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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 05 जुलाई, 2017 11:36 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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भारत में अगर किसी महिला के साथ बलात्कार होता है तो फिर हाल देखिए...सजा अपराधी को नहीं बल्कि खुद महिला को भुगतनी पड़ती है. रिपोर्ट दर्ज करवाने की जद्दोजहद से लेकर कोर्ट के चक्कर लगाना और फिर वकीलों के घिनौने सवालों के जवाब देते-देते दोबारा बलात्कार के दर्द को महसूस करना तो जैसे हर पीड़िता की कहानी है, उसपर भी न्याय नहीं मिलता. लेकिन हमारे ही देश में प्रताड़ना की एक कहानी ऐसी भी है जिसपर बिना देर किए, तुरंत फैसला हो जाता है. न थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने का झंझट और न ही कोई कोर्ट-कचहरी. ये मामले हैं गाय को नुकसान पहुंचाने के, जिसपर लोग इतने संजीदा हैं कि न्याय के लिए कानून का रास्ता भी नहीं देखते. फैसला ऑन द स्पॉट !!

तो अगर ये मान लिया जाए कि देश में महिलाओं से ज्यादा सुरक्षित यहां की गाय हैं और गाय की कीमत मां बहन, बेटी से भी ज्यादा है, तो इसमें गलत ही क्या है. कुछ इसी मर्म को दिखा रहा है एक फोटोग्राफी प्रोजेक्ट, जिसने हमारे समाज पर एक सवाल के जरिए जोरदार चोट करने की कोशिश की है कि देश में कौन ज्यादा सुरक्षित है- महिलाएं या फिर गाय.

 

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कोलकाता की आर्टिस्ट सुजात्रो घोष महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं कि वो गाय का मास्क पहनकर महिलाओं पर देश की दोगली मानसिकता का विरोध करें.

इनका कहना है कि- 'मैं इस बात से बहुत परेशान हूं कि मेरे देश में, गायों को एक महिला से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है, एक गाय जिसे हिंदू पवित्र मानते हैं, उसके मुकाबले बलात्कार पीड़ित या फिर यौन शोषण से पीड़ित महिला को न्याय मिलने में ज्यादा समय लगता है.'

 

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देश के कई राज्यों में गौ हत्या पर बैन है. गुजरात में तो गौ हत्या पर आजीवन कारावास की सजा है. पिछले दो सालों में करीब दर्जन भर लोग सिर्फ इसलिए मार दिए गए क्योंकि उन्होंने गाय को नुक्सान पहुंचाया था. लेकिन ऐसा गुस्सा, या रोष कभी भी महिलाओं पर हुए अत्याचार पर दिखाई नहीं देता.

 

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सुजात्रो घोष ये तस्वीरें इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रही हैं और जिन महिलाओं ने गाय के मास्क पहनकर पोज़ किया है उनकी बातें भी अंदर तक हिलाकर रख देती हैं.

 

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एक निकोल नाम की एक महिला लिखती हैं- 'अगर मैं गाय के मास्क लगाकर सड़कों पर चलुंगी, तो शायद तो सड़क पर छेड़छाड़ की संभावनाएं कम हो जाएंगी. कोई भी उसे परेशान नहीं करना चाहता जो देवी जैसी दिखाई दे या फिर देवी मानी जाती हो'

 

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सुष्मिता लिखती हैं- 'जस देश में महिलाओं पर बलात्कार, शोषण और प्रताड़ना जैसे अपराध होते हों, वहां धर्म और गौरक्षा जैसे मामलों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है. गाय और धर्म की रक्षा करने का क्या फायदा जब देश की आधी आबादी जर के साए में जीती है?'

 

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सुजात्रो घोष ये भी कहती हैं कि 'इतने सालों में मैंने एक बात महसूस की, कि इन बेवकूफों से निपटने के लिए मजाक का सहारा ही लेना होगा.' तो भले ही ये मजाक हो, लेकिन समाज के सामने खुद उसका दोगला चेहरा रखने के लिए काफी है कि अगर इंसानों और जानवरों के बीच एक को चुनना पड़े तो ये समाज महिलाओं को नहीं, जानवर को चुनेगा. दुखद है, लेकिन हकीकत यही है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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