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Updated: 03 सितम्बर, 2016 03:32 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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काफी लंबे समय से चल रहे उठा-पटक और कयासों के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी नयी पारी का आगाज कर ही दिया. उन्होंने 'आवाज-ए-पंजाब' के नाम से फ्रंट बनाने की घोषणा कर दी. राज्य सभा से इस्तीफा देने के बाद ये संभावना बन रही थी कि वे आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो सकते हैं, लेकिन कुछ कारणों से ये न हो पाया.

खबरों की मानें तो सिद्धू आप में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी चाहते थे. जबकि आप उन्हें स्टार प्रचारक तक ही सिमित रखना चाहती थी. यही बात सिद्धू को शायद नागवार गुजरी और उन्होंने एक नयी फ्रंट का आगाज कर दिया. इस नए फ्रंट में सिद्धू के अलावा पूर्व हॉकी खिलाडी परगट सिंह और बैंस बंधू भी शामिल हैं. सिद्धू की इस गूगली ने पंजाब की राजनीति में भूचाल ला दिया. आम आदमी पार्टी जो कि पंजाब में सत्ता पाने की ख्वाब देख रही थी उसे तो जोर का झटका लगा है.

ऐसा कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी से असंतुष्ट कई और लोग सिद्धू की पार्टी से जुड़ सकते हैं. ऐसा माना जा रहा है की बागी आप सांसद हरिंद्र सिंह खालसा और धर्मवीर गांधी के अलावा जगमीत सिंह बराड़ा, वीर दविंद्र सिंह सहित अन्य और बागी नेता भी इसमें शामिल हो सकते हैं.

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 सिद्धू के साथ परगट सिंह और बैंस बंधू

कुछ राजनीतिक समीक्षकों ने तो अभी से कहना शुरू कर दिया है कि सिद्धू के इस फ्रंट से सबसे ज्यादा नुकसान आप को ही उठाना पड़ेगा. उसके पीछे तर्क ये है कि दोनों पहली बार 2017 विधान सभा चुनाव लड़ेंगी और मतदाताओं के लिए दोनों नयी राजनीतिक पार्टिया होगी.

भाजपा, अकाली दल और कांग्रेस पंजाब राज्य में पहले से स्थापित पार्टी है. इन पार्टियों के अपने अपने वोट बैंक है और इन्हें चैलेंज करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. ऐसे में माने तो मुक़ाबला आप और सिद्धू की फ्रंट के बीच में ही रहेगा. अब देखना ये है कि किस पार्टी का पलड़ा विधान सभा के चुनाव में भारी रहता है.

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हाल के दिनों के घटनाक्रम को देखें तो आप की स्थिति अच्छी नजर नहीं आ रही है. पंजाब में आप दो फाड़ की और बढ़ रही है. पंजाब संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को पद से हटा दिया है. आप के कई कार्यकर्ता अभी भी छोटेपुर के साथ ही नज़र आ रहे हैं. खबर ये भी आ रही है की आप की पंजाब इकाई के कुल 13 जोनल प्रमुखों में से 7 ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाते हुए छोटेपुर के नेतृत्व में काम करने का ऐलान किया है. आप के कई वालंटियर संजय सिंह और दुर्गेश पाठक की कार्यशैली से खुश नहीं हैं.

इन स्थितियों में ये कहना कहीं से गलत नहीं है कि आज पंजाब में आप कठिन दौर से गुजर रही है और ऐसे में 2017 चुनाव में दिल्ली जैसा प्रदर्शन देना मुश्किल लग रहा है. आप के लिए पंजाब लिटमस टेस्ट से कम नहीं है. अपनी राजनीतिक जमीन पूरे भारत में फ़ैलाने के लिए आप अथक प्रयास कर रही है. वो पंजाब के अलावा गोवा और गुजरात में भी जड़ ज़माने की कोशिश कर रही है ताकि आने वाले विधान सभा चुनाव में अपना प्रभाव छोड़ सके.

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2014 लोक सभा चुनाव में आप पार्टी ने पंजाब में कुल 13 में से 4 सीट पर विजय पायी थी और उसे करीब 25 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ था. इस सफलता और जनता के विश्वास को देखते हुए आप पार्टी काफी पहले से पंजाब में विधान सभा चुनाव की तैयारी कर रही है. पंजाब की अकाली दल और भाजपा की गठबंधन वाली सरकार की नाकामियो को उजागर कर वो सत्ता हासिल करना चाहती है. जनता का मत हासिल करने के लिए अरविन्द केजरीवाल कई बार पंजाब का दौरा कर चुके है. जनता का रिस्पांस भी काफी उत्साह भरा रहा है. आम आदमी पार्टी इसे एक अवसर के रूप में देख रही है.

अब देखना ये है की नवजोत सिंह सिद्धू की आवाज-ए-पंजाब फ्रंट 2017 के विधान सभा चुनाव में आप के लिए घातक सिद्ध होते हैं या नहीं. सिद्धू की करिश्माई छवि केजरीवाल की करप्शन मुक्त राजनीति पर भारी पड़ती है या नहीं. चाहे 2017 विधान सभा चुनाव का रिजल्ट जो हो, सिद्धू के मास्टरस्ट्रोक ने पंजाब में अभी से राजनीतिक सरगर्मी को पूरे चरम पर पहुंचा दिया है.

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लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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