संघ के हाथ लगी लाठी हमें भैंस बनाकर छोड़ेगी
क्या गजेंद्र चौहान की मुखालफत सिर्फ 'हिंदू विरोधी' है? क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ इसलिए अपना एजेंडा लागू करने में जुट गया है क्योंकि सत्ता की लाठी उसके हाथ लग गई है?
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अरसा बीत गया. फिर भी मामला मालेगांव ब्लास्ट के इर्द गिर्द ही घूमता रहा है. 'भगवा आतंकवाद' का मुद्दा भी उसी प्रसंग में उछला था. रोहिणी साल्यान का ताजातरीन बयान तो इस आग में शुद्ध घी से भी तेज असर दिखाया.
क्या गजेंद्र चौहान की मुखालफत सिर्फ 'हिंदू विरोधी' है? क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ इसलिए अपना एजेंडा लागू करने में जुट गया है क्योंकि सत्ता की लाठी उसके हाथ लग गई है?
उनका ख्याल रखिएगा?
तब रोहिणी साल्यान मालेगांव ब्लास्ट केस में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर थीं. एक इंटरव्यू में साल्यान ने दावा किया कि एनआइए के एक अफसर ने खुद मिल कर उनसे आरोपियों के प्रति नरम रुख अपनाने को कहा. हालांकि, साल्यान ने उस अफसर का नाम बताने से इनकार कर दिया.
इस पर एनआइए की ओर से एक स्टेटमेंट आया जिसमें कहा गया, "एनआइए विशेष लोक अभियोजक को, एजेंसी के किसी अफसर द्वारा अनुचित ब्रीफिंग जारी करने या जिन एनआइए मामलों को वह देख रही हैं उनके अभियोजन कार्यों में अड़चन पैदा करने से पूरी तरह से इनकार करती है."
इसके साथ ही एनआईए के वकीलों की सूची से साल्यान का नाम हटा दिया गया. एनआईए के इनकार के बाद भी साल्यान अपनी बात पर कायम रहीं, "मैं आपराधिक मामलों की वकील हूं. मैं इतनी बेवकूफ नहीं जो किसी साक्ष्य के बगैर एजेंसी पर ऐसे आरोप मढ़ दूं."
इसी प्रसंग में बीजेपी नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने ट्वीट किया है, "मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा ने अपराध किया है तो उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए, लेकिन यदि निर्दोष हैं तो वे जेल में क्यों हैं? केवल इसलिए तो नहीं कि वे हिंदू संत हैं."
2014 के लोक सभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर 'भगवा आतंकवाद' फैलाने का आरोप लगाते रहे. अब जब संघ का राजनीतिक फोरम बीजेपी सत्ता में है, विपक्ष में आ चुकी कांग्रेस, सरकार पर संघ का एजेंडा लागू करने का आरोप लगा रही है.
स्मृति ईरानी का बचाव
इंडिया टुडे ग्रुप के एजुकेशन कॉन्क्लेव में जब मानव संसाधन मंत्री से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने काउंटर सवाल छोड़ दिए, "आज जिनसे पिछले वर्षों का हिसाब मांगा जा रहा है, उनमें बेचैनी है. जिन लोगों के नाम लेकर हम पर शिक्षा और शैक्षणिक संस्थानों के भगवाकरण का आरोप लग रहा है, वही लोग कांग्रेस के शासन काल में भी शिक्षण संस्थानों में या शिक्षा नीति तय करने वाले औहदों पर रह चुके हैं. तो क्या कांग्रेस भी आरएसएस के लोगों को नियुक्त करती थी?"
सरकार ने इस साल के आखिर तक नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने का लक्ष्य रखा है. पिछले हफ्ते संघ से जुड़ी शिक्षण संस्थाओं के पदाधिकारियों के साथ स्मृति ईरानी ने चर्चा की थी. इस दौरान आधुनिक शिक्षा में राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय गौरव और प्राचीन भारतीय मूल्यों को शामिल कर शिक्षा प्रणाली में बदलाव करने पर जोर देने को लेकर गहन विचार विमर्श हुआ. ये चर्चा ऐसे वक्त हुई जब नैनीताल में आरएसएस की तीन दिवसीय वार्षिक बैठक होने जा रही है.
