BJP में 75 साल के कुछ मायने हैं तो येदियुरप्पा को छूट क्यों ?
बीएस येदियुरप्पा एक बार फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कुर्सी की दहलीज पर खड़े हैं. मानना पड़ेगा, येदियुरप्पा बीजेपी की 75 साल की कैप को धत्ता बताकर मैदान में डटे हुए हैं - सवाल है कि येदियुरप्पा के साथ ऐसा क्यों है?
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नियम होते ही हैं पालन करने के लिए. नियम होते ही हैं अमल करने के लिए. जब ऐसा कुछ नहीं होता या हो पाता तो उसे नियमों के अपवाद की श्रेणी में रख देते हैं. नियमों से तो देश-दुनिया और समाज सभी चलते हैं, लेकिन अपवाद भी ठीक उसी दौरान मौजूद रहते हैं. ये अपवाद भी सर्वव्यापी हैं. बीजेपी के मामले नियमों के अपवाद का एकमात्र नाम है - बूकानकेरे सिद्धालिंगप्पा येदियुरप्पा जिन्हें बीएस येदियुरप्पा या येदि के नाम से लोग जानते हैं. ऐसे में जबकि 75 पार की उम्र वालों को बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व मार्गदर्शक मंडल में भेज देता है. मंत्री नहीं बनाता या मंत्री पद से इस्तीफा देकर हट जाने को कह देता है. टिकट काट देता है या फिर राजनीति छोड़ देने तक को बाध्य कर देता है - कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा जीते जागते अपवाद हैं.
येदियुरप्पा कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार के सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में हैं - हालांकि, इसके लिए अभी उन्हें भी उसी बीजेपी नेतृत्व की हरी झंडी का इंतजार है.
मोदी को येदि पसंद हैं!
असल बात तो ये है कि उम्र के बंधन जैसी कोई चीज बीजेपी के संविधान का हिस्सा नहीं बनी है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद भी इस बारे में एक बार सवालों के जवाब में तस्वीर साफ कर चुके हैं - लेकिन ये भी जरूरी तो नहीं कि नियम लिखे हुए ही हों और तभी वे लागू भी हों. अगर ऐसे नियम लागू हों तो ये भी जरूरी नहीं कि सब पर बराबर लागू हों. विशेष परिस्थितियों में कुछ लोगों को छूट भी तो मिलनी ही चाहिये. आखिर नेतृत्व के पास विवेकाधिकार जैसी भी कोई चीज होती है कि नहीं?
27 फरवरी 1943 को जन्मे येदियुरप्पा अब 76 साल के हो चुके हैं.
येदियुरप्पा बीजेपी में 75 पार के सबसे फिट नेता हैं और मोदी के भरोसेमंद भी.
राजनीति में रिश्ते ताउम्र निभाने की कोशिश होती है और इसमें पार्टी लाइन कभी आड़े नहीं आती. येदियुरप्पा ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ ये रिश्ता अरसे से बनाये रखा है. तब भी जब दोनों मुख्यमंत्री हुआ करते थे. येदियुरप्पा भी बीजेपी के उन नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी की जगह नरेंद्र मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने की वकालत की थी. दरअसल, येदियुरप्पा का मानना रहा कि आडवाणी के दबाव में ही उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद दोबारा कुर्सी पर बैठने नहीं दिया गया.
वक्त का तकाजा देखिये कि बीजेपी नेतृत्व ने आडवाणी को लोक सभा का टिकट तक नहीं दिया और अभी तक यही मान कर चला जा रहा है कि अगर बीजेपी ने तत्काल सरकार बनाने का फैसला किया तो CM येदियुरप्पा ही बनेंगे.
वैसे दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी की सरकार बनवाने का श्रेय भी येदियुरप्पा को ही हासिल है. अगर इसे पैमाना बनाया गया तो आडवाणी को भी लोक सभा में दो सदस्यों से केंद्र में पहली बार सरकार बनवाने का क्रेडिट हासिल है. करीब करीब वैसे ही 1985 में कर्नाटक विधानसभा में में बीजेपी की दो सीटें रहीं और 2008 में बढ़ कर वो 110 हो गयी थीं. वोट शेयर भी बीजेपी का करीब दस गुणा बढ़ गया था.
याद कीजिए 75 की उम्र सीमा के नाम पर कलराज मिश्र को मोदी कैबिनेट 1.0 से हटा दिया गया था और अभी अभी वो हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बन पाये हैं - वो भी यूपी की राजनीति में ब्राह्मण-ठाकुर वोट को बैलेंस करने की मजबूरी के चलते.
