क्या शशिकला के राज में भी नटराजन के लिए 'नो-एंट्री' बोर्ड लगा रहेगा?
शशिकला भले ही तमिलनाडु की सत्ता का एपिसेंटर बन गई हों, लेकिन उनके लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है कि वो इस भूमिका में किसे आने देना चाहेंगी.
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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बावजूद डोनॉल्ड ट्रंप सत्ता का वो स्वाद अब तक नहीं चख पाए होंगे जो बगैर AIADMK की सदस्यता लिये शशिकला नटराजन एंजॉय कर रही हैं. अब तो शशिकला के फेमिली वाले और रिश्तेदार भी एक्टिव हो गये हैं. इनमें खास तौर पर चर्चा में वो शख्स है जिसे जयललिता ने खुद बाहर का रास्ता दिखाया था- और शशिकला की सशर्त वापसी हो पायी थी. तब शशिकला के सामने शर्त रखी गयी कि वो जयललिता या उस शख्स में से किसी एक को चुनें. वो शख्स कोई और नहीं बल्कि शशिकला के पति एम नटराजन थे, जिन्हें छोड़ कर करीब सौ दिन बाद शशिकला जयललिता के पास पोएस गार्डन लौट आईं.
पोएस गार्डन में शशिकला का ही हुक्म चलता है |
तब से पोएस गार्डन में शशिकला का ही हुक्म चलता है जो आज तक बरकरार है. लेकिन क्या बदले हुए राजनीतिक हालात का नटराजन को भी कोई फायदा मिलेगा या फिर आगे भी उनके लिए नो एंट्री का ही बोर्ड लगा रहेगा?
पोएस गार्डन बोले तो...
पोएस गार्डन का मतलब पहले भी पावर सेंटर था - और अब भी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम से लेकर सारे मंत्री और अफसर हाजिरी लगा रहे हैं. पनीरसेल्वम और मंत्रियों के अलावा भी सैकड़ों लोग ठीक वैसे ही कतार में लगे हैं जैसे देश भर में बैंकों और एटीएम के बाहर. शशिकला को लेकर भी ज्यादातर का अनुभव वैसा ही हो रहा होगा जैसे घंटों कतार में लगे रहने के बाद नोटों को लेकर हो रहा है.
नटराजन को जयललिता के अंतिम संस्कार के वक्त मौके पर मुस्तैदी के साथ डटे नजर आये. उन्हें प्रधानमंत्री के साथ भी बातचीत करते देखा गया.एक इंटरव्यू में नटराजन ने कहा कि कोई अदना सा कार्यकर्ता भी पार्टी को बहुत आगे ले जा सकता है. उनकी राय में AIADMK के साथ जयललिता और उनके राजनीतिक गुरु एमजीआर का नाम जुड़ा होना ही काफी है.
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पोएस गार्डन में शशिकला के करीबी लोग मन्नारगुडी माफिया के तौर पर जाने जाते रहे हैं - जिन्हें एक वक्त जयललिता का इशारा मिलते ही धक्के मार कर निकाल दिया गया था.
अब जबकि सारी चीजें शशिकला के कंट्रोल में हैं - मन्नारगुडी माफिया के फिर से प्रभावी होने की आशंका बढ़ गयी है. वैसे ये सब इतना आसान भी नहीं है क्योंकि AIADMK में दूसरा धड़ा भी खासा एकजुट है.
तो क्या नटराजन फिर से तमिलनाडु की मेनस्ट्रीम राजनीतिक का हिस्सा बनने जा रहे हैं? इस सवाल का जवाब तभी मिल पाएगा जब खुद शशिकला की औपचारिक भूमिका तय हो पाये.
पार्टी की कमान किसे?
शशिकला भले ही तमिलनाडु की सत्ता का एपिसेंटर बन गई हों, लेकिन उनके लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है कि वो इस भूमिका में किसे आने देना चाहेंगी. क्या इस भूमिका में वो अपने पति नटराजन को मौका देना चाहेंगी, फिलहाल इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. क्या वो किसी करीबी को पार्टी की कमान संभालने को कहेंगी या पनीरसेल्वम को ही ये जिम्मेदारी भी थमा देंगी. या फिर खुद इस भूमिका में आना चाहेंगी.
जहां तक शशिकला की बात है तो वो भी पनीरसेल्वम की तरह थेवर समुदाय से आती हैं - और दोनों पदों पर एक ही समुदाय का कब्जा होना पार्टी के दूसरे धड़े को नाराज कर सकता है. ये खतरा वो कभी नहीं मोल लेना चाहेंगी.
इतना ही नहीं आय से अधिक संपत्ति के मामले में जयललिता के बाद दूसरा नंबर उन्हीं का है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. अगर शशिकला पार्टी महासचिव बनने की सोचती हैं और कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आता है तो उस स्थिति में क्या होगा. शशिकला कोई जयललिता तो हैं नहीं कि पनीरसेल्वम उनका भी वैसे ही इंतजार करेंगे.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार ज्यादा संभावना है कि लोक सभा के डिप्टी स्पीकर एम थम्बीदुरई को AIADMK की कमान सौंप दी जाए. उनका प्लस प्वाइंट है कि वो पार्टी के दूसरे धड़े यानी गाउंडर समुदाय से आते हैं और अनुभवी नेता हैं.
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आरके नगर का राजा कौन?
अब एक और खास बात गौर करने वाली है. जयललिता के निधन से चेन्नई के आरके नगर की सीट खाली हो चुकी है - जहां देर सवेर जब भी हो उपचुनाव कराया जाना है. ये उपचुनाव इस मायने में भी महत्वपूर्ण हो सकता है कि AIADMK की ओर से किसे उम्मीदवार बनाया जाता है.
हो सकता है शशिकला की नजर उस सीट पर भी हो. शशिकला अभी तक AIADMK की सदस्य भी नहीं हैं - लेकिन अगर आरके नगर से चुनाव लड़ने का मन बनाती हैं तो नई संभावनाओं के द्वार खुलने तय हैं. विधानसभा चुनाव लड़ने का मतलब वो मुख्यमंत्री भी बनना चाहेंगी. लेकिन क्या ऐसा मुमकिन है?
संभावना पूरी तरह हां में भी है और ना में भी. एक रिपोर्ट के मुताबिक सौ से कुछ ज्यादा विधायक फिलहाल पूरी तरह शशिकला के प्रभाव में हैं. हालांकि, गाउंडर समुदाय के विधायक पूरी तरह इनके खिलाफ होंगे. ऐसे में शशिकला की ये मंशा पूरी हो पाएगी कहना मुश्किल है.
अहम बात ये भी है कि अगर ऐसी कोई सियासी साजिश नहीं रची गयी और पनीरसेल्वम कुछ दिन सरकार चला ले गये तो उनकी स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी. पनीरसेल्वम की खासियत ये है कि लोगों को उन पर बाकियों के मुकाबले ज्यादा भरोसा होगा. इससे पहले दो बार वो मुख्यमंत्री रह चुके हैं - और जयललिता की नीतियों पर पूरी तरह अमल करते रहे हैं. पनीरसेल्वम नया कुछ न भी करें और जयललिता की नीतियों पर अमल करते रहें और चुनावी वादे पूरे करते रहें तो जनता में पार्टी की लोकप्रियता बरकरार रहेगी.
ये सब तभी संभव है जब केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के नेता तमिलनाडु में भी अरुणाचल और उत्तराखंड जैसे एक्सपेरिमेंट न करें और विपक्षी डीएमके भी कोई फायदा न उठा पाये. इन हालात में तो फिलहाल नटराजन के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा ही नजर आ रहा है.
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