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Updated: 21 अक्टूबर, 2021 08:56 PM
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उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) हाल फिलहाल जितना सुर्खियां बटोर रही हैं, बाकी राजनीतिक दलों की कौन कहे - कांग्रेस नेताओं को भी न तो यकीन हो रहा होगा और न ही कभी ऐसी उम्मीद रही होगी.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के इस कदर टीवी फुटेज बटोरने को अगर यूपी में सत्ताधारी बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब भी हवा हवाई ही मान कर चल रहे हैं, तो ये नहीं भूलना चाहिये कि बड़े अलर्ट के साथ वो सबसे बड़ा जोखिम उठा रहे हैं - क्योंकि कई बार ऐसी चीजें भी किसी के पक्ष में तो किसी के खिलाफ हवा बना देती हैं - और हवाओं का तो सबको मालूम है बड़ी से बड़ी कश्तियों का रुख बदलने की ताकत रखती हैं. चुनावी मैदान की हस्तियों का हाल भी अक्सर ऐसी कश्तियों जैसा ही होता है.

ये तो पहले से ही माना जाता रहा है और अब तो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी खुल कर कहने लगे हैं कि कांग्रेस को लड़ाई में बताकर बीजेपी समाजवादी पार्टी का प्रभाव कम दिखाने की कोशिश करती रही है, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि प्रियंका गांधी वाड्रा की हालिया गतिविधियां एक नये तरह की धारणा विकसित करने लगी हैं.

लखीमपुर खीरी हिंसा, शाहजहांपुर में वकील की हत्या और आगरा में सफाईकर्मी की पुलिस हिरासत में मौत - ये तीनों ही बिलकुल अलग अलग किस्म की घटनाएं हैं. तीनों ही अलग अलग परिस्थितियों में और अलग अलग वजहों से घटित हुई हैं, लेकिन सवाल तो सीधे यूपी की कानून व्यवस्था पर ही उठाया जा रहा है.

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के शासन में कानून व्यवस्था पर मायावती भी सवाल उठा रही हैं और अखिलेश यादव भी, लेकिन आवाज सबसे ज्यादा प्रियंका गांधी की सुनायी दे रही है - और लोगों के बीच मैसेज तो योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ही जा रहा है.

ऊपर से बारिश में बाढ़ जैसी मुसीबत तो योगी आदित्यनाथ के पुलिस अफसर और प्रशासनिक अधिकारी पैदा कर दे रहे हैं - जो चीजें आसानी से सुलझायी जा सकती हैं, उनकी मिसहैंडलिंग बिलावजह बवाल को दावत देने लगती है. जिन घटनाओं को किसी को भनक तक नहीं लगती, उनको भी जोरदार प्रचार मिल जा रहा है.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक बेहतरीन की-वर्ड उठा लिया है - 'न्याय'. और कांग्रेस महासचिव 'न्याय' को सोशल मीडिया के साथ साथ ऑफलाइन भी ट्रेंड कराने की कोशिश कर रही हैं - लखीमपुर से लेकर आगरा तक प्रियंका गांधी घूम घूम कर, चिल्ला चिल्ला कर, हर तरफ शोर मचा कर हर किसी को यही समझाने की कोशिश कर रही हैं कि उत्तर प्रदेश में किसी को भी न्याय नहीं मिल रहा है.

आगरा में सफाईकर्मी अरुण वाल्मीकि के परिवार से मिल कर भी प्रियंका गांधी जोर शोर से न्याय के साथ साथ दलितों का मुद्दा भी उठाती हैं. प्रियंका गांधी के बयान भी काफी सोच समझ कर तैयार किये जा रहे हैं. ऐसा बोलो कि एक वाक्य में ही पूरा एजेंडा लोगों तक पहुंच जाये.

आगरा में पीड़ित परिवार से मुलाकात के बीच प्रियंका गांधी कह रही हैं - यूपी में दलितों को न्याय नहीं मिल रहा है, यूपी में सिर्फ सरकार के मंत्रियों को न्याय मिल रहा है. ध्यान से देखें तो आगरा की घटना को सीधे सीधे लखीमपुर खीरी से जोड़ दिया जा रहा है. मंत्री भर बोल कर प्रियंका गांधी सीधे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को टारगेट कर रही हैं.

और ये ऐसे मुद्दे हैं कि विरोध की सियासी मजबूरी के चलते अखिलेश यादव की नहीं, बल्कि मायावती भी प्रियंका गांधी के सुर में सुर मिलाते हुए कानून और व्यवस्था का सवाल उठाने लग रही हैं, जबकि सामान्य प्रैक्टिस में तो यही देखने को मिला है कि कांग्रेस की तरफ से उठाये जाने वाले किसी भी मुद्दे पर बीएसपी नेता पूरे गांधी परिवार के विरोध में मोर्चे पर आकर डट जाती हैं. यूपी की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी का चेहरा बने योगी आदित्यनाथ धीरे धीरे बुने जा रहे राजनीतिक मायाजाल में उलझते नजर आ रहे हैं - और ज्यादा देर होने पर अंधेर का भी रिस्क अपनेआप मंडराने लगा है.

कांग्रेस के तिल को ताड़ बना रहे योगी के अफसर

आगरा के रास्ते में ही क्यों जब भी प्रियंका गांधी पूरे लाव लश्कर के साथ ऐसे किसी भी घटनास्थल का रुख करती हैं, यूपी पुलिस के अफसर और प्रशासनिक अधिकारी पहले तो दीवार बन कर खड़े हो जाते हैं, लेकिन कांग्रेस महासचिव के जिद पकड़ते ही वो दीवार ऐसे जमींदोज हो जाता है जैसे बारिश के मौसम में कोई कच्चा मकान हो जाता है. ताजा मामला आगरा को लेकर है और ऐसे ही बीती तमाम घटनाएं उंगली पर गिनी जा सकती हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा को आगरा जाने से भी योगी सरकार के अफसरों ने ठीक वैसे ही रोका था जैसे लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद या उसके पहले की हाथरस सहित तमाम मामलों - और कुछ देर बाद आगरा भी वैसे ही जाने दिया जैसे लखीमपुर खीरी से पहले हिरासत में रख कर गेस्ट हाउस में प्रियंका गांधी के झाड़ू लगाने का वीडियो वायरल होने का मौका दिया और उससे पहले सोनभद्र में रात भर धरने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ शेयर होने देने में.

priyanka gandhi vadra, akhilesh yadav, yogi adityanathअखिलेश यादव के चक्कर में योगी आदित्यनाथ के लिए प्रियंका गांधी नयी मुसीबत न बन जायें.

आखिर क्या सोच कर यूपी के ये अफसर तिल का ताड़ बनाने की कोशिश करते हैं? अगर वे प्रियंका गांधी के काफिले में से बाकियों को रोक कर उनकी गाड़ी जाने देते तो स्थानीय लोगों के अलावा ज्यादा से ज्यादा हल्की फुल्की उड़ती उड़ती खबर पहुंचती. रही बात पीड़ित परिवार के साथ मुलाकात की तो उभ्भा से लेकर हाथरस तक नजारा तो सबने देखा ही है.

यूपी भर में जहां कहीं भी कांग्रेस नेता जाती रही हैं, पीड़ित परिवारों से गले मिलकर ढाढ़स बढ़ाते और इमोशनल होते हरदम ही देखा जाता रहा है, लेकिन आगरा में तो, बताते हैं, प्रियंका गांधी वाड्रा की आंखों में आंसू तक निकल आये. 20 अक्टूबर को रात के करीब 11 बजे पहुंची प्रियंका गांधी वाड्रा सफाईकर्मी अरुण वाल्मीकि के घर घंटे भर रही होंगी. प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने अरुण की मां और पत्नी ने रो-रोकर पुलिस बर्बरता का हाल सुनाया.

अरुण वाल्मीकि के परिवार को प्रियंका गांधी वाड्रा ने हर तरह की मदद का भरोसा दिलाया है. आर्थिक भी और कानूनी लड़ाई में साथ भी. दोनों बेटियों की शादी का खर्च भी. अरुण की पत्नी सोनम भरतपुर की रहने वाली हैं, इसलिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि वो राजस्थान की कांग्रेस सरकार से भी मदद दिलाने की कोशिश करेंगे और इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात करेंगी.

बाद में प्रियंका गांधी ने परिवार से मिली जानकारी के आधार पर अरुण के साथ पुलिस ज्यादती का किस्सा तो सुनाया ही, इल्जाम लगाया कि यूपी में कानून व्यवस्था दम तोड़ रही है, दलित, किसान और गरीबों के पक्ष में कोई खड़ा नहीं है - और योगी आदित्यनाथ के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते हुए बोलीं कि एयरपोर्ट के उद्घाटन का क्या फायदा - जब आप घर में सुरक्षित नहीं हैं.

...जबकि सारे मामले कानून-व्यवस्था के नहीं हैं!

