योगी को मालूम हो कि पुलिस की ज्यादा पीठ ठोकना भी अच्छा नहीं होता!
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत की ही तरह चुनाव के ऐन पहले मनीष गुप्ता (Manish Gupta Case) का केस योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है - अगर वो यूपी पुलिस (UP Police) को काबू में नहीं रख पाये.
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'ठोक दो...' - यूपी पुलिस की पीठ ठोकते वक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के मौखिक आदेश अक्सर ऐसे ही होते हैं. जरूरी नहीं कि दूसरी छोर पर कोई कुख्यात पेशवर अपराधी ही हो!
वो कोरोना संकट के बीच ऑक्सीजन की कमी की शिकायत करने वाला कोई आम आदमी या अस्पताल मालिक भी हो सकता है. वो अस्पताल में बच्चों की मौत में ऑक्सीजन की सप्लाई न होने की बात करने वाला डॉक्टर भी हो सकता है. या सरकार के खिलाफ कोई बयान देने वाला या कोई विरोध प्रदर्शनकारी भी हो सकता है.
योगी आदित्यनाथ की सरकार में यूपी पुलिस के सिपाही से लेकर अफसर तक सामने खड़े शख्स से एक जैसा ही व्यवहार करते हैं, कोई भेदभाव नहीं होता. हां, अगर वो सत्ताधारी राजनीतिक दल का विधायक हो तो बड़े बड़े अफसर भी बगैर 'माननीय' लगाये बात तक नहीं करते.
28 सितंबर, 2018 को यूपी के पुलिस वाले (UP Police) जैसे लखनऊ की सड़कों पर विवेक तिवारी के साथ पेश आये थे, ठीक तीन साल बाद 28 सितंबर, 2021 को गोरखपुर के होटल में मनीष गुप्ता के साथ भी वैसा ही सलूक किया. न कम और न ज्यादा - बिलकुल बराबर व्यवहार करते हुए सीधे ऊपर पहुंचा दिया.
और मनीष गुप्ता (Gorakhpur Manish Gupta Case) की पत्नी को गोरखपुर के मौजूदा डीएम और एसपी भी बिलकुल उसी तरीके से समझा रहे थे, जैसे हाथरस के तत्कालीन जिलाधिकारी गैंग रेप पीड़ित परिवार वालों को. गोरखपुर में पीड़ित परिवार को ये समझाने की कोशिश हो रही थी कि केस लंबा चलेगा, क्या फायदा - और हाथरस में संबंध न खराब करने की सलाह क्योंकि मीडिया वाले तो हमेशा उनके साथ रहेंगे नहीं? किसी भी पीड़ित के साथ कोई भेदभाव नहीं, सभी के साथ समान व्यवहार - ये यूपी पुलिस का अघोषित फंक्शनल स्लोगन है.
योगी आदित्यनाथ के आदेश असल में महज सरकारी आदेश ही नहीं होते, बल्कि अफसरों की उसमें आस्था भी जुड़ी होती है और श्रद्धाभाव भी, लिहाजा टाल ही नहीं पाते और दो-चार कदम आगे बढ़ कर ही अमल में लाने की कोशिश करते हैं - तभी तो थोड़ा गूगल करने पर योगी के पैर पकड़े एक पुलिस अफसर की तस्वीर भी मिल जाती है और गोली खत्म हो जाने पर मुंह से ही 'ठांय-ठांय' करते एक पुलिस वाले का वायरल हुआ वीडियो भी.
आखिर ये पुलिसवालों की पीठ ठोकने का नतीजा नहीं तो और क्या है? फिर भी 'इंसपेक्टर राज' पूरी तरह खत्म करने का दावा करने वाली पार्टी के मुख्यमंत्री को भी ये तो कतई नहीं भूलना चाहिये कि 'पुलिस राज' ज्यादा घातक होता है, खासकर तब जब चुनाव सिर पर हों और कुर्सी पर तलवार लटक रही हो - क्योंकि दोस्ती या दुश्मनी ही नहीं पुलिस की पीठ ठोकना भी कभी अच्छा नहीं होता!
जैसे फिर से गाड़ी पलट गयी हो!
