देश में भले दंगे हों, योगी-राज में सब शांति-शांति है...
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में ही इतनी तासीर है कि इस सूबे में साम्प्रदायिक दंगों के कुचक्र पर विराम लग चुका है. यूपी दंगा मुक्त हुआ तो इसकी सार्वाधिक राहत मुस्लिम समुदाय को मिली, वैसे तो हिंसा या दंगा सबके लिए घातक है किंतु भीड़ की हिंसा में उन्हें जान-माल का अधिक नुकसान होता है जिनकी तादाद कम (अल्पसंख्यक) होती है.
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ये यूपी है योगी का,
यहां की फिजां है निराली,
यहां पर सब शांति-शांति है...
देश के कई राज्यों की फिजाएं गर्म है लेकिन उत्तर प्रदेश में इस हाट वेदर में भी सब कूल-कूल है. इतिहास गवाह है कि जब भी देश में सांम्प्रदायिक तनाव फैला है तो इसकी शुरुआत यूपी से हुई है. लेकिन अब इसके विपरीत पुरानी दुर्भाग्यपूर्ण परंपरा उल्टी गिनती गिनने लगी है. भले ही देश के तमाम सूबों में सांम्प्रदायिक तनाव की ख़बरें सामने आ रही हैं पर यूपी की योगी सरकार में शांति और अमन का राज क़ायम है. नवरात्रि-हनुमान जन्मोत्सव और रमज़ान साथ-साथ मनाया गया पर टकराव तो दूर कहीं किसी किस्म की तकरार की घटना भी सामने नहीं आई. जबकि यहां मुस्लिम आबादी भी ख़ूब है और दोनों धर्मों की धार्मिक गतिविधियां सिर चढ़ कर बोलती हैं.दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार , गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों से छुटपुट ही सही पर सांम्प्रदायिक घटनाएं चिंता का विषय बनी हैं. उत्तर प्रदेश जिसे पूर्व में सबसे संवेदनशील सूबा कहा जाता था देशभर में तनाव के बावजूद यहां सब शांति-शांति है. बेहतर कानून व्यवस्था देने के इनाम में सूबे की जनता ने करीब पौने चार दशक का रिकार्ड तोड़कर योगी आदित्यनाथ को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाया है.
वो तमाम राज्य जहां राम नवमी पर हिंसा हुई उन्हें यूपी और वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रेरणा लेनी चाहिए
पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ये भी कहती नज़र आई थी कि भले ही मंहगाई, बेरोजगारी, खेतों को तबाह करती आवारा पशुओं की समस्याओं से हम परेशान हुए पर बेहतर कानून व्यवस्था और प्रदेश को दंगा मुक्त करने में योगी सरकार ने एतिहासिक सफलता हासिल की है इसलिए वंस मोर योगी.ये सच भी है और आंकड़े भी यही बताते हैं कि जो उत्तर प्रदेश हर दौर में दंगों और हिंसा की आग में जलता रहा लेकिन अब यहां पिछले पांच वर्षों से सांम्प्रदायिक दंगा या बड़ी हिंसा की घटना सामने नहीं आई.
जबकि पिछले पांच वर्ष बहुत चुनौतीपूर्ण थे. कई बड़े आंदोलन और अयोध्या मामले में राम मंदिर के हक में फैसला आने के बाद यूपी की कानून व्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती थी. एनआरसी और सीएए के विरोध में हुई हिंसा में देशभर में हिंसा हुई, दिल्ली में तो साम्प्रदायिक दंगों में दर्जनों लोगों की जान चली गई, पर यूपी सरकार की सख्त कानून व्यवस्था ने हिंसा को पनपने का कोई मौका नहीं दिया.
इसी तरह राम मंदिर का फैसला आने के बाद चुस्त-दुरुस्त ला एंड आर्डर के होते परिंदा पर भी नहीं मार सका. बताते चलें कि पांच वर्ष पूर्व यूपी के संगठित अपराध और पेशेवर आपराधिक गैंग परवान चढ़ते थे अब सब के सब धराशाई हो गए. अपनी खूंखार अपराधिक प्रवृत्ति से आम नागरिकों का जीना दुश्वार करने वाले दर्जनों दुर्दांत अपराधी मुठभेड़ में मारे गए.
जिन माफियाओं और हिस्ट्रीशीटर्स को कुछ राजनीतिक दलों की सत्ता ने संरक्षण दिया और नायक की तरह पेश किया वे सब जेल की सलाखों के पीछे है. और तमाम क्रीमिनल्स, गुंडे, मवाली और पेशेवर दंगाई यूपी से पलायन करने पर मजबूर हो चुके हैं. तोड़फोड़ और दंगे फ़ैलाने की साज़िश रचने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ यहां इतनी सख्त कारवाई होती है कि अब ऐसे लोगों को आगे शांतिभंग करने की हिम्मत ही नहीं होती.
शायद योगी की गुड गवर्नेस का ही असर है कि जहां कई राज्यों में नवरात्रि-हनुमान जन्मोत्सव और रमज़ान के दौरान टकराव की घटनाएं घटीं वहीं यूपी में अमन-चैन और शांति से हिंदू और मुस्लिम समाज अपने-अपनी धार्मिक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. ख़बरें ये भी आईं कि दिल्ली सहित तमाम में राज्यों में हिन्दुओं के धार्मिक जुलूसों पर पत्थर बाजी से शांति भंग हुई.
जबकि देश में साम्प्रदायिक पारा चढ़ा होने के बीच ही यूपी के लखनऊ और नोएडा जैसे तमाम शहरों में साम्प्रदायिक सौहार्द की तस्वीरें देखने को मिलीं. यहां रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव से जुड़े जुलूसों, शोभायात्राएं में एकत्र हिंन्दू भाईयों का स्वागत करते हुए मुस्लिम समुदाए के लोगों ने पानी और शर्बत वितरित किया.
यूपी की तमाम सरकारों और जनता की नब्ज टटोल लेने में माहिर वरिष्ठ पत्रकार परवेज़ अहमद कहते हैं कि यूपी में योगी सरकार रिपीट होने से मुस्लिम समुदाय को बड़ी राहत मिली है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में ही इतनी तासीर है कि इस सूबे में साम्प्रदायिक दंगों के कुचक्र पर विराम लग चुका है. यूपी दंगा मुक्त हुआ तो इसका सार्वाधिक राहत मुस्लिम समुदाय को मिली, वैसे तो हिंसा या दंगा सबके लिए घातक है किंतु भीड़ की हिंसा में उन्हें जानमान का अधिक नुकसान होता है जिनकी तादाद कम (अल्पसंख्यक) होती है.
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