मोहम्मद जुबैर के 'समर्थक' इन तर्कों को कैसे काटेंगे?
ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) की गिरफ्तारी को उनके समर्थक लोकतंत्र के खिलाफ बता रहे हैं. लेकिन, सोशल मीडिया (Social Media) पर जुबैर की गिरफ्तारी के पक्ष में दिए जा रहे तर्कों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. क्योंकि, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है.
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ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर धार्मिक भावनाएं आहत करने के मामले में गिरफ्तारी ने सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी है. एक पक्ष मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी को लोकतंत्र की हत्या से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताने में लगा हुआ है. तो, दूसरा पक्ष मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी को सही बता रहा है. इनका तर्क है कि हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का मजाक उड़ाना सही कैसे कहा जा सकता है? आसान शब्दों में कहा जाए, तो मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी से एक पक्ष की भावनाएं आहत हैं. तो, दूसरे को राहत है.
इन सबके बीच एनसीपी चीफ शरद पवार के लिए कथित अपमानजनक कविता शेयर करने को लेकर 40 दिनों तक जेल में रहीं मराठी अभिनेत्री केतकी चितले ने एक ट्वीट किया है. जिसमें केतकी चितले ने सवाल उठाते हुए लिखा है कि जब एक नेता पर टिप्पणी पर जेल हो सकती हैं. फिर हमारे देवी देवताओं का मजाक बनाने वाले ज़ुबैर की गिरफ्तारी भी होनी चाहिए. दरअसल, सोशल मीडिया पर तर्क देकर ऐसी ही कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं. जिसमें मोहम्मद जुबैर के समर्थन में अपनाए जा रहे सेलेक्टिव एजेंडा की पोल खोल कर रख दी गई है. आइए उनमें से कुछ की ओर रुख करते हैं...
सोशल मीडिया पर मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी के समर्थन में भी मजबूत तर्क दिए जा रहे हैं.
जुबैर के 'समर्थक' इन तर्कों को कैसे काटेंगे?
जो पत्रकार नहीं, उसे साबित क्यों करना : सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा है कि 'ज्ञान की बात- एक महिला की अपेक्षा किन्नर की कमर में ज्यादा लचक होती है, कंधे से पल्लू भी ज्यादा सरकता है. ऐसा इसलिए कि किन्नर पर खुद को महिला दिखाने का दबाव होता है. जबकि, एक महिला को पता होता है कि वो क्या है.' देखा जाए, तो जिस तरह से मोहम्मद जुबैर को पत्रकार साबित करने की होड़ दिख रही है. ये मामला इस ज्ञान की बात से काफी मिलता-जुलता नजर आता है. क्योंकि, ऐसे किसी भी मुश्किल वक्त में पत्रकार का टैग लगाकर ही इसे मीडिया पर हमला घोषित किया जा सकता है. जबकि, मोहम्मद जुबैर खुद ही कई बार कह चुके हैं कि वो पत्रकार नहीं हैं.
किसी और पत्रकार की गिरफ्तारी पर सब शांत क्यों थे : एक सोशल मीडिया यूजर ने सवाल उठाया है कि सुशांत सिंह राजपूत मामले में महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले पत्रकार अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी, उनके एक रिपोर्टर अनुज को ठाकरे के फार्महाउस के बाहर से गिरफ्तार करने और उनके खिलाफ की गई कई एफआईआरों पर पत्रकारिता का बड़ा संगठन एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया शांत क्यों था? एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया अब मोहम्मद जुबैर के समर्थन में खड़ा है. जो एक पत्रकार भी नही है.
धार्मिक भावनाएं आहत होने पर दोहरा रवैया क्यों : एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा है कि यह हास्यास्पद है कि नूपुर शर्मा के पीछे पड़े, उनकी मौत की कामना करने वाले लोग अब मोहम्मद जुबैर का बचाव कर रहे हैं. हिंदू अपने कानूनी अधिकारों की बात भी नहीं कर सकता है. वहीं, मुस्लिम शरिया कानून के हिसाब से सिर तन से जुदा की मांग करते हैं. ये किस तरह का पाखंड है? जुबैर लगातार वो चीजें नहीं कर सकते हैं, जिसके खिलाफ वह दूसरों की गिरफ्तारी की मांग करते हैं.
