'धार्मिक' हैं 10 बजे बाद फूटते पटाखे और बकरीद पर सड़कों पर कटते बकरे!
10 के बाद पटाखे भी जले दिवाली भी मनी और सोशल मीडिया पर इसका बखान किया गया. जब मुद्दा धर्म हो तो कोर्ट की मना करने के बावजूद सड़कों पर बकरे भी कटते हैं और पटाखों के जलने से प्रदूषण भी होता है.
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दिवाली बीत गई है. सुबह से आसमान में धुंध है. वैसे तो शहर में धुंध बीते तीन या चार दिन से थी मगर टीवी में, न्यूज़ चैनल्स पर यही बताया जा रहा है कि इसकी वजह पटाखे हैं. पटाखे जिन्हें जलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस बनाई थीं. पटाखों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन्हें केवल रात 8 से 10 के बीच ही जलाया जाएगा. अच्छा बात चूंकि सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी थी तो कहीं न कहीं प्रशासन भी चुस्त नजर आया. राजधानी दिल्ली में जिन स्थानों पर पटाखों के लिए लम्बी लाइन रहती थी वहां सन्नाटा था. वजह बस इतनी थी कि स्टॉक कम था. स्टॉक की कमी के कारण सेल जल्दी जल्दी हुई और पटाखे शीघ्र खत्म हुए. जो दोस्त यार इस दिवाली पटाखे लाए उन्हें उसके लिए काफी पापड़ बेलने पड़े. कई मित्र ऐसे भी थे जिन्होंने पटाखों के लिए 100-100 किलोमीटर तक गाड़ी चलाई है और दाम कम करने के लिए घंटों मोल भाव किया है.
सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या दिखी जिन्होंने रात 10 बजे के बाद पटाखे जलाए और अपने इस काम को फेसबुक ट्विटर पर साझा किया
दिवाली में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के बाद पटाखे जलाना किसी शगुन जैसा है. लोग परिवार संग फुलझड़ी, अनार, राकेट, सात आवाजा, महताब, चकरी, चटाई जलाते और खुशियां मानते. दिवाली पर पटाखों का क्रेज हमेशा ही बच्चों में ज्यादा रहा है. पूर्व के मुकाबले वर्तमान जटिल है. त्योहार संकट में हैं और क्योंकि उन्हें लेकर कोर्ट कचहरी, थाना, पुलिस सब हो चुका है. कहना गलत नहीं है कि अब क्या होली, दिवाली, ईद, बकरीद त्योहार, त्योहार न होकर आन बान शान का विषय बन गए हैं. लड़ाई चूंकि ईगो की है तो लोग भी यही कहते नजर आ रहे हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट की क्या मजाल हो हमारे त्योहारों में हस्तक्षेप करे.
बीती रात दिवाली थी और क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे जलाने की 'इजाजत' दी थी और समय को 8 से 10 के बीच निर्धारित किया था लोग जमकर नियमों की अनदेखी करते नजर आए. लोगों ने न सिर्फ नियमों को ताख पर रखा बल्कि इसका जमकर बखान भी किया. बात आगे बढ़ाने से पहले आइये नजर डालते हैं कुछ फेसबुक पोस्ट और ट्विटर के ट्वीट्स पर.
Bhai ye mera contribution pic.twitter.com/7Lx426If83
— Arjun Bhatt (@HinduRudra) November 7, 2018
Post Diwali #AQI has reached Pre Diwali AQI in 12 hours. It is incorrect to attribute Delhi's pollution to #Diwali2018 alone. Save the beautiful festival. There are other structural causes of pollution. pic.twitter.com/E979yyA5ZE
— Sauvagya Barik (@Sauvagya) November 8, 2018
ये ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट चंद उदाहरण हैं. सोशल मीडिया पटा पड़ा है ऐसे पोस्ट थे जिसमें साफ साफ सुप्रीम कोर्ट की बात को नजरंदाज किया जा रहा है. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं क्योंकि अब त्योहार, त्योहार न होकर अहम की लड़ाई बन गए हैं इसलिए हम रात 10 के बाद पटाखे जलाने को सुप्रीम कोर्ट की क्रिया पर आई हुई प्रतिक्रिया भी कह सकते हैं.
मुद्दा दिवाली नहीं हैं होली से लेकर ईद और बकरीद तक कानून को नजरंदाज करना एक बेहद सामान्य बात है. पूर्व में हम कई ऐसे दृश्य देख चुके हैं जिनमें लोग ईद के मद्देनजर सड़क जाम करते हुए उसपर नमाज पढ़ते आ रहे हैं. हमने वो दृश्य भी देखे हैं जिनमें नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए बीच सड़क पर बकरीद पर पशुओं की बलि दी जा रही है. हम होली पर सड़कों पर बहता पानी भी देख चुके हैं.
अब इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य ये सब अपने को बड़ा और दूसरे से शक्तिशाली दर्शाने के लिए हो रहा है और ऐसा करने के लिए हमारे द्वारा धर्म की आड़ ली जा रही है. अब क्योंकि नियम कानून के बीच आस्था और धर्म है तो मजाल है हम किसी भी तरह की रोकटोक बर्दाश्त करें. कहना गलत नहीं है कि जब मुद्दा धर्म और आस्था हो तो कोर्ट की मनाही के बावजूद सड़कों पर बकरे भी कटते हैं, खून भी बहता है और पटाखों के जलने से प्रदूषण भी होता है.
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