कोरिया पर आठवीं बार आर्थिक प्रतिबंध के नफा-नुकसान !
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यदि चीन और रूस जन दबाव में आकर 8वी बार लगाए जाने वाले आर्थिक प्रतिबंध का समर्थन करते हैं. तब भी वास्तव में वे क्या इसे क्रियान्वित करेंगे?
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कोरियाई प्रायद्वीप में 3 सितंबर को हाइड्रोजन बम परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में जो खलबली मची हुई है, वह लगातार बनी हुई है. अमेरिका, दक्षिण कोरिया में "थाड" डिफेंस सिस्टम की तैनाती में लगा हुआ है. जापान, दक्षिण कोरिया और अमरीकी द्वीप गुआम में लोगों को परमाणु हथियारों से बचाव का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. उत्तर कोरिया ने सीमावर्ती क्षेत्रों में एंटी बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती की है. वहीं अमेरिका भी लगातार कोरियाई क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाता जा रहा है.
अब दुनिया की नजरें 11 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उत्तर कोरिया पर प्रस्तावित कठोरतम प्रतिबंधों पर होने वाले मतदान पर है. इसी बीच उत्तर कोरिया ने शनिवार 9 सितंबर को 69वां स्थापाना दिवस मनाया. उत्तर कोरियाई मुखपत्र "रोदोंग सिनमन" ने स्थापना दिवस के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को नजरअंदाज करते हुए और ज्यादा परमाणु हथियारों का निर्माण करने की अपील की. उसका यह बयान तब आया है, जब पूरे विश्व में अटकलें लगाई जा रही हैं कि उत्तर कोरिया एक और मिसाइल परीक्षण अथवा परमाणु परीक्षण कर सकता है.
कोरिया का बम वार!
उत्तर कोरिया ने पिछले वर्ष 9 सितंबर को ही 5वां परमाणु परीक्षण किया था. इस बार अपने स्थापना दिवस से एक सप्ताह पूर्व ही उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण किए हैं. उत्तर कोरियाई मुखपत्र ने कहा है कि अमेरिका जब तक उत्तर कोरिया के खिलाफ शत्रुतापूर्ण नीति पर टिका रहता है, वह अलग-अलग बनावटों और आकारों का तोहफे प्राप्त करता रहेगा. किम जोंग उन ने भी खुद आईसीबीएम परीक्षणों को उत्तर कोरिया की ओर से अमेरिका को तोहफा बताया था.
4 जुलाई और 28 जुलाई के उत्तर कोरियाई महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षणों के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा उत्तर कोरिया पर कठोर प्रतिबंध लगाया गया था. अमेरिका ने रूस और चीन को लंबी वार्ता के बाद इसके लिए तैयार किया था. सर्वसहमति से संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लगने के बाद अमेरिका को लगा था कि वह उत्तर कोरिया को वार्ता के मेज पर ले आएगा. लेकिन हुआ इसके विपरीत. अब फिर से अमेरिका, उत्तर कोरिया पर और भी कठिनतम प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयत्नशील है. इन प्रतिबंधों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोमवार, 11 सितंबर को मतदान प्रस्तावित है. ऐसे में प्रश्न उठता है कि ये नए प्रतिबंध अगस्त के प्रतिबंध से कितने भिन्न हैं तथा रूस और चीन क्या इसका समर्थन करेंगे?
नए प्रतिबंधों की आवश्यकता क्यों?
उत्तर कोरिया द्वारा 4 जुलाई एवं 28 जुलाई के बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षणों के बाद अगस्त में अमेरिकी पहल पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाया था. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें चीन और रूस का पूर्ण समर्थन भी प्राप्त था. ज्ञात हो कि चीन और रूस ही उत्तर कोरिया के सबसे बड़े व्यापार साझीदार हैं. उत्तर कोरिया का 89% व्यापार चीन के साथ है. जबकि रूस द्वितीय सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है. ऐसे में चीन और रूस के पूर्ण सहयोग के बिना उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंधों का कोई असर नहीं होगा. इसलिए 11 सितंबर को उत्तर कोरिया पर प्रस्तावित और अधिक कठोर प्रतिबंधों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में होने वाले मतदान पर पूरी दुनिया नजर बनाए हुए है. साथ ही संपूर्ण दुनिया फिर से चीन और रूस के तरफ भी देख रही है.
