फ्लोर टेस्ट का लाइव टेलीकास्ट बढ़िया रहा - मगर, क्या इसी के लिए लोगों ने वोट डाले थे?
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से लोकतंत्र कायम रहा. अब इसमें जीत कांग्रेस की हुई हो, या बीजेपी की हार. लाख टके का सवाल ये है कि कर्नाटक की जनता के हिस्सा में क्या आया? क्या गारंटी है कि ये सब आगे से नहीं होगा!
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अन्याय सहना या उसे होते देख मुंह मोड़ लेना भी अन्याय करने के बराबर ही माना जाता है - गोवा और मणिपुर की बात करें तो कांग्रेस पीड़ित भी रही और अगर उसके साथ अन्याय हुआ तो उसकी भूमिका मूकदर्शक जैसा ही सामने आयी. यही वजह रही कि कर्नाटक के लिए उसने पहले से ही कमर कस ली थी.
कर्नाटक को लेकर सारी तैयारी पूरी थी. प्रतिकूल हालात में उम्मीद की किरण सुप्रीम कोर्ट से ही नजर आ रही होगी, इसलिए पेटिशन का ड्राफ्ट भी तैयार रहा. खबर है कि जैसे जैसे डेवलपमेंट होते गये, कांग्रेस नेता और कानूनी पक्ष संभाल रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने तीन तीन बार ड्राफ्ट बदलवाये. फिर भी कोर्ट ने कांग्रेस की ज्यादातर मांगें खारिज कर दी. बावजूद इन सबके देखा जाये तो कोर्ट जाने के बाद कदम कदम पर बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत नजर आती है.
कोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर को नहीं हटाया
सच तो ये है कि कर्नाटक जो भी जुगाड़ पॉलिटिक्स चल रही है उसकी संस्थापक कांग्रेस ही रही है. फिर भी येदियुरप्पा की हड़बड़ी ने बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर दिया है. चुनाव हार कर भी कांग्रेस हीरो और सबसे ज्यादा सीटें जीत कर भी बीजेपी विलेन जैसी दिखायी दे रही है.
ठगे तो लोग जा रहे हैं!
सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस ने जो भी दलीलें पेश की हैं, सीधे सीधे खारिज नहीं हुई हैं - बल्कि, मूल बात पटरी से उतर न जाये इसलिए कई बातें छोड़ दी गयी हैं. कर्नाटक के केस में सुप्रीम कोर्ट का रूख पूरे वक्त फास्ट ट्रैक कोर्ट जैसा रहा है. आधी रात को अदालत लगाना ही इस बात का सबसे बड़ा सबूत है. सबसे पहले तो कांग्रेस चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट बीएस येदियुरप्पा के शपथग्रहण पर ही रोक लगा दी जाये, लेकिन कोर्ट ने ऐसा नहीं किया. मगर, कोर्ट को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन की बात सुनवाई के लायक लगी - और फिर उसे बदलते हुए एक दिन कर दिया.
कांग्रेस ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति में गड़बड़ी का मामला उठाया. नियम तो यही है कि सदन के सबसे सीनियर मेंबर को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाये. इस हिसाब से प्रोटेम स्पीकर आरआर देशपांडे बनते, लेकिन वो कांग्रेस के नेता हैं. सदन में तीसरे वरिष्ठतम खुद येदियुरप्पा ही हैं जो मुख्यमंत्री बन चुके हैं. वैसे प्रोटेम स्पीकर बने केजी बोपैया का रिकॉर्ड भी खराब रहा है. 2008 में विधानसभा में कमल खिलाने के लिए वो अपने हुनर कमाल पहले ही दिखा चुके हैं.
प्रोटेम स्पीकर बोपैया को हटाने में कांग्रेस की दलील मजबूत रही, कोर्ट ने इसीलिए उसे खारिज भी नहीं किया. हां, हटाने को लेकर कोर्ट का कहना रहा कि फिर तो प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति की जांच होगी और उसमें भी काफी समय चला जाएगा. इस पर कांग्रेस ने अपनी याचिका वापस ले ली.
वीडियोग्राफी नहीं, लाइव टेलीकास्ट
जब फ्लोर टेस्ट के लाइव टेलीकास्ट का आइडिया सामने आया तो कोर्ट ने फौरन मान लिया. कांग्रेस भी मान गयी. हालांकि, कांग्रेस बहुमत परीक्षण की वीडियोग्राफी कराने की मांग कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की वीडियोग्राफी वाली बात को पहले ही मना कर दिया था.
कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में सिब्बल ने कहा भी, 'हमने कोर्ट से कहा कि कोई प्रैक्टिकल समाधान तलाशा जाए, क्योंकि हम चाहते हैं कि आज ही फ्लोर टेस्ट हो. इस पर ये बात सामने आई कि बहुमत परीक्षण का लाइव प्रसारण होगा.'
कपिल सिब्बल का कहना रहा कि वो भी पारदर्शिता ही चाहते थे और लाइव प्रसारण से यह सुनिश्चित हो गया. अभिषेक मनु सिंघवी ने भी उनकी बातों पर मुहर लगाते हुए कहा कि मकसद पारदर्शिता था, चाहे वो किसी भी माध्यम से हो.
ये मोलभाव के स्टिंग
मौजूदा दौर में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को भले ही स्टिंग ऑपरेशन का सबसे बड़ा पैरोकार समझते हों, लेकिन अरसा पहले से इस मामले में न तो कांग्रेस पीछे रही है - और न ही बीजेपी.
वोटिंग और चुनाव के नतीजे आने से पहले ही बीजेपी उम्मीदवार श्रीरामुलु का एक स्टिंग मार्केट में आया. इसे 2010 में हुआ स्टिंग बताया गया जिसमें वो माइनिंग के एक केस में मनमाफिक फैसले के लिए कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के जज को ₹160 करोड़ का ऑफर दे रहे हैं.