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कुछ दिनों पहले लखनऊ में इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में पुलिस एनकाउंटर के सवालों के पूछा गया - क्या गाड़ी फिर पलट सकती है? कानपुर के ही बिकरू गांव के गैंगस्टर विकास दुबे के उज्जैन में सरेंडर के बाद यूपी लाते वक्त रास्ते में गाड़ी पलटने के बाद पुलिस ने उसे एनकाउंटर में ढेर कर दिया था. उसके बाद से ही गाड़ी पलटना यूपी पुलिस के एनकाउंटर के साथ जुमले के तौर पर जुड़ गया.
आत्मविश्वास से लबालब योगी आदित्यनाथ ने मुस्कुराते हुए जवाब में कहा था - फिर पलट सकती है... गाड़ी कभी भी पलट सकती है. लगता है जब लाइव शो चल रहा था तभी गोरखपुर के पुलिसवालों ने मन में एवमस्तु वाला भाव धारण कर लिया था. सब कुछ साक्षात सामने है. बाकी बीजेपी समर्थकों की बात और भले हो, लेकिन गोरखपुर वालों का प्राण तो योगी आदित्यनाथ में ही बसता है और वे तो पुलिस वाले ही हैं - मौका मिलते ही पलट दी गाड़ी!
रामगढ़ताल थाने से करीब 300 मीटर दूर होटल में मनीष गुप्ता की मौत को गोरखपुर पुलिस ने पहले हादसा बताया था, लेकिन बाद में मनीष की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता और परिवारवालों के धरने पर बैठ जाने और मामला सरेआम हो जाने के बाद छह पुलिसवालों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है - थाने के एसएचओ सहित तीन नामजद आरोपी हैं और तीन अज्ञात. मामले की जांच की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच को सौंपी जा चुकी है.
योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में यूपी पुलिस 'हाथरस 2.0' जैसा है!
शहर के पॉश इलाके के एक होटल में कानपुर के बर्रा इलाके के मनीष गुप्ता अपने दो दोस्तों प्रदीप सिंह और हरवीर सिंह के साथ होटल में रुके थे, तभी आधी रात के बाद पुलिस छापा मारती है. करीब साढ़े दस बजे तीनों डिनर के लिए निकले थे और घंटे भर में ही कमरे पर लौट भी आये थे. घटना के बारे में प्रदीप सिंह बताते हैं, 'जब हमारे कमरे का दरवाजा पुलिसकर्मियों ने खटखटाया तो बोला कि ये एक रूटीन चेकअप है.' प्रदीप के अनुसार ये करीब सवा 12 बजे का वाकया होगा.
बताते हैं कि दरवाजा हरवीर ने खोला था और अपने साथ साथ प्रदीप के कागजात पुलिस को दिखा दिये थे. गहरी नींद में सो रहे मनीष गुप्ता को जगाया गया तो अजीब लगा - और बोला भी कि किसी सोते हुए को जगाने का ये भी कोई वक्त होता है. प्रदीप ने जब पुलिसवालों को ये समझाने की कोशिश की कि उनके सारे डॉक्युमेंट्स रिसेप्शन पर जमा हैं और वे वहां से भी देख सकते थे. गश्त पर निकले पुलिसवालों को ऐसे शब्द कभी बर्दाश्त नहीं होता, खासकर बताने का लहजा.
हरवीर के मुताबिक, मनीष की बात सुनते ही एसएचओ जगत नारायण सिंह भड़क गये और कहने लगे - 'तुम पुलिसवालों को बताओगे कि कैसे काम होता है?' और फिर हरवीर से ही बोले, 'तू एक रात थाने में रहेगा तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी.'
ये सब चल ही रहा था कि मनीष गुप्ता ने अपने रिश्तेदार दुर्गेश वाजपेयी को फोन मिलाया, फिर क्या था ये देखते ही पुलिस वाले आपे से बाहर हो गये. दुर्गेश वाजपेयी बीजेपी के ही नेता बताये जाते हैं.
पिटाई से जब मनीष की हालत खराब होने लगी तो पुलिसवाले ही फटाफट एक अस्पताल ले गये लेकिन हालत गंभीर होने के कारण बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया गया - और वहां मनीष ने दम तोड़ दिया.
गोरखपुर के एसएसपी विपिन टाडा से जब बीबीसी ने जानकारी चाही तो उनका कहना रहा, 'अपराधियों की चेकिंग के दौरान रामगढ़ताल थाने की पुलिस एक होटल में गई... वहां एक कमरे में तीन अलग-अलग शहरों से आये तीन संदिग्ध युवक ठहरे थे... पुलिस होटल मैनेजर को साथ लेकर कमरे में गई, जहां हड़बड़ाहट में एक युवक को कमरे में गिरने से चोट लग गई,' लेकिन ये बात जब बीबीसी ने होटल के मैनेजर विवेक मिश्र से फोन पर पूछा तो बोले, 'पुलिस जब कमरे में गई थी तो होटल का स्टाफ साथ नहीं था.'
गोरखपुर के पुलिसवालों ने जो हाल मनीष गुप्ता का किया है, ठीक तीन साल पहले 28 सितंबर को ही लखनऊ में करीब आधी रात को ही दो पुलिस वालों ने एक निजी कंपनी के एक्जीक्युटिव विवेक तिवारी को चलती गाड़ी में गोली मार कर ढेर कर दिया था. तब विवेक तिवारी एसयूवी ड्राइव कर अपनी सहकर्मी को घर छोड़ने जा रहे थे.
और कल्पना तिवारी की ही तरह मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता को भी हर संभव तरीके से समझाया बुझाया जा चुका है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात हो चुकी है. मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को मुआवजे की राशि बढ़ा कर 10 लाख कर दिये जाने का हुक्म भी जारी कर दिया है - और मीनाक्षी गुप्ता को कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया है.
ये 'हाथरस 2.0' है
हाथरस गैंगरेप पीड़ित के जबरन आधी रात को अंतिम संस्कार कर दिये जाने के बाद वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो अपने तरीके से पीड़ित परिवार को समझा-बुझा रहे थे. बिलकुल वैसा ही एक वीडियो गोरखपुर के डीएम-एसएसपी का वायरल हुआ है और वे भी बंद कमरे में मनीष गुप्ता की पत्नी को अपने तरीके से समझाने बुझाने की कोशिश कर रहे हैं.
हाथरस के डीएम का जो वीडियो वायरल हुआ था उसमें वो पीड़ित परिवार को धमका रहे थे... ये मीडिया वाले चले जाएंगे तब क्या हाल होगा? और उसी दौरान वो कोई बयान भी बदलने की बात कर रहे थे.
वायरल वीडियो में हाथरस के डीएम समझा रहे थे, "आप अपनी विश्वसनीयता खत्म मत कीजिए... मीडिया वाले आधे चले गये हैं... कल सुबह आधे निकल जाएंगे... दो-चार बचेंगे कल शाम... हम आपके साथ खड़े हैं... अब आपकी इच्छा है कि आपको बयान बदलना है या नहीं?
ठीक वैसे ही गोरखपुर के डीएम जिले के एसएसपी के साथ मनीष गुप्ता के परिवार को समझाने की कोशिस कर रहे हैं कि पुलिसवालों की मनीष गुप्ता से कोई दुश्मनी नहीं थी. वो रूटीन चेकिंग के लिए गये थे और मारपीट में मौत हो गयी. कितनी आसान बात है ना - पति की हत्या के बाद दुखों के पहाड़ से दबी महिला को ये अफसर ऐसे ही समझा रहे होते हैं - ऐसे अफसर जिनके पास इंसाफ मांगने लोग सिफारिश लेकर पहुंचने की कोशिश करते हैं.
मीनाक्षी गुप्ता से जिलाधिकारी कह रहे हैं बड़ा भाई होने के नाते समझा रहा हूं, मुकदमा मत कीजिये कोर्ट कचहरी के कई कई साल तक चक्कर काटने पड़ते हैं. एसएसपी भी भरोसा दिलाते हैं, मैं वादा करता हूं कि पुलिसवालों को क्लीन चिट मिलने तक बहाल नहीं होने दूंगा - मतलब, क्लीन चिट मिलना भी पहले से तय है. बस उसका कोई खास पीरियड होता है. नहीं?
बातचीत के बीच ही एसपी विपिन टाडा रिकॉर्डिंग की बात करते हैं और डीएम भी उस तरफ देखते हैं, तभी कहा जाता है कि रिकॉर्डिंग नहीं चल रही है - और वीडियो क्लिप वहीं पर खत्म हो जाता है. वीडियो में तस्वीरें तो साफ हैं, लेकिन ऑडियो की हम पुष्टि नहीं करते क्योंकि उसके लिए साइंटिफिक जांच ही मान्य होनी चाहिये. फिर भी जिस माहौल में और जो बातें चल रही हैं, परिस्थितिजन्य शक की भी गुंजाइश काफी कम लगती है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसे वायरल वीडियो के जरिये भी हमें कुछ ही घटनाओं की थोड़ी बहुत जानकारी मिल पाती है - ये देखकर तो ऐसा ही लगता है जैसे अंधेरगर्दी ही मची हो. न जाने कितने लोग पुलिस एनकाउंटर में गोली से या गाड़ी पलटने से मार दिये जाते होंगे क्या पता - क्योंकि हर घटना का कोई वीडियो तो बनाता नहीं.
