New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 22 अक्टूबर, 2021 05:11 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

लखीमपुर खीरी हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) के बाद एक सवाल व्यापक रूप से उठाया गया कि भाजपा के नेताओं में कौन मृतक किसानों के परिवार से मिलने पहुंचा? खैर, इस पर चर्चा आगे करेंगे. फिलहाल खबर ये है कि किसान आंदोलन के बड़े नेता योगेंद्र यादव को लखीमपुर हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के घर जाकर सांत्वना जताना महंगा पड़ा गया है. पंजाब के किसान संगठनों द्वारा योगेंद्र यादव की यह हरकत मृतक किसानों का अपमान बताई जा रही थी. जिसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukta Kisan Morcha) ने योगेंद्र यादव को एक महीने के लिए निलंबित करने का फैसला (Yogendra Yadav Suspended) ले लिया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो योगेंद्र यादव के निलंबन ने किसान आंदोलन में घुसी राजनीति का वीभत्स चेहरा सामने ला दिया है.

 Yogendra Yadav Suspendedयोगेंद्र यादव मारे गए किसानों की श्रद्धांजलि सभा में भाग लेने के बाद भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के घर संवेदना जाहिर करने गए थे.

योगेंद्र यादव ने वही किया, जो मानवता का तकाजा कहता है

योगेंद्र यादव जब लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों की श्रद्धांजलि सभा में भाग लेने के बाद भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के घर संवेदना जाहिर करने गए थे. तो, इसके बाद किसान आंदोलन के राजनीतिक होने को लेकर लोगों के बीच पनप रहा रोष कुछ कम हुआ था. कहना गलत नहीं होगा कि योगेंद्र यादव ने जो किया, वह मानवता और नैतिकता के नाते हर शख्स करने की कोशिश करता. इससे किसान आंदोलन की छवि भी सुधरती. लेकिन, इसे नजरअंदाज किया जा सकता है. योगेंद्र यादव ने संयुक्त किसान मोर्चा से निलंबन पर कहा है कि मुझे वहां जाने से पहले संयुक्त किसान मोर्चा के साथियों से चर्चा करनी चाहिए थी. मैंने इस पर खेद जता दिया है. योगेंद्र यादव का इस मामले पर साफ मत है कि नीति और सिद्धांत के अनुसार हमें हर किसी के शोक में शरीक होने का हक है. योगेंद्र यादव के इस बयान को देखकर कहा जा सकता है कि किसान आंदोलन के जो कथित किसान खुद ही लोगों के बीच विभाजन की दीवार खींच रहे हों, वहां राजनीति पर दोष आना लाजिमी है. कहना गलत नहीं होगा कि संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार, योगेंद्र यादव का व्यवहार अमानवीय ही माना गया होगा. तभी उन्हें एक महीने के लिये निलंबित किया गया.

प्रियंका गांधी केवल राजनीतिक रोटियां सेंकती दिखीं 

लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले की कार से हुई चार किसानों की मौत को किसी भी हाल में उचित नहीं ठहराया जा सकता है. लेकिन, किसान नेता राकेश टिकैत ने प्रतिहिंसा में पीट-पीटकर मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं की मौत को 'क्रिया की प्रतिक्रिया' कहकर न्यायोचित ठहराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. लखीमपुर में मृत किसानों के परिवारों के लिए पंजाब और छत्तीसगढ़ सरकार ने अपना खजाना खोलकर अलग से मदद की थी. इस मदद की घोषणा तब की गई, जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मृतकों के लिए पहले से ही मुआवजे की घोषणा कर दी थी. लखीमपुर हिंसा मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सोनभद्र, हाथरस जैसा ही विरोध जताकर राजनीतिक बढ़त लेने की कोशिश की. इतना ही नहीं, प्रियंका गांधी के कहने पर ही पंजाब और छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को मदद पहुंचाने का कदम उठाया. लेकिन, सिंघु बॉर्डर पर हुई एक दलित की हत्या पर प्रियंका गांधी और पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने भी चुप्पी साध रखी है. सवाल उठेंगे ही कि प्रियंका गांधी अन्य कांग्रेस शासित राज्यों में पीड़ितों को न्याय और मदद दिलवाने के लिए इतनी उत्सुकता और तत्परता क्यों नहीं दिखाती हैं?

मृतक किसानों के परिवारों से क्यों नहीं मिल रहे भाजपा नेता?

राजनीति ने लोगों को इस कदर अलग कर दिया है कि मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवार से मिलने ना किसान नेताओं की ओर से कोई गया और ना ही विपक्ष का कोई नेता पहुंचा. लखीमपुर में मारे गए किसानों के परिवार से मिलने के लिए भाजपा के नेताओं को लेकर सवाल उठाया जा रहा है कि वो क्यों नहीं गए? इसका जवाब बहुत सीधा सा है कि किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत सरीखे बड़बोले किसान नेताओं की वजह से ऐसी स्थिति बनी है. बक्कल उतारने की धमकी, भाजपा नेताओं को विधानसभा क्षेत्र में न आने देने, विधायकों की गाड़ियों पर पत्थरबाजी और हमला करने जैसी हरकतों से भाजपा नेताओं के खिलाफ किसानों के बीच माहौल तैयार कर दिया गया है.

इस स्थिति में अगर कोई भाजपा नेता मृतक किसानों के परिवार से मिलने जाता है और उसके साथ किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना होती है, तो क्या संयुक्त किसान मोर्चा और राकेश टिकैत उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार होंगे? या फिर 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालकर पर फैलाई गई अराजकता, सिंघु बॉर्डर पर हत्या जैसे अन्य मामलों की तरह ही अपना पल्ला झाड़कर एक किनारे खड़े हो जाएंगे. संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा के नेताओं के खिलाफ किसानों में इतना जहर भर दिया है कि लखीमपुर में भड़के किसानों ने प्रतिहिंसा में भाजपा कार्यकर्ताओं को केवल इसलिए पीट-पीटकर कर मार डाला कि वो सभी भाजपा के कार्यकर्ता थे. इन लोगों का दोष बस इतना ही था.

इस बात में संशय नहीं रह गया है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहा किसान आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक हो चुका है. राकेश टिकैत पश्चिम बंगाल जाकर ममता बनर्जी से मुलाकात करते हैं. भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील करते हैं. कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी जैसे दलों और किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी, भाजपा-विरोधी, देश-विरोधी एजेंडा चलाकर अराजकता फैलाने वालों का समर्थन लेने में भी संयुक्त किसान मोर्चा को कोई भी समस्या नजर नहीं आती है. राजनीति की सेलेक्टिव सोच का सबसे भयावह मुखौटा लगाकर संयुक्त किसान मोर्चा के साथ आगे बढ़ रहा है, जो किसान आंदोलन को सिर्फ रसातल में ले जाने वाला है. योगेंद्र यादव ने इंसानियत को जिंदा रखने वाला काम किया था. लेकिन, संयुक्त किसान मोर्चा ने यादव के निलंबन के साथ अपनी ही जड़ों में मट्ठा डालने की शुरुआत कर ली है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय