1000 साल तक भारत से युद्ध की चाहत रखने वाले भुट्टो का अंत पाकिस्तान का असली चेहरा है
जिया उल हक द्वारा जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में फांसी पर लटकाने का फैसला पाकिस्तान के इतिहास में एक अहम घटना की तरह देखा जाता है. इसी घटना के बाद से पाकिस्तान का रुख इस्लामिक आतंकवाद की तरफ मुड़ गया.
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भारत और पाकिस्तान का एक ही इतिहास होने और यहां तक कि लोगों के भी लगभग एक से ही होने के बावजूद ऐसा कैसे हो गया कि भारत में स्थिर लोकतंत्र है, जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है? इस पहेली को अभी तक कोई भी नहीं सुलझा सका है. लेकिन जिया उल हक द्वारा जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में फांसी पर लटकाने का फैसला पाकिस्तान के इतिहास में एक अहम घटना की तरह देखा जाता है. इसी घटना के बाद से पाकिस्तान का रुख इस्लामिक आतंकवाद की तरफ मुड़ गया.
शायद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य होते और कश्मीर एक स्वर्ग जैसा हो सकता था. लगभग हर देश के इतिहास में ऐसे कुछ 'शायद' होते ही हैं. और भुट्टो की पहेली दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐसा ही 'शायद' है.
एक मौके पर उन्होंने जेल से ही अपनी पार्टी के साथियों को लिखा था: 'कृपया ध्यान रखें कि हमारे देश का आधार इस्लाम है. लेकिन हम लोग प्रगतिशील मुस्लिम हैं ना कि प्रगति विरोधी. लेकिन हम साम्यवादी भी नहीं हैं.' अपने बचपन के दिनों से ही भुट्टो के दिलो-दिमाग पर पाकिस्तान का आइडिया छाया हुआ था. उनकी पीढ़ी के अधिकतर मुस्लिमों की तरह, पाकिस्तान के लिए उनके आकर्षण की वजह भारत के खिलाफ गहरा अविश्वास और नफरत थी. भारत को वह अपने लिए एक बड़ा खतरा मानते थे.
इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि जिन्ना के बाद के पाकिस्तान में भुट्टो काफी प्रभावशाली नेता थे. अब सवाल ये है कि जिया उल हक और जुल्फिकार भुट्टो के बीच संबंध क्या था? बताया जाता है कि जिया को भुट्टो से काफी खतरा था. मुबाशिर हसन के अनुसार एक वर्कर ने उन्हें बताया था कि जब भुट्टो के जूतों पर चाय की कुछ बूंदें गिर गई थीं तो किस तरह जिया ने अपना रूमाल निकाला था और उसे साफ किया था. सत्ता के संघर्ष को समझने में इस तरह की घटनाएं बेहद दिलचस्प साबित होती हैं.
धीरे-धीरे जिया का रुतबा बढ़ने लगा था. 'न्यायिक हत्या' नाम के अध्याय से यह पता चलता है कि कोलोनियल (द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का वक्त) दौर के बाद वाले समाज में संस्थाएं कितनी कमजोर थीं. जिया मानते थे कि भुट्टो की हत्या किए बिना वह सत्ता पर काबिज नहीं हो सकते हैं. और ऐसा ही हुआ, भले ही बेनजीर और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के सदस्यों ने ट्रायल के दौरान और बाद में भी उनके खिलाफ कितनी ही लड़ाई लड़ी.
यह जानना दिलचस्प होगा कि उस समय दुनिया भर के नेता जिया के प्रेसिडेंट बनने से खुश नहीं थे. दुनिया भर की राय को नकार दिया गया और फिर भुट्टो को फांसी दे दी गई. भुट्टो और भुट्टो की अगुवाई वाली सरकारें कहीं खो सी गईं, जो काफी कमजोर और उबाऊ हो गई थीं. पाकिस्तान के लिए देशभक्ति का उनका पैमाना यही था कि किसी के अंदर भारत के खिलाफ कितनी नफरत है. सर शाहनवाज भुट्टो की इस आदत की वजह से उन्हें मनोचिकित्सक से भी दिखाना पड़ा. शाहनवाज़ भुट्टो बंटवारे से पहले जूनागढ़ के प्रधानमंत्री थे, जिनकी योजना अपने राज्य को पाकिस्तान से मिलाने की थी, जो बाद में उल्टी पड़ गई.
जुल्फिकार अली भुट्टो एक विचारक के साथ-साथ कश्मीर के लिए हुए 1965 के युद्ध के एक अहम नेता भी थे. ऑपरेशन गिब्राल्टर और ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम बुरी तरह से असफल हुए, जिसने यह साफ कर दिया कि जम्मू और कश्मीर में सीज फायर लाइन पर एक इंच भी जमीन इधर से उधर नहीं हुई.
1971 में बांग्लादेश की हार से तिलमिलाए भुट्टो ने हार को छुपाने के लिए वादा किया कि भारत के खिलाफ अगले 1000 सालों तक लड़ाई जारी रहेगी. मतलब अभी हमारे पास 960 दिन और बाकी हैं. तो फिर शांति समझौते के लिए कोई जल्दबाजी नहीं है. 1000 साल की इस धमकी का आशय ये था कि पाकिस्तान कभी भी युद्ध के मैदान में नहीं जीत सकता है.
बांग्लादेश की हार से तिलमिलाए भुट्टो ने संयुक्त राष्ट्र में ये कहा था:
जुल्फिकार की बेटी बेनजीर भुट्टो 1989 में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आईं. नरसिम्हा राव को गालियां दीं और कश्मीर को आजादी का वादा किया. जब 'आजादी' पर उन्होंने अपनी बात खत्म की तब तक उनकी आवाज चीख में बदल चुकी थी. उसके बाद दो दशक बीत गए, बेनजीर को उनके ही देश में जान से मार दिया गया और कश्मीर में एक इंच भी जमीन इधर से उधर नहीं हुई है. हो सकता है कि भुट्टो और पैरोकार जो कहते थे, उनका मतलब वो ना हो. भले ही वह आतंकवाद के लिए मिलिट्री शासन को जिम्मेदार ठहराते हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ एक राय है, पाकिस्तान के बचाव को वहां स्वीकारा नहीं जा सकता है.
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