योगीजी, पीयूंगा न पीने दूंगा- कहने का वक्त
यूपी के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गुटखे और पान जैसे मामूली नशों पर आगबबूला हो जाते हैं तो शराब पर उनकी भावनाएं हर किसी को बगैर बताए समझ लेनी चाहिए.
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शराब और गुटखे के कई पहलू हैं और एक ये भी कि सरकारों और नेताओं की इसमें काफी दिलचस्पी होती है. सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के हाईवे की एक निश्चित परिधि से शराब की दुकानें हटाने का आदेश क्या दिया राज्य सरकारों में खलबली मच गई और बचने का रास्ता ढूंढा जाने लगा. केंद्र सरकार की सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ा क्योंकि आबकारी राज्य का मुद्दा है. लेकिन राज्यों ने रातोंरात स्टेट हाईवे का दर्जा बदलकर उसे शहरी सड़क या जिला मार्ग जैसे नाम देकर शराब की दुकानों को बचा लिया पर नेशनल हाईवे की दुकानों को शहरों के भीतर ले जाने से समस्या उत्पन्न हुई है.
प्रधानमंत्री के निर्वाचन वाले वाराणसी के अलावा उत्तर प्रदेश के डेढ़ दर्जन जिलों समेत, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे कई जगहों पर शराब दुकानों को स्थानांतरित करने के खिलाफ लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. ज्यादातर जगहों पर प्रदशन महिलाएं कर रही हैं. जाहिर है लोग शराब की दुकानों की अराजकता बर्दाश्त नहीं करने की स्थिति में नहीं हैं.
शराब पीने के बाद इंसान किस तरह बहक जाता है इसके अनगिनत उदाहरणों में सबसे ताजा मामला केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ हाल ही में हुई घटना को माना जा सकता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नशे में धुत युवकों ने ईरानी की कार का पीछा किया, हालांकि सब पकड़े गए. जब एक केंद्रीय मंत्री के ओहदे पर बैठी महिला के साथ ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो आम महिलाओं का हाल सोचा जा सकता है. जब राजधानी दिल्ली में ऐसी घटना हो सकती है तो छोटे शहरों के माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है. पीकर गाड़ी चलाने से लेकर नशे में किए अपराधों की फेहरिस्त लंबी है. गुटखे से सेहत को होने वाले नुकसान इसे खाने वाले बखूबी जानते हैं. यूपी के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गुटखे और पान जैसे मामूली नशों पर आगबबूला हो जाते हैं तो शराब पर उनकी भावनाएं हर किसी को बगैर बताए समझ लेनी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नशे के खिलाफ स्पष्ट राय रखते हैं और गुजरात में शराबबंदी को उन्होंने ही लागू किया. अब नशामुक्ति की यूपी की बारी है. लेकिन सरकार राजस्व को लेकर संशय में हो सकती है. अकेले हाईवे से ठेके हटाना यूपी सरकार के लिए सात सौ करोड़ रुपये की पहेली बताई जा रही है. सरकार इसी को लेकर हिचकिचा सकती है. शराब से राजस्व अर्जित करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश शीर्ष पांच में शामिल है. अकेले यूपी की नहीं ये समस्या तमिलनाडु, हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक की भी हो सकती है. इन राज्यों की सरकारें अगर हिम्मत दिखाएं तो देश की आधी से ज्यादा आबादी शराब से छुट्टी पा सकती है. लाखों लोग असाध्य बीमारियों की चपेट में आने से बच सकते हैं. न जाने कितने घरों की जर्जर अर्थव्यवस्था संभल सकती है.
सेहतमंद इंसान बहुत कुछ कर सकता है. बेहोश इंसान ज्यादा बेहतर फैसले कर सकता है. इसके लिए सरकारों को खजाने से ऊपर उठकर देखना होगा. राजस्व अर्जित करने के वैकल्पिक तरीके अपनाए जा सकते हैं. बिहार जैसे पिछड़े और गुजरात जैसे अग्रणी राज्यों में शराबबंदी लागू है और कामयाब भी कही जा सकती है. इन राज्यों ने भी अपना राजस्व कुर्बान किया है तो सिर्फ जनता की भलाई के लिए. शराब तस्करी और अवैध शराब की बिक्री काफी हद तक कानून व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा है इसके लिए पुलिस को चौकस करने की जरूरत होती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राह दिखाई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सूबे में शराब की बिक्री रोकने की उम्मीद दूसरों के मुकाबले इसलिए ज्यादा की जा रही है क्योंकि इनका मिजाज और व्यक्तित्व नशेबंदी के खिलाफ ज्यादा खिला हुआ दिखाई देगा. मोदी के खाऊंगा न खाने दूंगा की तर्ज पर योगी को पीयूंगा, न पीने दूंगा शुरू करना चाहिए. अब जरा गुटखे की बात. पिछले दिनों जबलपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में विस्फोट हुए और इसके बाद परिसर में आने वाले कर्मचारियों की चेकिंग सक्त हुई. जेब में रखा गुटखा, पान और पान मसाला बाहर रखवा लिया गया. कर्मचारी इतने बेचैन हो गए कि उन्होंने गुटखा वगैरह के लिए आंदोलन की धमकी दे दी. कई राज्यों में गुटखे पर बैन की खबरें तो आईं पर अमल नहीं हुआ. गुटखा लॉबी इतनी मजबूत है कि वो इसे बंद होने नहीं दे रही है. इस पर भी नए निजाम को कदम उठाना चाहिए.
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