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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 07 फरवरी, 2022 06:13 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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स्वर कोकिला, द गोल्डन नाइटेंगल जैसी उपमाओं से विभूषित 'भारत रत्न' लता मंगेशकर पंचतत्व में विलीन हो गई हैं. लता मंगेशकर की अंतिम यात्रा में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए अलग-अलग विचारधाराओं के राजनेताओं से लेकर कई फिल्मी हस्तियां मौजूद रही थीं. लता मंगेशकर के निधन के बाद उनकी गायकी और उनके जीवन से जुड़े किस्सों पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है. बहुतायत में लोगों ने लता मंगेशकर के लिए अच्छी बातें ही लिखी हैं. लेकिन, लता मंगेशकर के निधन में भी कुछ लोगों को अपने राजनीतिक और तथाकथित बौद्धिक एजेंडा को साधने का जरिया नजर आ रहा है. इन तमाम लोगों को देखकर ऐसा लग रहा है कि ये सभी लता मंगेशकर को कोसने के लिए बस उनके पंचतत्व में विलीन होने का ही इंतजार कर रहे थे. सबसे बड़ी बात ये है कि ये लोग सोशल मीडिया पर पाए जाने वाले कोई आम ट्रोल नही हैं. बल्कि, इन लोगों की गिनती कथित तौर पर बड़े विचारकों के रूप में की जाती है. इन लोगों का एक बड़ा फैनबेस है, जो इन्हें फॉलो करता है.

Lata Mangeshkar s deathराजनीतिक प्रतिबद्धाओं ने लोगों की आंखों पर इस कदर पर्दा डाल दिया है कि ये किसी के निधन पर भी उसकी आलोचना का मौका खोजने लगते हैं.

लता मंगेशकर को कोसने के लिए इन लोगों ने सामूहिक रूप से अपने एजेंडा के तहत उनकी जाति, धर्म, विचारधारा, सामाजिक योगदान को शर्मनाक तरीके से पेश करने का कुत्सित प्रयास किया है. शायद ही सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को उनके 80 साल के संगीत के सफर में इन चीजों के लिए निशाना बनाया गया होगा. हालांकि, यह बात भी पूरी तरह से सही नही है. क्योंकि, नरेंद्र मोदी की तारीफ करने के लिए एक कांग्रेस नेता ने ही लता मंगेशकर का 'भारत रत्न' छीनने की मांग कर दी थी. वैसे, राजनीतिक प्रतिबद्धाओं ने लोगों की आंखों पर इस कदर पर्दा डाल दिया है कि ये किसी के निधन पर भी उसकी आलोचना का मौका खोजने लगते हैं. किसी की आलोचना करना गलत नहीं कहा जा सकता है. लेकिन, इसके लिए उसके मरने का इंतजार कौन करता है? अगर आप इतने ही प्रबुद्ध वर्ग के हैं, तो लता मंगेशकर की आलोचना में सोशल मीडिया पर तैर रहे ये शब्द कुछ समय पहले क्यों नजर नहीं आए? दरअसल, ये कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोग गिद्ध बन चुके हैं, जो किसी की भी लाश पर अपनी राजनीतिक और बौद्धिक उल्टियां कर लाइमलाइट में आने की कोशिश करते हैं.

फेसबुक पर एक स्वघोषित बुद्धिजीवी और लेखक प्रमोद रंजन लिखते हैं कि 'यतींद्र मिश्र की किताब बताती है कि लता मंगेशकर के आदर्श पुरूष विनायक दामोदर सावरकर थे. प्रसिद्ध लोकशायर सांभा जी भगत बताते हैं कि उनके लोग लता जी के पास गए थे. वे चाहते थे कि लता जी आंबेडकर पर केंद्रित गानों को अपना स्वर दें. लता जी ने मना कर दिया, जबकि सांभा जी के लोग उन्हें पर्याप्त फीस देने को तैयार थे. लता जी ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरूआत होने पर ट्वीट कर कहा था कि "कई राजाओं का, कई पीढ़ियों का और समस्त विश्व के राम भक्तों का सदियों से अधूरा सपना आज साकार हो रहा है." पॉप गायिका रिहाना ने जब भारत में जारी किसान आंदोलन की ओर दुनिया का ध्यान खींचना चाहा था, तो लता जी ने उसे टि्वीट करके लताड़ा था. सुना है, वे व्यहार में बहुत अच्छी थीं. लेकिन उनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं था. दुनिया कैसी होनी चाहिए, कौन सी ताकतें दुनिया के सुर को बिगाड़ती हैं और कौन इसे संवारने के लिए संघर्षरत हैं, इस बारे में उनका कोई विचार नहीं था. दुनिया में आज तक किसी विचारहीन कलाकार ने इतिहास में स्थान नहीं बनाया है, चाहे वह अपने जीवन-काल में कितना भी महान क्यों न लगता रहा हो. लता जी निधन पर जो श्रद्धांजलियां उन्हें मिल रही हैं, वे अंतिम हैं. वे इतिहास के कूड़ेदान में वैसे ही जाएंगी, जैसे कोई टूटा हुआ सितार जाता है, चाहे उसने अपने अच्छे दिनों में कितने भी सुंदर राग क्यों न निकाले हों.' 