साद अंसारी को जमानत क्यों नहीं मिली : इंडिया टुडे के पत्रकार शिव अरूर ने महाराष्ट्र के भिवंडी के साद अंसारी का मामला उठाते हुए लिखा है कि 19 साल का ये छात्र पिछले 16 दिनों से जेल में बंद है. और, इसका अपराध केवल इतना है कि नूपुर शर्मा और धर्म पर एक पोस्ट कर दी थी. बता दें कि मुस्लिम छात्र साद अशफाक अंसारी ने पैगंबर टिप्पणी विवाद में सोशल मीडिया पर हिंसक प्रदर्शनों और कट्टरपंथियों की आलोचना की थी. जिसके बाद मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उसे पीटा, गालियां दीं. और, इतने से भी मन नहीं भरा, तो उसे धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया गया.
नूपुर शर्मा और मोहम्मद जुबैर की बात में अंतर है : सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा है कि आप नूपुर शर्मा और मोहम्मद जुबैर के बीच समानता नहीं स्थापित कर सकते हैं. नूपुर शर्मा ने विवादित टिप्पणी उस वक्त चल रही तीखी बहस के समय में और किसी के द्वारा हिंदू रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाने के जवाब में की थी. वहीं, हिंदू देवी-देवताओं को निशाना बनाने वाले मोहम्मद जुबैर के ट्वीट अकारण (बिना किसी भड़कावे के) लगते हैं और सांप्रदायिक बवाल पैदा करने का इरादा दर्शाते हैं.
कट्टरता को हथियार बनाने की फिराक में हैं : एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा है कि हम जो वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ एक साफ-सुथरी दुनिया चाहते हैं. ईशनिंदा विरोधी कानूनों और आंदोलनों से उपजी कट्टरता और पागलपन को लगातार उजागर कर रहे हैं. लेकिन, मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर इसके खिलाफ माहौल बना रहे लोग इस कट्टरता और पागलपन की कभी निंदा नहीं करते हैं. वे बस यही चाहते हैं कि यह कट्टरता उनका हथियार बन जाए.
नूपुर शर्मा की बातों का फैक्ट चेक क्यों नहीं किया : एक यूजर ने लिखा है कि मेरे ऑल्ट न्यूज से कुछ सवाल हैं. पहला कि ऑल्ट न्यूज ने नूपुर शर्मा के दावे का फैक्ट चेक क्यों नहीं किया? दूसरा कि मोहम्मद जुबैर ने अपना फेसबुक अकाउंट डिलीट क्यों किया? तीसरा कि ऑल्ट न्यूज पर लोगों को फैक्ट चेक करने का अधिकार क्यों नहीं मिलता है? ऑल्ट न्यूज फैक्ट चेक किस बात पर करना है, इस पर अपना 100 फीसदी अधिकार क्यों बनाए हुए है?
सम्मान पाने के लिए सम्मान देना जरूरी : एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा है कि बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी जरूरी है. अगर आप हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करते हैं. तो, आप किस आधार पर लोगों से अपने धर्म के लिए सम्मान की ख्वाहिश पाल सकते हैं? हिंदुओं ने सड़कों पर दंगे और मोहम्मद जुबैर के सिर की मांग नहीं की है. कानून अपना काम कर रहा है. और, आपसे बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान का सम्मान करने की अपेक्षा की जा सकती है.
फिल्म वाला लॉजिक नूपुर के मामले में भी लगाओ : एक यूजर ने लिखा है कि मोहम्मद जुबैर के समर्थन में सेकुलर और लिबरल दावा कर रहे हैं कि उसने एक फिल्म का एडिटेड स्क्रीनशॉट साझा किया है. तो, फिल्म के निर्मात-निर्देशक को भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए. लेकिन, ये लोग अपना ही दिया लॉजिक नूपुर शर्मा के मामले में नहीं लगा रहे हैं कि उन्होंने जो कहा, वो कहां से उद्धृत है.
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