बधाई हो! नं. 1 सानिया ने फतवा तक को मात दी है
सानिया मिर्जा ने मैदान के भीतर और बाहर दोनों जगह कई जंग लड़ी है. जब भी वह कोर्ट में कदम रखती हैं, उनसे लाखों लोगों की उम्मीदें लगी रहती हैं.
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सानिया मिर्जा ने मैदान के भीतर और बाहर दोनों जगह कई जंग लड़ी है. जब भी वह कोर्ट में कदम रखती हैं, उनसे लाखों लोगों की उम्मीदें लगी रहती हैं. उसके बाद और भी लोग हैं. खेलते वक्त शॉर्ट स्कर्ट पहनने पर उनके खिलाफ मुस्लिम उलेमाओं के फतवे की बात हो या फिर पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी के फैसले को लेकर आलोचनाओं की.
हां, उनके लिए विवाद नए नहीं हैं.
हर बार कोई न कोई उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगा रहा. मगर इस भारतीय खिलाड़ी ने अपने शानदार प्रदर्शन से सबका मुंह बंद करा दिया. शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब उन्हें अपनी बात रखने में किसी की परवाह की हो. हमने उनका ये रुख 2012 के लंदन ऑलंपिक के वक्त देखा जब एआईटीए ने एक बड़े भारतीय खिलाड़ी के अहं को संतुष्ट करने के लिए चारा फेंका था.
भारतीय टेनिस में हमेशा पुरुषों का वर्चस्व रहा है. रमेश कृष्णन, अमृतराज बंधु, लिएंडर पेस और महेश भूपति देश के सबसे सफल टेनिस स्टार रहे हैं. हैदराबाद जैसे शहर से निकलकर, सानिया मिर्जा इस बदलाव की अग्रदूत बन गईं, जहां उनके घर वाले उनके सपने को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन की कमी से जूझते रहे.
सानिया हमेशा अपने उस सपने को पूरा करने की कोशिश में लगी रही जो उन्होंने बचपन से देखा था. यह महज संयोग नहीं है कि भारत की दो सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी हैदराबाद से आती हैं. हाल ही में दोनों ने अपने-अपने खेल में भारत को बुलंदियों पर पहुंचाया है. बैडमिंटन विश्व रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचकर स्टार खिलाड़ी सायना नेहवाल ने यह साबित कर दिया कि भारतीय महिलाओं को गंभीरता से लेना ही होगा. इस साल की शुरुआत में सानिया ने स्विस स्टार मार्टिना हिंगिस के साथ हाथ मिलाया और दोनों ने उम्दा प्रदर्शन किये.
खेल में समय के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है. कोई ऐसे ही हमेशा आगे नहीं बढ़ सकता. कुछ बनने के लिए काफी रियाज की जरूरत होती है. यही वजह है कि कई क्रिकेटर छोटे फॉर्मैट छोड़कर दूसरे फॉर्मैट पर ध्यान दे रहे हैं.
सानिया ने महिला एकल में 27वां स्थान पा लिया था लेकिन चोटों की तकलीफ ने उन्हें और आगे नहीं जाने दिया. हालांकि वो ऐसे लोगों में नहीं थीं कि अपने सपने को कॅरियर के शुरुआती दौर में छोड़ दें और हथियार डाल दें.उन्होंने एकल से युगल की तरफ रूख किया और नतीजा सबके सामने है.
डबल्स में वह विश्व की नंबर 1 खिलाड़ी हैं. यह मुकाम आज तक किसी अन्य भारतीय ने टेनिस में हासिल नहीं किया. असल में, वो जापान की ऐ सुगियामा, चीन की पेंग शुआई और ताइपे की सु-वेई के बाद यह प्रतिष्ठित स्थान पाने वाली चौथी एशियाई हैं.
दुनिया के हर कोने से वाहवाही मिल रही है, काबिले गौर है कि सानिया को ये तारीफ भरे सम्मान सिर्फ फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से नहीं मिलेगी. वो देश के हर नागरिक से ढेरों सम्मान पाने की हकदार हैं.
इस खेल के शिखर तक पहुंचने के लिए उन्होंने 22 साल लगाए और अब भी वह ईमानदारी और उत्साह के साथ खेलने के लिए हर दिन जूझ रही हैं. मंगलवार को वह अमेरिका से हैदराबाद पहुंची. जब उन्होंने मुझसे बात की. खेल और देश के लिए उनकी प्रतिबद्धता साफ झलक रही थी.
"मैं 30 घंटे की लंबी उड़ान के दौरान सो नहीं पाई हूं, लेकिन मैं सिर्फ फेड कप और आगे खेलने के बारे में सोच रही हूं. टीम के कप्तान के रूप में यह मेरी पहली भूमिका है, और मैं बहुत उत्साहित हूं. मुझे नहीं लगता कि इससे बेहतर सेलीब्रेशन कुछ और हो सकता है. मैं विश्व में नंबर 1 हो गई हूं और नौ साल के बाद हैदराबाद में खेलूंगी."बधाई हो, सानिया!
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