कोरिया ने सभी को पानी पिला दिया है
अगस्त के प्रतिबंध से उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था पर एक बिलियन डॉलर का प्रभाव पड़ा था. यह उसकी निर्यात संबंधी अर्थव्यवस्था का एक तिहाई हिस्सा था. अगस्त के संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध से उत्तर कोरिया से कोयला, लेड, मछली और अन्य सी फूड लेने पर रोक लगाई गई थी. इसके अतिरिक्त उत्तर कोरिया पर विदेश में अपने कामगारों की संख्या बढ़ाने पर भी रोक थी. वर्ष 2006 से परमाणु परीक्षण के बाद अब 8वीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी हो रही है. क्योंकि अगस्त में 7 वें आर्थिक प्रतिबंध के बाद तो उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम परीक्षण ही कर लिया.
नए प्रस्तावित आर्थिक प्रतिबंध-
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उत्तर कोरिया के नए कठोरतम आर्थिक प्रतिबंधों पर 11 सितंबर को मतदान होना है. इस प्रतिबंध में उत्तर कोरिया के तेल प्रतिबंध तथा उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग उन की संपत्ति जब्त करना शामिल है. इस प्रस्ताव में उत्तर कोरिया को होने वाली कम से कम 80% से ज्यादा तेल सप्लाई और उसके टैक्सटाइल निर्यात की खरीद पर रोक लगाने की मांग की गई है.
यूएनएससी का फैसला अहम होगा
इसमें किम जोंग उन की निजी संपति जब्त करने के साथ-साथ उनकी यात्राओं को प्रतिबंधित करना भी शामिल है. इसके अतिरिक्त उत्तर कोरियाई श्रमिकों को विदेशों में भर्ती करने पर भी रोक भी शामिल है. इन उत्तर कोरियाई श्रमिकों को किसी भी प्रकार के आर्थिक सहयोग पर भी रोक की बात प्रस्तावित आर्थिक प्रतिबंध में है. अगर इन प्रस्तावित प्रतिबंधों को देखा जाए तो उत्तर कोरिया को केवल जीवनोपयोगी वस्तुओं की ही आपूर्ति हो सकेगी. इसका आशय है कि उत्तर कोरिया का हुक्का पानी बंद करने का पूर्ण इंतजाम इस नए प्रस्तावित आर्थिक प्रतिबंध में है. जिसके बाद वहां के लोग बस किसी तरह जीवित रह पाएंगे. उत्तर कोरियाई मजदूरों पर विदेश में प्रतिबंध लगने से वहां के नागरिकों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं रह पाएगा. रूस में एक अनुमान के अनुसार कम से कम उत्तर कोरिया के 30 हजार से ज्यादा श्रमिक कार्यरत हैं. उन पर भी इसका असर होगा. इस संकट में चीन, रूस और उत्तर कोरिया का एक धड़ा तथा दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और दक्षिण कोरिया को स्पष्टत: देखा जा सकता है. ऐसे में एक ही प्रश्न उठता है कि नए प्रस्तावित आर्थिक प्रतिबंधों को 11 सितंबर को रूस और चीन का समर्थन प्राप्त हो सकेगा?
क्या 11 सितंबर को नए प्रस्तावित कठोरतम आर्थिक प्रतिबंधों पर चीन और रूस का समर्थन मिलेगा?
