मुस्लिम टोपी क्यों पहनते हैं, इसका इससे बेहतर जवाब क्या हो सकता था...
एक मां ने अपनी बेटी के कुछ मासूम से सवालों का जवाब दिया है. ये जवाब इस बात का सुबूत हैं कि हमारे देश में अगर धार्मिक सौहार्द आज भी कायम है तो वो इसलिए कि हमारे देश में सभी धर्मों के प्रति प्यार और सम्मान करने वाले लोग रहते हैं.
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देश में हिंदू-मुस्लिम के झगड़े और उसपर हो रही राजनीति को थोड़ी देर के लिए भूल जाइए, और न भी भूलना चाहें तो ये खबर आपकी भावनाओं को थोड़ा सा तो जरूर बदल देगी.
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कुछ दिनों से वायरल है. इसमें एक मां ने अपनी बेटी के कुछ मासूम से सवालों का जवाब दिया है. ये जवाब इस बात का सुबूत हैं कि हमारे देश में अगर धार्मिक सौहार्द आज भी कायम है तो वो इसलिए कि हमारे देश में सभी धर्मों के प्रति प्यार और सम्मान करने वाले लोग रहते हैं.
मेघना नाम की एक महिला ने फेसबुक पर लिखा-
'कुछ महीनों पहले मैं दिल्ली में ऊबर पूल से सफर कर रही थी. मैं पहले बैठी थी, फिर एक महिला अपनी छोटी सी बच्ची के साथ बैठीं और करीब एक किलोमीटर के बाद एक मुस्लिम व्यक्ति आगे वाली सीट पर बैठ गए.
इस व्यक्ति ने सफेद रंग की पारंपरिक टोपी पहन रखी थी. छोटी बच्ची ने जिज्ञासावश अपनी मां से सवाल किया कि ''इन अंकल ने शाम को टोपी क्यों पहन रखी है? बाहर तो धूप भी नहीं है.''
अभी तक रेडियो चल रहा था और मुस्लिम व्यक्ति ड्राइवर से बात कर रहा था और मैं अपने फोन में लगी थी. लेकिन इस सवाल ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा, ड्राइवर और उस व्यक्ति की बातचीत रुक गई और ड्राइवर ने म्यूजिक प्लेयर की आवाज कम कर दी.
मैंने सोचा कि मैं बच्ची को कुछ बताऊं लेकिन उसकी मां जवाब देने के लिए पहले ही तैयार थीं. उन्होंने कहा ''क्या तुमने मुझे नहीं देखा जब मैं मंदिर जाती हूं या कोई बड़े हमारे घर आते हैं या फिर मुझे तुम्हारे दादा-दादी के पांव छूने होते हैं तो मैं दुपट्टे से अपना सिर ढक लेती हूं? ये किसी को सम्मान देने का तरीका होता है, मेरे बच्चे.''
बच्ची मां के जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. उसने दूसरा सवाल किया ''लेकिन ये भैया किसे सम्मान दे रहे हैं? यहां तो कोई मंदिर भी नहीं है, वो किसी के पार भी नहीं छू रहे हैं और कार में कोई इतना बड़ा व्यक्ति भी नहीं बैठा है जिसे ये सम्मान दे रहे हों?''
आश्चर्यजनकरूप से वो मां इस सवाल के लिए भी तैयार थीं. उन्होंने बड़े धैर्य से जवाब दिया- ''इनके माता-पिता ने इन्हें ये सिखाया है कि ये जिससे भी मिलें उसका सम्मान करें. ठीक उसी तरह जैसे मैंने तुम्हें अतिथियों को नमस्ते करना सिखाया है.''
किसी को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी. उस मुस्लिम व्यक्ति को भी नहीं. मैंने कैब पहले ली थी तो मैं अपनी मंजिल तक पहले पहुंच गई. मैं नीचे उतरी, मुस्कुराई और सोचने लगी- अगर एक आम आदमी अपने आस-पास वालों के बारे में ऐसा सोचता है, अगर लोग अपने बच्चों को इस तरह की शिक्षा दे रहे हैं, अगर आज की पीढ़ी के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे इस प्रकार सीखें तो हमारे राजनेता हमें बांट पाने में विफल हो रहे हैं. सभी रूढ़िवादी बेवकूफ इस देश को बांट पाने में विफल हो रहे हैं. मैं बस इतना ही कहुंगी कि 'मेरा भारत महान'.'
तो देखा आपने धर्म के नाम पर लोगों को बांटना इतना आसान नहीं है. क्योंकि इस देश में ऐसे लोग भी रहते हैं जो चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी के मन में दूसरे धर्मों के प्रति नफरत और द्वेष न पनपे, वो हर धर्म को समझें, उसे सम्मान दें, प्यार मुहब्बत बनी रहे और सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रहे.
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