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Updated: 17 जनवरी, 2022 05:29 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. चुनाव आयोग द्वारा इलेक्शन डेट का ऐलान करने के बाद से सभी राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने में लगे हुए हैं. लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पहली ही लिस्ट से लोगों को हैरान कर दिया है. अभी तक चर्चा थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव लड़ने जा रहे हैं, लेकिन उनको गोरखपुर सदर से टिकट देकर बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं को भी चौंका दिया. क्योंकि किसी को कानों-कान इस बात की खबर नहीं थी. गोरखपुर के कार्यकर्ताओं को तो छोड़िए खुद चार बार से विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल तक को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. जिस दिन टिकट का ऐलान किया गया, उस दिन सुबह तक वो अपने विधानसभा क्षेत्र में प्रचार में लगे हुए थे.

यहां तक कि डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल से यदि कोई योगीजी के गोरखपुर से चुनाव लड़ने की बात भी पूछ देता तो वो भड़क उठते थे. हालांकि, उनको बहुत पहले से इस बात का अंदेशा था कि यदि चुनाव लड़ने की बात आई तो योगी अपनी पसंदीदा सीट गोरखपुर से ही चुनाव लड़ना पसंद करेंगे. बीच-बीच में कई बार इसकी अफवाह भी उड़ी, लेकिन बाद में अयोध्या और मथुरा का जिक्र करके इन अफवाहों को विराम दे दिया गया. अंदरखाने में योगीजी से वैचारिक मतभेद रखने वाले राधा मोहन पिछले कुछ समय से उनके प्रति नरम रुख भी अख्तियार किए हुए थे. वरना उनके मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद तो उनको लगभग किनारे ही लगा दिया गया था. लेकिन बीते एक साल से योगी भी उनके साथ नरम नजर आ रहे थे. यहां तक कि उनकी बेटी डॉ. अदिति अग्रवाल की शादी में पहुंचकर उन्होंने आशीर्वाद भी दिया था.

1_650_011622094656.jpgपिछले साल राधा मोहन की बेटी की शादी में पहुंचकर योगीजी ने आशीर्वाद दिया था.

एक तरफ योगीजी गुपचुप गोरखपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे हुए थे, तो दूसरी तरफ राधा मोहन बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि इस सीट से कोई दूसरा चुनाव लड़े, क्योंकि इस सीट पर वो पिछले 20 साल से मेहनत कर रहे हैं और वहां से चार बार विधायक रह चुके हैं. लेकिन योगी के हठ और चुनावी जरूरतों को देखते हुए बीजेपी आलाकमान को उनको गोरखपुर सदर से टिकट देना ही पड़ा. जैसे ही टिकट का ऐलान हुआ हर किसी की उत्सुकता थी कि डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल का अगला कदम क्या होगा? इस पर वो क्या प्रतिक्रिया देते हैं? पहले तो उन्होंने एकदम चुप्पी साध ली. लेकिन बाद में दबाव देखते हुए उन्होंने दो लाइन की प्रतिक्रिया दी, ''हम भाजपा के कार्यकर्ता हैं. पार्टी के इस निर्णय का स्वागत करते हैं''. इसके साथ ही उन्होंने हर शाम को किए जाने वाले अपने फेसबुक लाइव को भी कैंसिल कर दिया. लेकिन अगले ही दिन वो फिर अपने क्षेत्र में लोगों के बीच देखे गए. पचास साला सीसी रोड के उद्घाटन के नाम पर वो एक बार फिर वोटर के बीच में नजर आए.

यहां बड़ा सवाल ये है कि योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से टिकट मिलने और चुनाव लड़ने के बाद डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल के पास राजनीतिक विकल्प क्या बचता है? क्या वो अनुशासित कार्यकर्ता की तरह पार्टी लाइन पर बने रहेंगे, जैसा उन्होंने कहा है? क्या वो बीजेपी से बगावत करके पार्टी छोड़कर सपा या बसपा का दामन थाम लेंगे? या फिर अच्छे दिनों का इंतजार करते रहेंगे? गोरखपुर ही नहीं पूरे सूबे में इस बात पर चर्चा चल रही है. हर कोई राधा मोहन के अगले कदम का इंतजार कर रहा है. क्योंकि सभी जानते हैं कि वो इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है. योगी से वैसे भी उनका मन नहीं मिलता है, ये बात उन दोनों के करीबी जानते हैं. ऐसे में यदि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से कोई बड़ी पहल नहीं होती, उनको इसकी भरपाई में उनके मनमाफिक कुछ नहीं दिया जाता, तो निश्चित तौर पर वो पार्टी से बगावत कर सकते हैं. हालांकि, स्थानीय राजनीति की समझ रखने वालो का कहना है कि वो अभी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं.

यदि बीजेपी अपने चार बार के विधायक और पार्टी के एक मजबूत स्तंभ का ख्याल रखती है, तो राधा मोहन के पक्ष में दो काम किए जा सकते हैं. पहला, ये कि अभी तक गोरखपुर ग्रामीण का टिकट फाइनल नहीं किया गया है. हो सकता है कि वहां के मौजूदा विधायक विपिन सिंह का टिकट काटकर उसे राधा मोहन को दे दिया जाए. वैसे विपिन सिंह भी योगीजी के बहुत करीबी लोगों में से एक हैं, ऐसे में उनका टिकट काटना भी एक चुनौती की बात है. ऐसे में दूसरा रास्ता ये है कि जिस तरह से गोरखपुर सदर के पूर्व विधायक शिव प्रताप शुक्ला को राज्यसभा का सदस्य बनाकर राज्यमंत्री बनाया गया, उसी तरह राधा मोहन को भी केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. यदि इन दोनों में कुछ भी उनके साथ नहीं होता है, तो तय मानिए कि वो पार्टी से बगावत कर सकते हैं. हालांकि, कुछ लोगों को इसकी संभावना कम लगती है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में उनकी भी उतनी पकड़ है, जितनी योगीजी की है. इसके अलावा पार्टी के कई बड़े नेताओं का भी उनको आशीर्वाद प्राप्त है.

वैसे सभी जानते हैं कि डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को पहली बार विधायक बनाने का श्रेय योगी जी को ही जाता है. उन्होंने ही साल 2002 में बीजेपी के कद्दावर नेता शिव प्रताप शुक्ला को हराने के लिए अखिल भारतीय हिन्‍दू महासभा से राधा मोहन को चुनाव लड़वाया था. उस वक्त अंदरखाने से स्थानीय आरएसएस नेताओं का समर्थन भी योगी को प्राप्त था. क्योंकि राधा मोहन संघ के पक्के स्वयंसेवक रहे हैं. चुनाव से पहले उन्होंने संघ के प्रशिक्षण वर्ग में भी हिस्सा लिया था. संघ के नेताओं के साथ उनका बहुत अच्छा तालमेल था. उनको अक्सर संघ के गोरखपुर दफ्तर शंकर भवन में देखा जाता था. इस चुनाव में राधा मोहन ने शिव प्रताप को करीब 28 हजार वोटों से हरा दिया था. इस चुनाव में शिव प्रताप शुक्ल तीसरे नंबर पर चले गए थे. इस चुनाव को जीतने के बाद राधा मोहन बीजेपी में शामिल हो गए थे. उसके बाद के तीन चुनाव उन्होंने बीजेपी के टिकट पर लड़ा था. अपने ईमानदार और बेदाग छवि की वजह से वो लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. लोगों के बीच लोकप्रिय भी हैं.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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