चीन और रूस दोनों उत्तर कोरिया पर और ज्यादा आर्थिक प्रतिबंध लगाने का विरोध कर रहे हैं. दोनों ही देश उत्तर कोरिया में तेल सप्लाई करते हैं और इन दोनों के पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि- 'उनका देश उत्तर कोरिया को 40 हजार टन तक ही तेल की सप्लाई करता है, जो कि बहुत ही कम मात्रा है. उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया पर और अधिक प्रतिबंध लगाना कोई उपाय नहीं है.' उन्होंने कहा था, 'उत्तर कोरिया घास खाकर गुजारा कर लेगा, लेकिन अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ेगा.' पुतिन ने उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण की आलोचना करने के बावजूद उसका बचाव करते हुए कहा कि- 'उत्तर कोरिया के लोग इराक में सद्दाम हुसैन के कथित हथियार बढ़ाने के कार्यक्रम को लेकर उस पर हुए अमरीकी हमलों को नहीं भूले हैं और इसलिए उन लोगों को लगता है कि अपनी सुरक्षा के लिए उसे परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाना होगा.' रूस का कहना है कि- 'हम क्या करने वाले हैं? तेल की सप्लाई बंद कर दें ताकि वहां के मरीजों को अस्पताल पहुंचाने वाले एंबुलेंस तक काम नहीं कर सके.' दरअसल रूस और चीन दोनों ही मानवीय पहलुओं को उठाकर प्रस्तावित प्रतिबंधों का खुलकर समर्थन नहीं कर रहे हैं.
अगस्त के प्रतिबंध के पूर्व भी चीन और रूस प्रतिबंधों का विरोध कर रहे थे. परंतु ट्रंप ने सर्वसहमति से संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधों को पारित कर अपनी कूटनीतिक सर्वश्रेष्ठता प्रदर्शित की थी. क्या ट्रंप इस 11 सितंबर को भी उसी प्रकार की कूटनीतिक सफलता प्राप्त कर सकेंगे? साउथ चाईना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार बुधवार देर रात अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मध्य फोन पर उत्तर कोरिया पर प्रस्तावित आर्थिक प्रतिबंधों पर वार्ता हुई. साउथ चाईना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार इस वार्ता के बाद चीन ने 11 सितंबर के मतदान के लिए कुछ सकारात्मक संदेश दिए हैं. चीनी विदेश मंत्री ने कहा है कि चीन प्योंगयांग पर दबाव बनाने के लिए समुचित कार्रवाई करेगा. यद्यपि चीनी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि- 'उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना केवल आधा समाधान है. जबकि वार्ता और मध्यस्थता ही इसके समाधान को पूर्ण करते हैं.'
चीन से कुछ सकारात्मक संदेशों के बावजूद रूस अब तक इन प्रस्तावित प्रतिबंधों का विरोध ही कर रहा है. लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा था कि पिछले बार भी चीन और रूस विरोध कर रहे थे. परंतु अमेरिका ने लंबी वार्ता के बाद दोनों को मना लिया था. इस तरह 11 सितंबर को ट्रंप के कूटनीतिक कौशल को दुनिया देखेगी. क्या वे फिर पुराने कूटनीतिक सफलता को दोहरा पाएंगे? इसी पर प्रस्तावित प्रतिबंधों का भविष्य भी संबद्ध है.
लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यदि चीन और रूस जन दबाव में आकर इस अत्यधिक कठोर प्रतिबंध का समर्थन करते हैं. तब भी वास्तव में वे क्या इसे क्रियान्वित करेंगे? यह मूल प्रश्न अब भी बना हुआ है. पिछली बार के कठोर प्रतिबंधों के असफल होने का कारण यही रहा कि आंतरिक तौर पर उत्तर कोरिया को रूस और चीन का समर्थन प्राप्त रहता है. ध्यान रहे उत्तर कोरिया पर यह 8वीं कठोरतम आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात हो रही है. इसलिए उत्तर कोरियाई संकट का समाधान अभी भी निकट भविष्य में दिखाई नहीं दे रहा है.
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