फ्लोर टेस्ट के ऐन पहले कांग्रेस ने दो और ऑडियो क्लिप जारी कर दिया. एक में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा खुद एक कांग्रेस विधायक बीसी पाटिल को बीजेपी के पक्ष में वोट करने के लिए लालच दे रहे हैं. दूसरे में उनके बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा और कांग्रेस विधायक श्रीराम हेब्बर की पत्नी के बीच की बातचीत रिकॉर्ड बतायी जा रही है. ये दोनों ही बातचीत बड़ी दिलचस्प है.
येदियुरप्पा और बीसी पाटिल की बातचीत
येदियुरप्पा- हेलो.
पाटिल- अन्ना, नमस्कार, बधाई.
येदियुरप्पा- कहां हो?
पाटिल- बस में कोच्चि जा रहे हैं.
येदियुरप्पा- कोच्चि मत जाओ. वापस आ जाओ. हम तुम्हें मंत्री बनाएंगे. तुम्हें जो भी चाहिए होगा, हम देंगे.
पाटिल- ठीक है अन्ना. आपने अब मुझसे बात की है. और बताओ कि आगे क्या करना है?
येदियुरप्पा- जब समय आएगा बता दूंगा. मैं कुछ कर रहा हूं. अभी कोच्चि मत जाओ, वापस आ जाओ.
पाटिल- लेकिन हम तो बस में हैं.
येदियुरप्पा- मत जाओ, कुछ बहाना बनाओ और वापस आ जाओ.
पाटिल- तो मुझे क्या मिलेगा?
येदियुरप्पा- तुम मंत्री बन जाओगे.
पाटिल- अन्ना, मेरे साथ तीन और लोग हैं.
येदियुरप्पा- उनको भी साथ ले आओ, तुम्हें मुझ पर भरोसा है या नहीं?
पाटिल-बिल्कुल है.
येदियुरप्पा- तो वापस आ जाओ, बस से उतर जाओ.
पाटिल- ठीक है अन्ना.
येदियुरप्पा- एक बार तुम कोच्चि चले गए तो कुछ नहीं हो सकेगा, क्योंकि हम तुमसे बात नहीं कर पाएंगे.
पाटिल- ठीक है अन्ना.
येदियुरप्पा- अब बताओ क्या करोगे तुम?
पाटिल- मैं आपको 5 मिनट में वापस फोन करता हूं, फिर बताऊंगा.
येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र और कांग्रेस विधायक श्रीराम हेब्बर की पत्नी की बातचीत
विजयेंद्र- कैसी हैं आप?
श्रीराम की पत्नी- मैं ठीक हूं.
विजयेंद्र- क्या हो रहा है. इतनी चीजें हो गई हैं और भगवान हमारी परीक्षा ले रहा है. सब ठीक हो जाएगा, चिंता मत करो.
श्रीराम की पत्नी- वह 15 की बात कर रहे हैं या फिर कैबिनेट के साथ पांच. और सबसे पहले मेरे बेटे का केस.
विजयेंद्र- चिंता मत करो, वह मंत्री बन जाएगा.
श्रीराम की पत्नी- हम इससे छुटकारा पाना चाहते हैं.
विजयेंद्र- मैंने भी 30 केस झेले हैं. मैं इसका दर्द जानता हूं. वैसे क्या केस है बेटे पर?
श्रीराम की पत्नी- माइनिंग का केस, आपको तो पता ही है.
विजेंद्र- कोई परेशानी नहीं होगी. सरकार हमारी ही बनेगी. येदियुरप्पा सत्ता में आ रहे हैं. किसी का भविष्य बर्बाद नहीं होगा. हमारा अच्छा समय आएगा. कोई परेशानी मत लो.
श्रीराम की पत्नी- तो क्या मैं उन्हें बता दूं?
विजयेंद्र- परेशान मत हो.
श्रीराम की पत्नी- तो मैं दोनों में से कोई भी ऑप्शन चुन सकती हूं?
विजयेंद्र- हां, बिल्कुल 100 फीसदी. चिंता मत करो.
एक ही दिन पहले कांग्रेस बीजेपी के जनार्दन रेड्डी का भी एक कथित ऑडियो क्लिप जारी किया था. कांग्रेस का कहना था कि जिसमें रेड्डी एक कांग्रेस विधायक को बीजेपी में शामिल होने का लालच यूं दे रहे थे - साथ आ जाओ, आधी रात से ही अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे.
जनता का फैसला चुनाव नतीजों के जरिये आ चुका था. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए नैसर्गिक दावेदार थी. नंबर उछल उछल कर बोल रहे थे कि बहुमत उसके पक्ष में नहीं है. कांग्रेस और जेडीएस ने साथ मिल कर बहुमत का नंबर राज्यपाल को दिया फिर भी राज्यपाल ने उनकी एक न सुनी.
थक हार कर कांग्रेस-जेडीएस को आधी रात को ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट को भी मामला इतना गंभीर लगा कि सुनवाई के लिए तत्काल राजी हो गया. रात भर सुनवाई चली - और फिर येदियुरप्पा को सिर्फ एक दिन की ही मोहलत मिली. यही वजह रही कि वो पूरी तरह चूक गये.
ये ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के चलते लोकतंत्र की हत्या की कोशिश नाकाम हो गयी. बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और जेडीएस ने इंसाफ की लड़ाई जीत ली. बावजूद इसके कर्नाटक के लोगों के हिस्से में क्या आया? क्या लोगों ने इसी बात के लिए वोट किया था? ये भी तो जरूरी नहीं कि ये आखिरी कवायद हो!
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