येदि की तरह बाकी पसंद क्यों नहीं?
कहने को तो आडवाणी और जोशी भी 75 पार के नाम पर मार्गदर्शक मंडल भेजे गये - लेकिन येदियुरप्पा के मामले में अब तक तो ऐसा नहीं लगता. अभी अभी कलराज मिश्र को मोदी सरकार ने हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया है.
1. कलराज मिश्र : यूपी के देवरिया से आने वाले कलराज मिश्र उम्र में येदियुरप्पा से दो साल बड़े हैं. वो आजादी के छह साल पहले 1 जुलाई 1941 को पैदा हुआ थे.
अभी अभी कलराज मिश्र को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है. कलराज मिश्र यूपी में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद केंद्र में तब भी मंत्री रहे महेंद्रनाथ पांडेय को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बना कर भेजा गया था. आम चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने के बाद वो फिर से मोदी कैबिनेट 2.0 में शामिल हो गये हैं. महेंद्रनाथ पांडेय की जगह स्वतंत्रदेव सिंह को यूपी बीजेपी की कमान सौंपी गयी है. बीजेपी की मुश्किल ये है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी ठाकुर है. वैसे तो वो संन्यासी हैं लेकिन उनके विरोधी उन पर ठाकुरवाद करने के आरोप लगाते रहते हैं. कलराज मिश्र मोदी कैबिनेट 1.0 में मंत्री रहे लेकिन जब एक बार फेरबदल हुआ तो इस्तीफा लिये जाने वालों में उनका भी नाम शामिल हो गया. तब से कलराज मिश्र को इंतजार रहा और अब जाकर वो खत्म हो पाया है.
2. सुमित्रा महाजन : 2019 के आम चुनाव में सुषमा स्वराज के अलावा चुनाव लड़ने से मना करने वालों में सुमित्रा महाजन भी रहीं. सुमित्रा महाजन 2014 में 16वीं लोक सभा की स्पीकर रहीं और पूरे पांच साल लोक सभा का सफल संचालन किया.
येदियुरप्पा की उम्र से तुलना की जाये तो सुमित्रा महाजन दो महीने छोटी ही हैं. सुमित्रा महाजन का जन्म 12 अप्रैल 1943 को हुआ था. 2014 में वो आठवीं बार चुनाव जीत कर लोक सभा पहुंची थीं.
17वीं लोक सभा में जब 78 महिला सांसदों के चुन कर आने का जश्न मनाया जा रहा है तो सुमित्रा महाजन उसमें शामिल नहीं हैं.
3. हुकुमदेव नारायण यादव : बिहार के मधुबनी से आने वाले हुकुमदेव नारायण यादव का भी बीजेपी ने 2019 में टिकट काट दिया - हालांकि, भरपाई करते हुए उनके बेटे अशोक यादव को मधुबनी से उम्मीदवार बनाया था और वो चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे.
पद्म भूषण और 2018 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में सम्मानित हुकुमदेव नारायण यादव फिलहाल 79 साल के हो चुके हैं. 17 नवंबर 1939 को जन्मे हुकुमदेव नारायण यादव येदियुरप्पा से तीन साल बड़े हैं.
4. करिया मुंडा : झारखंड की खुंटी से आने वाले करिया मुंडा का भी 2019 में टिकट कट गया. 1936 में जन्में करिया मुंडा की जगह इस बार अर्जुन मुंडा सांसद बने हैं. अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
कर्नाटक के हिसाब से देखा जाये तो राजनीतिक उठापटक के साथ साथ ये ज्योतिषियों और काला जादू वालों की भी हार-जीत है. अगर विकास के चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत से देखें तो येदियुरप्पा 'सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट' के सर्वोत्तम उदाहरण हैं.
जब बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी को लगा था कि उनकी उम्र विरोधियों के राडार पर आने लगी है, तब कहा था कि वो पूरी तरह स्वस्थ हैं. अल्प भोजन लेते हैं और किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है.
वैसे तो बीजेपी नेता सत्यपाल सिंह डार्विन के सिद्धांतों को अपने तरीके से समझाते हैं या कहें कि उनका माखौल उड़ाते हुए खारिज ही कर देते हैं. जो भी हो, येदियुरप्पा के मामले में तो यही कहा जा सकता है कि रिश्ता अच्छा हो तो उम्र की सीमा आड़े नहीं आती. येदियुरप्पा ने अभी तक तो यही साबित किया है कि वो 'सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट' की रेस में जीते हुए खिलाड़ी हैं - और 75 पार के बाद भी दमखम बरकरार है.
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