. अन्य राज्यों की तरह यहां भी भाजपा आलाकमान चौंकाने वाला फैसला कर सकता है. कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद पर वोक्कालिंगा समुदाय के नेता को तरजीह दी जाएगी. वहीं, प्रदेश अध्यक्ष पद का दायित्व लिंगायत समुदाय के किसी नेता को सौंपा जा सकता है. वहीं, येदियुरप्पा अपनी उम्र के हिसाब से किसी प्रदेश के राज्यपाल बनकर नई जिम्मेदारी संभाल सकते हैं. लेकिन, कर्नाटक में भाजपा का रिस्क लेने वाला फैसला पूरी तरह से येदियुरप्पा की हामी पर निर्भर करता है. येदियुरप्पा को भाजपा यूं ही बिना सम्मानजनक विदाई दिए नहीं हटा सकती है.
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