जंतर मंतर पर समर्थकों द्वारा पहलवानों पर बात उतनी ही है जितना दाल में नमक होता है!
पहलवान बनाम ब्रज भूषण शरण सिंह : खासी दिलचस्प है धरनास्थल की हकीकत. यूं तो धरने पर पहलवानों को समर्थन देने के लिए शाहीनबाग की दादी से लेकर किसानों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, छात्रों, वकीलों और खाप नेताओं का जमावड़ा है. लेकिन इनसे पहलवानों को कितना बल मिलेगा अभी इस बारे में कुछ कहना शायद जल्दबाजी ही होगा.
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सैटरडे या शनिवार छुट्टी का दिन रहता है. अच्छा चूंकि देश के लिए मैडल लाने वाले पहलवान जंतर मंतर पर धरना दे रहे थे. तो जितने भी पेंडिंग काम थे, ये सोचकर पहले ही निपटा लिए गए थे कि धरने पर जाना है. जंतर मंतर जाने के लिए दिल्ली के तमाम निवासियों की तरह मैंने भी मेट्रो रूट ही चुना और पहुंच गया जनपथ मेट्रो स्टेशन. मेट्रो स्टेशन पर भीड़ तो कम थी लेकिन स्टेशन के बाहर गाड़ियों की लंबी कतारें थीं जिनमें सरपंच, जाट, नंबरदार, प्रधान लिखा था. पता किया तो ये लोग भी जंतर मंतर की तरफ कूच कर रहे थे . जनपथ मेट्रो स्टेशन से जंतर मंतर वॉकिंग डिस्टेंस पर है. गर आपको पैदल चलने में गुरेज है तो स्टेशन के बाहर ही आपको ई रिक्शा या शेयरिंग में ऑटो मिल जाएंगे. जो आपको महज 10 रुपए में आपकी मंजिल यानी जंतर मंतर तक छोड़ देगा. दिल्ली में मौसम ने करवट ली है. पड़ने को तो अप्रैल- मई में ठीक ठाक गर्मी पड़ने की शुरुआत हो जाती है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. गर्मी के इन दिनों में मौसम थोड़ा ठंडा है. लेकिन जैसे ही हम जंतर मंतर पर पहुंचे उमस और गर्मी का आभास हुआ. गर्मी सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस के जवानों को देखकर लगी या फिर उसका कारण मीडिया के भारी भरकम कैमरे, माइक और ओबी वैन थे ये तो नहीं पता लेकिन माहौल गर्म था.
सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जंतर मंतर पर धरने पर बैठे पहलवान
जैसे ही आप जंतर मंतर पर एंट्री लेंगे और धरना स्थल की तरफ बढ़ेंगे आपकी नजरें पार्किंग स्थल से टकराएंगी. मेरी नजर भी टकराई और जो नजारा था उसे देखकर मैं दंग रह गया. HR 26. HR 29, HR 51, HR 22 पलवल, रोहतक, गुरुग्राम, मानेसर, फरीदाबाद, सोनीपत, रोहतक . चाहे बड़ी बड़ी आलीशान कारें हों या फिर बाइक्स जो भी वाहन वहां खड़े थे सब हरियाणा के थे. मैं इस नज़ारे को देख रहा था कि तभी दिल ने दिमाग को तसल्ली दी कि जब धरना हरियाणा के खिलाड़ियों का है तो जाहिर है पार्किंग में उन्हीं की गाड़ियां भी खड़ी होंगी. इन गाड़ियों को जेहन में रख सिक्योरिटी चेक कराने के बाद मैं सीधे वहां पहुंचा जहां खिलाड़ी थे.
... लंच टाइम था तो शायद खाना पीना हुआ था. बेहतरीन किस्म के कई टिफिन वहां रखे थे और जैसी खाने की पैकिंग थी उसे देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था कि खाना किसी अच्छे फाइव स्टार होटल से धरना स्थल पर लाया जा रहा है. खाने के अलावा जिस चीज ने ध्यान आकर्षित किया वो मिनिरल वॉटर की पेटियां थीं. अच्छी बात ये रही कि अगर आप पानी मांगेंगे तो आपको पानी मिल जाएगा और कोई उसे लेकर न नुकुर नहीं करेगा. बहरहाल जब मैं वहां पहुंचा तो बजरंग पुनिया सो रहे थे. विनेश फोगाट भी पैर में सिंथेटिक प्लास्टर बांधे आराम फरमा रही थीं जबकि साक्षी मलिक को लोगों ने घेर रखा था. लोग आते उनसे थोड़ी बहुत बातचीत करते सेल्फी ली जाती और लोगों का नया जत्था फिर खिलाड़ियों के सामने. (दिलचस्प ये कि जिस जगह खिलाड़ी थे वहां उस समय मीडिया की एंट्री बैन थी)
लोग आ रहे हैं और पहलवानों की आड़ लेकर जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं
जिस जगह खिलाड़ी हैं वहीं आगे दूर तक गद्दे बिछे हैं. जब खिलाड़ियों के पास भीड़ ज्यादा हो जाती है तो सुरक्षा घेरे में तैनात लोग आपको इन गद्दों पर बैठने के लिए कहते. मैं भी थोड़ी देर इन गद्दे पर बैठा और उन लोगों की बातों को सुना जो खिलाड़ियों को समर्थन देने के लिए आए थे. माइक पर एक महिला थी जो अपने को शाहीन बाग़ धरने की दादी बता रही थी. दिल्ली के ओखला की रहने वाली दादी ने भाजपा की बुराई करते हुए कहा कि पीएम मोदी सिर्फ बातें करना जानते हैं. वो खिलाड़ियों संग फोटो तो खिंचवाते हैं मगर जब बात उनकी समस्याओं को सुनने की आती है तो अपने को कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में व्यस्त कर लेते हैं.