मॉनसून सेशन में सरकार वैसे भी कई विवादों को लेकर विपक्ष के निशाने पर है. इस बीच तमाम संस्थानों में संघ से जुड़े लोगों को नियुक्ति का मामला तूल पकड़ता जा रहा है.
एक कॉलम में जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा लिखते हैं, "सबसे बुरे उदाहरण आईसीएचआर के चेयरपर्सन वाई सुदर्शन राव हैं, जिनके प्रकाशनों को लेकर इतिहासकार भी अनभिज्ञ हैं, और फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट के चेयरपर्सन गजेंद्र चौहान का तो उस फील्ड के अग्रणी लोगों में दूर दूर तक नाम नहीं हैं."
ऐसी बातों को स्मृति ईरानी सिरे से खारिज कर देती हैं. स्मृति ईरानी कहती हैं, "आईसीएचआर में योग्य शख्स की नियुक्ति हुई है और संघ से जुड़े लोगों की नियुक्ति के आरोप सरासर गलत हैं."
निशाने पर गजेंद्र चौहान
गजेंद्र चौहान की नियुक्ति का विरोध लगातार जारी है. विरोध करनेवालों में धीरे धीरे बॉलीवुड के कई सितारे भी शामिल हो चुके हैं. आरोप है कि चौहान की योग्यता औरों से सिर्फ इसीलिए ऊपर है क्योंकि वो संघ की विचारधारा से जुड़े हुए हैं.
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने चौहान के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों को ‘हिंदू विरोधी’ करार दिया है. मुखपत्र के एक लेख में महाभारत में युधिष्ठिर के रूप में चौहान के शानदार अभिनय का जिक्र करते हुए प्रदर्शनकारियों पर कटाक्ष किया गया है, ‘‘पुणे के फिल्म और टेलीविजन संस्थान ने देश में एकमात्र ऐसे संस्थान का दर्जा हासिल किया है जहां छात्रों के पास सरकार द्वारा नियुक्त संस्थान के प्रमुख की नियुक्ति को वीटो करने का अधिकार है.’’
आईआईटी में रामदेव
योग, आयुर्वेद, एक्युप्रेशर के जरिए कैंसर और एड्स से लेकर होमोसेक्सुअलिटी तक के इलाज का दावा करने वाले बाबा रामदेव अब आईआईटी को गाय और बैल के जेनेटिक कोड पर शोध की सलाह दे रहे हैं. रामदेव ने ये सुझाव कहीं बाहर से नहीं बल्कि आईआईटी दिल्ली में 'उन्नत भारत योजना' की एक मीटिंग में बतौर गेस्ट शामिल होते हुए दी है. मानव संसाधन मंत्रालय की उन्नत भारत योजना असल में आईआईटी दिल्ली की ही एक पहल बताई जा रही है. ये बात उस मीटिंग मिनट से निकलकर सामने आई है.
इतिहास के निरपेक्ष होने पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोग वामपंथी इतिहासकारों पर तथ्यों से घालमेल का आरोप लगाते रहे हैं. ऐसे में इतिहास का हाल उस भैंस जैसा होने लगा है जिसे उस खूंटे से बांध दिया जाएगा जिसके हाथ में सत्ता की लाठी होगी. मौजूदा हालात में इतिहासकार गुहा का ये ट्वीट और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, "इतिहास के सर्वश्रेष्ठ जानकार न तो मार्क्सवादी होते हैं, न ही हिंदूवादी. ज्ञान प्राप्ति के रास्ते में विचारधाराओं से संबंधित पूर्वाग्रहों के लिए कोई जगह नहीं होती."
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