मैं गुलाम अली को सुनूं तो क्या शिवसेना मेरे बेडरूम में आ जाएगी?
LOC पर सैनिक होने के मुकाबले मुंबई की एक शाखा में बैठकर बहादुर बनना आसान है. शिवसेना ने एक म्यूजिक कंसर्ट को रोक दिया है, इसलिए आईएसआई आतंक को प्रायोजित करना बंद नहीं कर देगी.
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तो शिव सेना फिर खबरों में है. मुझे लगता है कि उसे फ्रंट पेज पर जगह मिले एक अरसा हो गया था. लिहाजा वह उसी पॉलिटिक्स पर उतर आई, जहां से उसे ऑक्सीजन मिलती है. अपने चिरपरिचित 'दुश्मन' को टारगेट करना. उन्होंने सुनिश्चित किया कि मुंबई में गुलाम अली की कंसर्ट नहीं होने देंगे, क्योंकि उद्धव ठाकरे ऐसा ही चाहते हैं. बावजूद इसके कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पाकिस्तानी गायक को पूरी सुरक्षा देने का वादा किया है. क्या हमें यह समझ लेना चाहिए कि मुख्यमंत्री और राज्य का प्रशासनिक तंत्र उद्धव ठाकरे के हुक्म का गुलाम है?
हमें बताया गया कि गुलाम अली का मुंबई में स्वागत नहीं हो सकता है, क्योंकि यहां के रहवासियों ने 26/11 हमले में भूमिका के लिए पाकिस्तान को माफ नहीं किया है. तो गुलाम अली का दिल्ली में स्वागत है, वे प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में भी गा सकते हैं, लेकिन मुंबई में नहीं क्योंकि लोगों में आतंकी हमले और आतंक को बढ़ावा देने को लेकर पाकिस्तान के प्रति गुस्सा है. क्या ये विश्वास करने लायक है कि सिर्फ मुंबईकर ही यह भाव रखते हैं कि एक गायक को गाने से रोक दिया जाए, जबकि बाकी देश उसके प्रति सहानुभूति जता रहा है?
तो उनका क्या जो गुलाम अली की गायकी को सुनना चाहते हैं, जो शायद उस 'बहुसंख्यक' विचार से सहमत न हों, जो यह मानते हों कि संगीत हर सीमा से परे है. ऐसे लोगों की आवाज कोई अहमियत नहीं रखती या मुंबई की एकमात्र प्रवक्ता शिवसेना ही है? आप कह सकते हैं कि ऐसा तो हमेशा से होता आया है. वह शिवसेना ही तो थी, जिसने भारत-पाक सीरीज से पहले क्रिकेट पिच खोद दी थी? और तब की कांग्रेस सरकार ने उसे दबे स्वर में अवांछनीय बर्ताव बताकर इतिश्री कर ली थी? हां, ऐसा ही हुआ था, और क्रिकेट फेंस दुर्भाग्यवश असहाय रह गए थे. वैसे ही जैसे कि अब हम जैसे लोगों को उस महान गायक को सुनने से रोक दिया गया है.
तो एक अजमल कसाब ने जो किया, उसका बोझ गुलाम अली को उठाना होगा. क्या बदला लेने के लिए पूरे देश का यही एक 'सामूहिक विचार' हो सकता है? चूंकि हम पाकिस्तान में मौजूद लश्कर कैंप को तबाह नहीं कर सकते, इसलिए ये आसान है कि यहां के म्यूजिक कंसर्ट को ही रोक दें. LOC पर सैनिक होने के मुकाबले मुंबई की एक शाखा में बैठकर बहादुर बनना आसान है. शिवसेना ने एक म्यूजिक कंसर्ट को रोक दिया है, इसलिए आईएसआई आतंक को प्रायोजित करना बंद नहीं कर देगी.
तो दोस्तों, बढ़ती असहिष्णुता अब गुंडागर्दी के सबसे गंदे स्तर तक जा पहुंची है. किसी दिन एक भीड़ दादरी में एक व्यक्ति की जान ले लेती है, दूसरे दिन मुंबई में एक कंसर्ट रोक दी जाती है. कथित 'राष्ट्रवाद' के नाम पर धार्मिक एजेंडा लागू करने के लिए ताकत का इस्तेमाल करना भी वैसा ही है. और हम चुप रहते हैं, क्योंकि हम बोलने से डरते हैं. या सत्ताधारी को चुनौती देकर हमें बहुत कुछ खोना पड़ सकता है.
माफ कीजिए, मुझे चुप्पी से नफरत है और मैं म्यूजिक पसंद करता हूं. इसलिए मैं आज सोने से पहले गुलाम अली के गाने अपने आईपॉड पर सुनूंगा. अब शिवसेना मेरे बेडरूम में तो नहीं आएगी, या फिर आ जाएगी?
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