New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 16 जनवरी, 2017 10:00 PM
कुदरत सहगल
कुदरत सहगल
  @kudrat.sehgal
  • Total Shares

जाइरा वसीम ने 'दंगल' में गीता फोगट के बचपन वाला रोल निभाकर फिल्‍मी दुनिया में कदम रखा. वही गीता जिनके पिता ने कहा था कि 'मैं अपनी छोरी को ऐसा बनाउंगा कि छोरे उसे नहीं, वो छोरों को देखने जाएगी.' और, गीता फोगट ने एक ऐसा 'दंगल' लड़ा जिसे पर्दे पर देखकर हर पिता और बेटी का दिल प्रेरणा, इमोशन और जज्‍बे से भर गया. कि हर किसी को अपने सपनों का पीछा करना चाहिए.

लेकिन जाइरा वसीम के ताजा फेसबुक पोस्‍ट ने उन तमाम हिंदुस्‍तानियों के चेहरे पर तमाचा मारा है, जो जाइरा में कश्‍मीरी युवाओं के लिए उम्‍मीद देख रहे थे. जाइरा अपनी कामयाबी और उस पर कश्‍मीर की मुख्‍यमंत्री मेहबूबा मु्फ्ती से सम्‍मान मिलने पर माफी मांग रही हैं. वे कश्‍मीरी दिल ही नहीं, वहां के युवाओं की उम्‍मीदों के बुलबुले को फोड़ने की भी अपराधी हैं.

post1_011617094820.jpg
 जाइरा वसीम का पहला फेसबुक पोस्‍ट, जिसमें वह अपने किए पर माफी मांग रही हैं.

उन्‍हें शर्तिया माफी मांगनी चाहिए दंगल टीम से, उनके पहलवान ट्रेनर से, उस खून-पसीने से जो उन्‍होंने रोंगटे खड़े करने वाले परफॉर्मेंस के दौरान बहाया. उन्‍हें उन कश्‍मीरी लड़कों और लड़कियों से जरूर माफी मांगनी चाहिए जो शांति चाहते हैं. जो सफल करिअर चाहते हैं. जो अवसर और तरक्‍की चाहते हैं.

वह सोशल मीडिया पर पीछे पड़ने वाले ट्रोल के मामूली समूह और कट्टरपंथियों को दबाव बनाने का मौका कैसे दे सकती हैं? जाइरा का ये माफीनामा उनकी उम्‍मीदों के साथ खड़े देशभर के लोगों की बेइज्‍जती है. ये लोग न सिर्फ उनकी तरक्‍की की कामना कर रहे थे बल्कि आतंक के साए में जी रहे एक राज्‍य में उन्‍हें युवाओं के आदर्श के रूप में उभरते हुए देखना चाहते थे. कभी स्‍वर्ग रहे कश्‍मीर को जिसकी बेहद सख्‍त जरूरत है.

zaira-mufti650_011617095130.jpg
 मुख्‍यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती से मुलाकात के बाद कट्टरपंथियों ने जाइरा पर दबाव बनाना शुरू किया.

क्‍या जाइरा अपनी फेसबुक पोस्‍ट से यह बताना चाहती हैं कि बुरहान वानी जैसे लोग कश्‍मीरी युवाओं के असली आदर्श हैं और युवाओं को उन्‍हीं के रास्‍ते पर चलना चाहिए. और बुरहान वानी जैसा ही उनका भविष्‍य है. जो किसी के उकसाने पर अपनी जान देना चाहते हैं और जिनके लिए राष्‍ट्रवाद एक अपराध है.

हमने तो कभी भी वानी जैसों को शर्मिंदा होते नहीं देखा जिन्‍होंने कुछ मामूली कट्टरपंथियों की खातिर जाइरा वसीम जैसों को अपने ख्‍वाब पूरे करने से रोका और उन्‍हें शर्मिंदा होने पर मजबूर किया.

