छठ के बहाने पूर्वांचल के वोट बैंक पर है पार्टियों की नजर?
आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक पार्टियां पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले लोगों (पूर्वांचलियों) को अपनी ओर खींचने की कोशिशों में जुटी हैं, लेकिन क्यों?
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अरविंद केजरीवाल ने इस बार छठ पर्व (17 नवंबर) पर दिल्ली में सरकारी अवकाश और शहर के करीब सौ छठ घाटों पर सरकार द्वारा पूजा के इंतजाम का ऐलान किया था. केजरीवाल की यह कोशिश सिर्फ इस पर्व को अच्छे तरीके से मनाने की ही नहीं है बल्कि इसके राजनीतिक मायने भी हैं.
दरअसल न सिर्फ आम आदमी पार्टी बल्कि बीजेपी और कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक पार्टियां पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले लोगों (पूर्वांचलियों) को अपनी ओर खींचने की कोशिशों में जुटी है. दिल्ली के कुल वोट में इन पूर्वांचलियों का हिस्सा करीब 25 फीसदी है और यही कारण है कि सभी पार्टियां इस वोट बैंक पर नजरें गड़ाए बैठी हैं.
बीजेपी, आप और कांग्रेस सबकी नजरें पूर्वांचल के वोट परः
पूर्वांचलियों की दिल्ली की राजनीति में अहमियत सबसे पहले बीजेपी ने पहचानी थी. दिल्ली की 1.5 करोड़ की आबादी में करीब 40 लाख लोग पूर्वांचल के हैं. इसी को देखते हुए बीजेपी ने 2007 के नगर निगम चुनावों में 25 पूर्वांचली उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और जबर्दस्त जीत हासिल की थी. यह न सिर्फ बीजेपी बल्कि राजधानी की सभी पार्टियों के लिए पूर्वांचलियों की अहमियत पहचानने का सबसे बड़ा संकेत थी. इतना ही नहीं पूर्वांचलियों को लुभाने के लिए पिछले साल राष्ट्रपति शासन के दौरान दिल्ली में छठ पूजा पर सरकारी छुट्टी की घोषणा की गई थी. बीजेपी ने इसका श्रेय खुद को देते हुए कहा था कि इससे पूर्वांचलियों की लंबे समय से आ रही मांग को पूरा किया गया है. इस बार भी पार्टी ने छठ पूजा के दौरान बिहार जाने वाले लोगों को दिक्कत न हो इसके लिए कई अतिरिक्त ट्रेनें चलाईं और रेलवे स्टेशनों को छठ के रंग में रंग दिया गया और छठ की बधाई के पोस्टर और भोजपुरी गानों से उन्हें अपनेपन का अहसास कराने की कोशिश की गई.
इससे सबक लेते हुए 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने पश्चिमी दिल्ली से महाबल मिश्रा को मैदान में उतारा और इस संसदीय क्षेत्र में पंजाबियों के बराबर ही दखल रखने वाले पूर्वांचलियों की वोटों की बदौलत महाबल मिश्रा जीत गए. कांग्रेस भले ही पिछले विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गई लेकिन पूर्वांचलियों के वोटों पर सेंध लगाने की कोई भी कोशिश नहीं छोड़ती. इसीलिए जब केजरीवाल सरकार ने छठ पर्व के लिए इस बार घोषणाएं कीं तो कांग्रेस ने पूर्वांचालियों के इलाकों में गंदगी और बदइंतजामी के लिए केजरीवाल सरकार की कड़ी आलोचना.
वहीं आम आदमी पार्टी को शुरू से ही पूर्वांचलियों का जबर्दस्त समर्थन मिलता रहा है. इसकी वजह यह है कि बाहर से दिल्ली में आए यूपी-बिहार के लोगों को कदम-कदम पर लाइसेंस बनावाने, गैस कनेक्शन लेने से लेकर किराएदार बनने तक में सरकारी अधिकारियों और पुलिस के भ्रष्टाचार का सबसे ज्यादा शिकार होना पड़ा. इसलिए आम आदमी पार्टी ने जब पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा तो बुराड़ी से बीजेपी के पूर्वांचल नेता को हराने के लिए पूर्वांचल के ही अजित झा को उतारा और जीत हासिल की. एक साल बाद फिर से हुए विधानसभा चुनावों में आप ने पूर्वांचल के 10 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और ये सभी जीत गए और आप ने 70 में 67 सीटों पर कब्जा जमा लिया. सरकार बनाने के बाद भी आप ने पूर्वांचल के नेताओं का पूरा ख्याल रखा और दिलीप पाण्डेय को संयोजक, बंदना कुमारी को डिप्टी स्पीकर और कपिल मिश्रा और गोपाल राय को केजरीवाल सरकार में मंत्री बनाया.
दिल्ली की 70 में से करीब 25-30 सीटों का भविष्य तय करने में पूर्वांचल के वोटर्स काफी अहम भूमिका निभाते हैं. यही कारण है कि बीजेपी, आप और कांग्रेस जैसी सभी पार्टियां इन्हें लुभाने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहती हैं.
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