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Updated: 25 फरवरी, 2022 10:40 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia ukraine war) शुरु हो चुका है. दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. यूक्रेन के लोगों की जान हलक में है. सैनिकों के घरवालों अलग चिंता में हैं वहीं भारत के कई मेडिकल छात्र भी वहां फंसे हुए हैं. वे अलग-अलग वीडियो शूट करके मदद की गुहार लगा रहे हैं. वे बता रहे हैं कि वहां की हालात कितनी खराब है? दुकानों पर राशन खत्म हो रही है. जो सामान मिल रहा है वो भी पूरा नहीं है. छात्र फ्लैट से बाहर निकलने की हालत में नहीं हैं. कई ने फ्लाइट की टिकट बुक की थी जो अब रद्द हो चुकी है.

भारत में रहने वाले उनके माता-पिता की सांस अटकी हुई है. वे लगातार अपने बच्चों से संपर्क में हैं. कई छात्र कैसे भी करके वहां से जल्द से जल्द निकलना चाहते हैं क्योंकि रूस ने यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी है और राजधानी कीव में रूसी सेना घुस चुकी है. वहां कभी भी कुछ भी हो सकता है.

वहां जलते घर, दम तोड़ते लोग, चारों तरफ धुआं ही दिख रहा है. यूक्रेन में जमीन से लेकर आसमान तक ऐसा लग रहा है कि मौत बरस रही है. राष्ट्रपति वोलोदिमर जेलेंस्की ने तनाव के बीच दुनियाभर के देशों के रवैये को लेकर निराशा जाहिर की है. वे लगातार दूसरे देशों से संपर्क करेक वहां के हालात के बारे में जानकारी दे रहे हैं. उनका कहना है कि रूस से लड़ने के लिए हमे अकेला छोड़ दिया गया है. उनके समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वे क्या करें?

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वहीं भारत के उत्तर प्रदेश के हरदोई की बेटी यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है. जहां सभी छात्र भारत लौटना चाहते हैं वहीं इस बेटी ने कहा है कि वह बिना डिग्री लिए नहीं लौटेगी. दरअसल, डॉ. डीपी सिंह की बेटी अपेक्षा सिंह यूक्रेन के खरकी शहर में नेशनल खरकी यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की छात्रा है.

उन्होंने अगस्त 2016 में बेटी का एडमिशन यूक्रेन में कराया था. अब उन्होंने अपने परिवार को भगवान के भरोसे छोड़ दिया है. उनका कहना है कि भगवान जैसा भी करेगें उचित ही करेंगे. उनके अनुसार, जब बेटी से बात हुई तब वह मार्केट में थी. यूक्रेन में इमरजेंसी लगी है. यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं. बेटी ठीक है, उसका सिर्फ 5 महीने का ही कोर्स बाकी है.

मेरी बेटी ने यह कहा है या तो डिग्री लेकर आएंगे या मर कर, क्योंकि अभी वापस आने का मतलब है डिग्री छोड़ देना है. इंडियन एम्बेसी ने उसके दस्तावेज जमा करा लिए हैं.

पुरसौली की वर्तमान में प्रधान भी वहीं फंसी हुई है

वहीं अपेक्षा के अलावा हरदोई के सांडी ब्लॉक के रहने वाले महेंद्र यादव जो पूर्व ब्लॉक प्रमुख रहे हैं, उनकी बेटी वैशाली भी वहां फंसी हुई है. वैशाली तेरा पुरसौली की वर्तमान में प्रधान है और यूक्रेन से एमबीबीएस कर रही हैं.

अब इस पर कई लोगों का कहना है कि जान है तो जहान है. डिग्री आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी लेकिन एक बार जिंदगी खत्म हो गई तो वह डिग्री किस काम आएगी. जब तक वहां का माहौल शांत नहीं हो जाता सतर्क रहने में ही भलाई है. कभी-कभी जिद छोड़ देनी चाहिए. अपेक्षा सिंह की मेहनत का सभी को अंदाजा है.

उसका कहना भी सही है लेकिन हम इस अंधेरे को सुबह कैसे कह दें. वैसे आपकी राय में अपेक्षा सिंह का फैसला सही है या गलत...कोई भी आम इंसान ऐसे माहौल में परिवार के पास ही आना चाहेगा लेकिन इस बेटी के जुनून को भी नजरअंजाद नहीं किया जा सकता, क्यों?

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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