दादी ने ये भी कहा कि पीएम मोदी और उनकी सरकार ने ऐसा ही काम तब किया था जब शाहीनबाग़ में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर धरना हुआ था. दादी को जो कहना था उन्होंने कहा. अच्छा क्योंकि वहां माइक का लाल बनने की पूरी स्वतंत्रता थी कोई भी माइक पकड़ के कुछ भी कह सकता था. अच्छा मेरे पहुंचने से थोड़ी देर पहले ही आम आदमी से अरविंद केजरीवालऔर मेयर शैली ओबेरॉय मौके से गए थे तो उनके द्वारा कही बातों को लेकर भी खूब खुसुर फुसुर हो रही थी.
महिला [पहलवानों को समर्थन देने आए केजरीवाल की बातों का सार यही था कि हर सूरत में महिला पहलवानों के साथ इंसाफ होना चाहिए. खिलाड़ियों की आड़ में केजरीवाल ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले किये और ये भी कहा कि बड़े नेताओं ने महिला खिलाड़ियों के साथ गलत किया है और उसकी के चलते ये लोग धरने पर बैठने को मजबूर हैं. इसी तरह मेयर शैली ओबेरॉय ने भी केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री और उनकी नीतियों की आलोचना की.
पहलवानों के समर्थक लगातार अपनी बातों से सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को बता चुके हैं कि मौके पर खिलाड़ियों के समर्थन में आए लोगों की एक बहुत बड़ी आबादी हरियाणासे थी इसलिए तमाम खापों से आए लोगों ने भी अपने मन की बात की और प्रधानमंत्री को खिलाड़ियों का दुश्मन कहा. जैसा आए हुए लोगों का अंदाज था ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये लोग एक खेल के रूप में कुश्ती या खिलाडियों के समर्थन में आए हैं. ये लोग बार बार 2024 लोक सभा चुनावों का जिक्र करते और पीएम मोदी और उनकी सरकार को सबक सिखाने की बात करते.
खाप नेताओं के अलावा हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए भारतीय किसान यूनियन के कई कार्यकर्ताओं ने भी इस धरने को हथियार बनाकर अपनी भड़ास निकाली. वाक़ई समझ में नहीं आया कि ये लोग महिला पहलवानों को समर्थन देने और ब्रजभूषण शरण सिंह को जेल भिजवाने के लिए जंतर मंतर आए हैं या फिर सरकार के प्रति अपनी खुन्नस निकालने. इन लोगों का कहना था कि यदि सरकार ने महिला पहलवानों की बातों को नहीं माना और ब्रजभूषण शरण सिंह को तत्काल प्रभाव से गिरफ्तार नहीं किया तो ये धरना अपने नेक्स्ट लेवल पर जाएगा और दिल्ली पुलिस कुछ वैसे ही नज़ारे देखेगी जैसे उसने किसान आंदोलन के वक़्त देखे.
इन किसान नेताओं ने अपने भाषणों में ट्रेक्टर का भी जिक्र किया और कहा कि अगर खिलाड़ियों को इंसाफ नहीं मिला तो एक बार फिर ट्रेक्टर दिल्ली की सड़कों पर दिखाई देंगे.
पहलवानों को कितना इंसाफ मिलता है अब इसका फैसला वक़्त ही करेगा
चाहे खिलाड़ियों को समर्थन देने के उद्देश्य से जंतर मंतर पहुंचे किसान नेता और खाप के सदस्य रहे हों. या फिर लेखक, वकील, स्टूडेंट्स, मानवाधिकार कार्यकर्ता और महिला मुद्दों पर मोर्चा खोलने वाले लोग. या तो इनके निशाने पर केंद्र सरकार की नीतियां और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना थी. या फिर उनका देश के गृहमंत्री और उनके बेटे के खिलाफ मोर्चा खोलना. धरने पर आने वाले लोग अपनी बातों की शुरुआत भले ही खिलाड़ियों और उनके शोषण से करते मगर जैसे जैसे उनकी बातें आगे बढ़ती महसूस यही होता कि 2014 आम चुनावों का बिगुल बज चुका है.
बहरहाल, जंतर मंतर पर मीडिया के कैमरों से घिरे खिलाड़ी अपने मकसद में कामयाब होते हैं और ब्रजभूषण शरण सिंह सलाखों के पीछे जाता है या नहीं. इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन जैसे हालात जंतर मंतर पर खिलाड़ियों के समर्थकों के हैं उनका अपना एजेंडा है जिसे वो देश के झंडे के साए में भली प्रकार पूरा कर रहे हैं.
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