शाहजहांपुर के कोर्ट परिसर में एक वकील की गोली मार कर हत्या के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधते हुए कहा - उत्तर प्रदेश में कोई भी सुरक्षित नहीं है, वकील भी नहीं.

मोटे तौर पर दंगे, डकैती और ऐसे दूसरे संगठित अपराध जबरन वसूली, अपहरण और फिरौती - ये सब होना किसी भी राज्य में कानून व्यवस्था की हालत पर सवाल उठाते हैं.

ऐसे अलग अलग करके देखें तो आगरा का केस पुलिस कस्टडी मौत का मामला है जो पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है. लखीमपुर खीरी हिंसा भी शुरुआती दौर में नहीं लेकिन केंद्रीय मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी के मामले में पुलिस का तौर तरीका भी सवालों के घेरे में ही है, लेकिन शाहजहांपुर का केस तो दो पक्षों के बीच पुरानी रंजिश का नतीजा है.

आगरा में पुलिस मालखाने से चोरी के मामले में वहां सफाई करने वाले अरुण सहित 20 से ज्यादा लोगों से पुलिस ने पूछताछ की, लेकिन शक गहराया उसी पर. रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने अरुण के घर दबिश दी तो 15 लाख रुपये बरामद भी हो गये, जिसके बारे में घर वाले भी कोई जानकारी नहीं दे पा रहे हैं - लेकिन गोरखपुर के मनीष हत्याकांड की तरह आगरा के पुलिस अफसरों ने कोई हीलावाली नहीं दिखायी है और थाना इंजार्ज सहित छह पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है.

कानपुर के बिकरू गांव के विकास दुबे के खिलाफ पांच दर्जन से ज्यादा केस दर्ज थे और जब उसे गिरफ्तार करने पुलिस गयी तो एक डिप्टी एसपी सहित कई पुलिसवालों को उसने मौत के घाट उतार दिया - देखा जाये तो कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने वाला वो बड़ा मामला रहा, लेकिन उस पर राजनीति शुरू हो गयी कि ब्राह्मणों पर अत्याचार हो रहा है.

शाहजहांपुर का वकील हत्याकांड तो बिलकुल फिल्मी लगता है - एक वकील पर ही एक वकील की हत्या का आरोप लगा है. ये दोनों वकील भी सिर्फ अपने मुकदमे लड़ने के लिए पेशे में आये बताये जाते हैं जो वकीलों की फीस देने से परेशान होकर कानून की पढ़ाई करते हैं और फिर प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं. 21 साल पहले दोनों का रिश्ता किरायेदार और मकानमालिक का होता है - और फिर एक दिन मकान मालिक पुलिस की मदद से मकान खाली करा लेता है. धीरे धीरे दुश्मनी बढ़ने लगती है और 2008 आते आते मुकदमेबाजी शुरू हो जाती है. फिर दोनों ही पक्ष एक दूसरे के खिलाफ दर्जन भर से ज्यादा केस दर्ज करा देते हैं - और फिर एक दूसरे की हत्या कर देता है.

अखिलेश यादव भले ही कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन से इनकार करें और मायावती भले ही प्रियंका गांधी के हर कदम पर उनके खिलाफ बीजेपी के पक्ष में पहले खड़ा नजर आती रही हों, लेकिन शाहजहांपुर के मुद्दे पर आम चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बैनर तले मैदान में कूदने वाले दोनों ही नेता कांग्रेस महासचिव के साथ खड़े देखे जा सकते हैं - निश्चित तौर पर योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेतृत्व ऐसे सियासी कोरस पर गंभीरता पूर्वक विचार कर रहे होंगे - और अगर ऐसा नहीं सोच रहे तो ज्यादा इग्नोर करना खतरे की घंटी ही बजाने वाला है.

ऐसी जुगलबंदी काफी पहले तब दिखी थी जब उन्नाव में एक रेप पीड़ित को हमलावरों ने आग के हवाले कर दिया और कुछ दिन बाद दिल्ली के अस्पताल में उसे बचाया न जा सका. पीड़ित की मौत के अगले दिन प्रियंका गांधी उन्नाव में उसके घर पहुंची थीं, अखिलेश यादव विधानसभा के सामने धरने पर बैठे थे - और मायावती राजभवन पहुंच कर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर ये कह कर गंभीरता का एहसास करा रही थीं - आप भी तो महिला हैं, समझ सकती हैं. तब तो नहीं लेकिन अब चुनाव नजदीक होने के कारण इसकी अहमियत बदल गयी है.

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