और जाइरा की अगली पोस्‍ट कह रही है कि माफी मांगने के लिए उस पर किसी ने दबाव नहीं डाला था. यह एक बहुत बड़ा मजाक है. यह ऐसा ही है, जैसे कोई कहे कि कश्‍मीर एक शांतिपूर्ण राज्‍य है और बुरहान वानी आतंकी नहीं है.

post2_011617095042.jpg
 जाइरा का दूसरा फेसबुक पोस्‍ट, जिसमें वह अपने पहली पोस्‍ट की सफाई दे रही है. और किसी तरह के दबाव से इनकार कर रही है.

वह अपनी फेसबुक पोस्‍ट में कह रही हैं कि युवा उनके रास्‍ते पर न चलें. लेकिन इसका मतलब क्‍या है? क्‍या इसका मतलब यह है कि एक्टर बनना देशद्रोह है, या अपनी उपलब्धि पर सम्‍मान पाना गैर-कश्‍मीरी है?

जाइरा अपनी पोस्‍ट में लिखती हैं, या उनसे लिखवाया जाता है कि वे सिर्फ 16 साल की हैं और उनके साथ उनकी उम्र के लिहाज से ही बर्ताव किया जाना चाहिए? तो क्‍या वह ये बताना चाहती हैं कि कश्‍मीर में अब तक उनकी शादी हो जाना चाहिए थी या उन्‍हें बुरहान वानी की तरह बड़ा यूथ आइकन बनने के लिए किसी आतंकी गुट में शामिल हो जाना चाहिए था ? या वह ये बताना चाहती हैं कि एक कश्‍मीरी लड़की होने के नाते उनके पास एक तरक्‍कीपसंद समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है?

जाइरा का एक के बाद एक पोस्‍ट लिखने और फिर हटाने से कश्‍मीरी युवाओं के साथ चल रहा 'असली दंगल' साफ दिखाई दे रहा है. जिसने उन्‍हें उलझा कर रख दिया है.

कश्‍मीरी युवाओं को सपने नहीं देखना चाहिए. यदि वे इसकी हिम्‍मत जुटाते हैं तो उन्‍हें खामोशी के अंधेरे में धकेल दिया जाएगा. विडंबना यह है कि मुट्ठीभर लोग आसानी से एक बड़ी आबादी को अपनी अंगुली पर नचा रहे हैं. जिनकी उम्‍मीदें और जिंदगी कुंठाग्रस्‍त हो चुकी है.

शायद आज जाइरा पूरे देश का दिल जीत सकती थी, यदि वह फेसबुक पर यह कहती कि उसे भारतीय कश्‍मीरी होने पर गर्व है और नौजवानों की एक आइकन बनकर वह बेहद खुश है. यदि उसके रोल से कश्‍मीर की टैलेंटेड लड़कियों और लड़कों को दिशा मिलती है तो उसे खुशी होगी.

दुर्भाग्‍यवश, उसकी पोस्‍ट ने कश्‍मीर के क्षमतावान युवाओं की उम्‍मीदों पर पानी फेरने का काम किया है, जो अपनी मेहनत से अपने सूबे की दिशा और दशा बदलने का माद्दा रखते हैं. जहां अब तक बंदूक की गोलियों और बम की आवाजें ही आती रही हैं.

आजादी के शोर में न जाने कितनी ही जाइरा ने यह मंजूर कर लिया है कि तरक्‍की जैसा शब्‍द उनके लिए नहीं है. 'आजादी' वाली विचारधारा के नाम पर कश्‍मीर जंग ने पूरे सूबे को बर्बाद करके रख दिया है.

और सिर्फ एक जाइरा वसीम के पास सुनहरी मौका था इस खोखली लड़ाई के दबाव में न आने का. ताकि कई और जाइरा की बर्बादी रोकी जा सके.

तो जाइरा वसीम, तुम तो वो यूथ आइकन बिलकुल नहीं हो, जिसकी कश्‍मीर को बेहद जरूरत है.

लेखक

कुदरत सहगल कुदरत सहगल @kudrat.sehgal

डिजिटल कंटेंट को लेकर रणनीति बनाती हैं. विचारों से घोर फेमिनिस्ट.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय