बीजेपी के लिए सौराष्ट्र में चुनावी फतह काफी मुश्किल
2015 के म्युनिसिपल चुनाव में बीजेपी को कई म्यूनिसपेलिटीज़ और जिला पंचायत में हार का सामना करना पड़ा था. 2001 से 2014 के बीच जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब बीजेपी को किसी भी चुनाव में हार का सामना नहीं करना पड़ा था.
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गुजरात विधानसभा के चुनाव दो चरणों में होने वाले हैं. सौराष्ट्र और कच्छ के क्षेत्र में चुनाव 9 दिसंबर को होना है. इसी क्षेत्र में बीजेपी को सबसे अधिक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. यहां की 54 विधानसभा सीटें बीजेपी के लिए काफी महत्व रखती हैं. 2012 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सौराष्ट्र और कच्छ के 54 सीटों में से 39 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी. इस बार बीजेपी के लिए मुसीबत ये है कि 2012 के विपरीत इस बार मोदी की प्रत्यक्ष तौर पर उपस्थिति नहीं रहेगी. कमान इस बार अमित शाह के हाथ में है. नोटेबंदी, जीएसटी और पाटीदार आरक्षण मामले में बीजेपी को इस क्षेत्र में वोटरों के नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी सौराष्ट्र के क्षेत्र से ही आते हैं और उनपर बीजेपी के गढ़ को बचाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी रहेगी.
बीजेपी के लिए क्या है परेशानी-
सौराष्ट्र हमेशा से बीजेपी का परंपरागत गढ़ रहा है. लेकिन इस बार बीजेपी को दो साल से चल रहे पट्टीदार आंदोलन के आफ्टर इफेक्ट्स से दो-चार होना पड़ेगा. कांग्रेस पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को अपने पक्ष में करने के लिए तरह-तरह से डोरे डाल रही है. राहुल गांधी ने सितम्बर में गुजरात के चुनावी अभियान की शुरुआत भी सौराष्ट्र से ही किया था.
हार्दिक-राहुल के बीच की बातचीत बीजेपी को चिंता में डाल रही है
नोटबंदी और जीएसटी के दोहरे मार से जूझ रहे यहां का व्यापारी वर्ग भी बीजेपी से खासा नाराज है. 2015 के म्युनिसिपल चुनाव में बीजेपी को यहां से कई म्यूनिसपेलिटीज़ और जिला पंचायत में हार का सामना करना पड़ा था. 2001 से 2014 के बीच जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब बीजेपी को किसी भी चुनाव में हार का सामना नहीं करना पड़ा था. पाटीदार लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए ही अगस्त 2016 में आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे देना पड़ा थआ और इसके बाद सौराष्ट्र के विजय रुपानी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
सौराष्ट्र में बीजेपी की एक और मुश्किल-
सौराष्ट्र में चुनाव के दौरान पटेल और राजपूत एक-दुसरे के विरोध में नजर आते हैं. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में दोनों साथ में खड़े नजर आ रहे हैं. और ये बीजेपी के लिए एक बहुत बड़ी परेशानी की बात है. पहली बार कारडिया राजपूत और पटेल समुदाय का साथ आना बीजेपी को मुश्किल में डाल सकता है. दोनों के साथ आने का कारण, बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी के खिलाफ उनका गुस्सा है. हार्दिक पटेल के अगुवाई में पटेल लोग वघानी पर आरोप लगा रहे हैं कि खुद पाटीदार होने के बावजूद वह आरक्षण को लेकर उनकी मदद नहीं कर रहे हैं.
कारडिया राजपूत के लोग जीतू वघानी को अपना विरोधी मानते हैं. वो पहले ही वघानी का राजपूतों के खिलाफ होने की बात कहकर बीजेपी को वोट न करने का मत रख चुके हैं. अभी तक दोनों समुदाय के लोगों को मनाने में बीजेपी सरकार के सभी प्रयास विफल रहे हैं. यहां तक कि कारडिया समुदाय के नेता और मंत्री जाशा बराड द्वारा इनको मनाने का प्रयास भी कोई रंग नहीं लाया है.
कारडिया राजपूत ओबीसी वर्ग के अंदर आते हैं और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर का कांग्रेस के साथ जाना बीजेपी के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर रहा है. बीजेपी को डर यह भी लग रहा है कि यहां पर कारडिया राजपूत का समर्थन नहीं देना पुरे गुजरात में कारडिया राजपूत को उनके खिलाफ एकजुट कर सकता है. कारडिया राजपूत ये दावा करते हैं कि उनका वोट राज्य के करीब 25 सीटों के रिजल्ट को प्रभावित कर सकता है.
अमित शाह के हाथ में है सौराष्ट्र की बागडोर
बीजेपी का सौराष्ट्र प्लान-
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 7 नवंबर से सौराष्ट्र का दौरा करने वाले हैं. उस दौरान वे करीब तीन दिन इस क्षेत्र में रहेंगे. वे यहां पर कई रैलियों को सम्बोधित करेंगे. उस क्षेत्र में किये गए राज्य और केंद्र के कामों का लेखा-जोखा वे सौराष्ट्र के जनता को देने का प्रयास करेंगे.
अगर खबरों की माने तो बीजेपी कार्यकर्ताओं को ये भी निर्देश दिए गए हैं कि वो चुनाव के दिन यानी 9 दिसंबर से पहले करीब तीन बार हरेक वोटरों से मिलने का प्रयास करें. करीब 1.5 करोड़ वोटर से संपर्क स्थापित करने के लिए बीजेपी जान लगा देना चाहती है. बीजेपी द्वारा किये गए काम को जनता के सामने रखने के साथ-साथ, उम्मीदवार के नाम का ऐलान होने तक और अंतिम समय तक बूथ और वोट नंबर बताने तक बीजेपी कार्यकर्ता सौराष्ट्र और कच्छ के वोटरों को अपने पक्ष में वोट डालने का प्रयास करेंगे.
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