इतना ही नहीं खुद को दलित चिंतक बताने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल भी लता मंगेशकर के निधन पर अपना जातिवादी एजेंडा साधने की कोशिश करते दिखे. दिलीप मंडल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि 'देवदासी परिवार की लता मंगेशकर ने जिस तरह हिंदी संगीत जगत पर दशकों तक राज किया, उस संघर्ष को नमन. लता जी की दादी यानी पिता दीनानाथ मंगेशकर की मां येसुबाई गोवा के मंगेशी मंदिर में देवदासी थीं. लता जी ने जब गाना शुरू किया तब ''अच्छे परिवारों'' की लड़कियां फिल्मों में नहीं गाती थीं.' 

सिलसिलेवार ट्वीट में दिलीप मंडल ने लिखा कि 'कई लोग इस बात के लिए आदरणीय लता दीदी की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने बाबा साहब के सम्मान में गाने से मना कर दिया. लेकिन ये सोचिए कि उस दौर में अगर उन्होंने वह गीत गाया होता तो बॉलीवुड उनका क्या हाल करता. देवदासी परिवार से होने के कारण लता जी वैसे भी संघर्ष कर रही थीं.' 

एक पत्रकार सुमित चौहान ने भी संभाजी के दावे को लेकर लता मंगेशकर पर सवाल खड़े किए हैं. इनके अनुसार, लता मंगेशकर बहुत अच्छा गाती थीं लेकिन दुनिया को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने कोई कोशिश नहीं की. अन्याय और जुल्म के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं बोली. ब्राह्मणवाद-जातिवाद का कभी विरोध नहीं किया. दंगों-नरसंहार पर चुप रही. सावरकर को पिता और मोदी को भाई मानती रहीं. गलत को कभी गलत नहीं कहा. 

वैसे, प्रमोद रंजन, सुमित चौहान और दिलीप मंडल सरीखे लोग ये बताना भूल जाते हैं कि उन्हीं यतींद्र मिश्र की किताब ये भी बताती है कि लता मंगेशकर समाज सेवा के लिए राजनीति के पथ पर अग्रसर होना चाहती थीं. लेकिन, वो विनायक दामोदर सावरकर ही थे, जिन्होंने लता मंगेशकर को संगीत के जरिये समाज सेवा करने के लिए प्रेरित किया था. प्रसिद्ध लोकशायर सांभा जी भगत का लता जी को लेकर किया गया दावा जितना सच्चा है. उससे कहीं अधिक ये बात सच्ची है कि लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर को ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी इस वजह से खोनी पड़ी कि उन्होंने सावरकर के एक गीत को गाया था. कहना गलत नहीं होगा कि अयोध्या में राम मंदिर को लेकर लता मंगेशकर की जो भावनाएं थीं, वो बहुसंख्यक हिंदू आबादी की भावनाएं थीं. किसान आंदोलन पर पॉप स्टार रिहाना को लताड़ लगाना देश के निजी मामलों में बाह्य हस्तक्षेप को उसकी उचित जगह दिखाना मात्र था. लता मंगेशकर अपने पूरे जीवनकाल में देश के कई कांग्रेसी से लेकर भाजपाई नेताओं तक के साथ दिखी हैं, तो उन पर किसी राजनीतिक विचारधारा को थोपना कहां तक जायज नजर आता है.

दुनिया का सुर सुधारने के लिए कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल संघर्षरत हैं और भाजपा सुर बिगाड़ रहे हैं. ये प्रमोद रंजन की निजी राय हो सकती है. लेकिन, इसका लता मंगेशकर से कोई लेना-देना नजर नहीं आता है. एक संगीत कलाकार या फिल्मी दुनिया के सितारों का आज के समय में राजनीतिक पक्ष चुनना जरूरी होता होगा. लेकिन, लता मंगेशकर जिस समय की कलाकार थीं, तब ऐसा कोई जरूरी नियम नहीं था. जहां लोग कह रहे हों कि जब तक इस दुनिया में संगीत रहेगा, लता मंगेशकर तब तक जीवित रहेंगी. वहां, लता मंगेशकर को विचारहीन कलाकार कहकर उनके इतिहास के कूड़ेदान में जाने की कल्पना केवल कुंठित सोच का ही नतीजा कही जा सकती है. वैसे, भारत की राजनीति में अभी भी कई लोगों के लिए जिनके लिए पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी एक बराबर देशभक्त हैं. दिलीप मंडल की ब्राह्मणों को लेकर कुंठित सोच का शिकार लता मंगेशकर को बनना ही था. आखिर, वो भी तो ब्राह्मण परिवार से ही थीं. खैर, दिलीप मंडल जैसे जातिवादी शख्स जो अपनी पत्नी के निधन पर उसे भी ब्राह्मण कहकर साथ छोड़ जाने वाला घोषित कर दे, तो ऐसे कुंठित दिमाग के व्यक्ति के लिए क्या ही कहा जा सकता है.

खैर, राजनीतिक और तथाकथित बौद्धिक एजेंडा को साधने के लिए आने वाले समय में ये गिद्ध इस तरह की कई महान शख्सियतों पर लांछन लगाने से बाज नहीं आएंगे. क्योंकि, जब तक इनकी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं हो जाती हैं. तब तक शायद ही इन्हें चैन पड़ेगा. हालांकि, इन जैसे कथित विचारकों को आईना दिखाने के लिए खुद संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर ने भी ट्वीट कर अपना गुस्सा जताया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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