सुना है, वर्दीवाले गुंडों की खैर नहीं!
गोरखपुर के नये कांड के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो कमेटियां बना दी है, ताकि सूबे के भ्रष्ट पुलिसवालों की लिस्ट तैयार की जा सके और उसके बाद उनके खिलाफ एक्शन. हो सकता है, इसके पीछे मनीष गुप्ता की हत्या में नामजद रामगढ़ताल थाने के एसएचओ रहे जगत नारायण सिंह प्रेरणास्रोत रहे हों - क्योंकि सोशल मीडिया पर उनको 'नकद नारायण सिंह' के नाम से भी संबोधित किया जा रहा है.
मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता की तरफ से जो एफआईआर दर्ज करायी गयी है उसमें इंसपेक्टर जगत नारायण सिंह के अलावना कॉन्स्टेबल अक्षय मिश्रा और विनोद मिश्र को भी नामजद किया गया है, जबकि तीन अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज हुआ है. बड़ी अजीब बात है, पुलिसवालों ने तीन के तो नाम डाल दिये, लेकिन तीन पुलिसवालों को अज्ञात कैटेगरी में डाल दिया - ताकि आगे मामले को रफा दफा करने का स्कोप भी बरकरार रहे.
जगत नारायण सिंह की 2017 से ही गोरखपुर में पोस्टिंग बतायी जा रही है और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अक्सर वो अपने कारनामों को लेकर चर्चित रहे हैं. बताते हैं, कई लोग तो उनका मोबाइल नंबर भी 'नकद नारायण सिंह; के नाम से सेव करके रखते हैं.
*मनीष हत्याकांड...एनकाउंटर कर सिपाही से इंस्पेक्टर बने जेएन सिंह:* नगद नारायण के नाम से चर्चित जगत नारायण, गोरखपुर में फेमस है इनका ये डॉयलाग- ओ मिस्टर...आई एम इंस्पेक्टर...हू आर यू?
— Kapil (@Kapil24449847) September 30, 2021
ये भी सुनने में आ रहा है कि जब भी वो खुश होते हैं बड़े जोश में अपनी गाथा भी सुनाते हैं, "मुझसे कोई सिफारिश न करना... मैं बिना वांछित के कोई काम नहीं करता... मैं जिले में सिर्फ दो लोगों की ही सुनता हूं... बाकी किसी की नहीं... ' वांछित का मतलब भी सब लोग बिना बताये भी समझ जाते हैं. वैसे भी जिसका नाम ही पड़ चुका हो उसकी बातें समझने के लिए दिमाग पर ज्यादा जोर लगाने की जरूरत कहां पड़ने वाली है.
एक बार किस्सा शुरू करते हैं तो जल्दी रुकते भी नहीं, '...बड़े-बड़े नेताओं का तो सुजाकर गुब्बारा बना दिया... ऐसे ही इंस्पेक्टर नहीं बना हूं - घाट-घाट का पानी पीकर सिपाही से आउट आफ टर्म प्रमोशन मिला है...'
गोरखपुर की घटना के बाद योगी आदित्यनाथ ने एक हाई लेवल मीटिंग बुलायी थी और भ्रष्ठ पुलिसकर्मियों की लिस्ट तैयार करने के लिए दो कमेटियां बनायी गयी हैं. ये कमेटियां ऐसे पुलिसकर्मियों की स्क्रीनिंग करेंगी जो पिछले तीन साल से एक ही जिले में तैनात हैं और जिन पर कई तरह के आरोप हैं.
एक फेसबुक पोस्ट में बनारस में बसे पत्रकार विजय शंकर पांडेय की टिप्पणी यूपी के मौजूदा पुलिस-राज पर काफी सटीक बैठती है - साहित्य समाज का दर्पण है और पुलिस सरकार का 'साहित्य'!
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