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Updated: 07 मई, 2016 05:27 PM
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लंदन के मेयर पद के लिए हुए चुनाव में सादिक खान की जीत की घोषणा से पहले ही वहां की कंजर्वेटिव पार्टी के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया था. कई लोगों का मानना था कि कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार जैक गोल्डस्मिथ ने जिस प्रकार का चुनाव प्रचार किया और ध्रुवीकरण की कोशिश की. उससे पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ.

अब चुनावी नतीजे आ गए हैं. लंदन को सादिक के तौर पर पहला मुस्लिम मेयर मिला है. वे लेबर पार्टी से ताल्लुक रखते हैं. ये वाकई बड़ी बात है. खासकर, ऐसे माहौल में जब यूरोप पिछले पांच-छह दशकों में संभवत: सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है. सीरिया और इराक के गृह युद्ध से पैदा हुए हालात से लेकर ISIS का खतरा और प्रवासियों की भीड़. कुछ महीनों पहले तो माहौल ऐसा बन गया था कि जैसे यूरोप भी किसी गृह युद्ध की चपेट में आ सकता है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सादिक की जीत एक नया दृश्य पेश कर रही है.

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 जीत के बाद

वाकई, सादिक की जीत एक नई उम्मीद जगाती है. सादिक के पूर्वजों का नाता भारत से रहा है जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे.

बहरहाल, चुनाव के नतीजों के साथ ही सादिक ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे. कई लोगों को इस बात से आपत्ति थी कि सादिक को लंदन का पहला 'मुस्लिम मेयर' क्यों कहा जा रहा है. खासकर मीडिया रिपोर्ट्स में. लोग सवाल उठा रहे हैं कि किसी ईसाई या दूसरे धर्म के व्यक्ति को तो कभी ऐसे संबोधित नहीं किया गया. कई और प्रतिक्रियाएं भी आईं हैं. कोई सादिक की जीत के साथ खड़ा दिखा तो कई लोगों ने आलोचना की और उनके मुस्लिम होने पर टिप्पणी भी. अच्छी और बुरी, दोनों तरह की टिप्पणी आई लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि बहस का मुद्द 'मुस्लिम' ही रहा.

'मुस्लिम मेयर' कहे जाने पर लोगों ने क्या कहा...

कुछ लोगों ने ये भी पूछा कि क्या सऊदी अरब और दुनिया के दूसरे मुस्लिम देशों में ऐसे ही ईसाई प्रशासक भी कभी देखने को मिलेंगे.

एक मुस्लिम का यूरोप के किसी बड़े शहर का मेयर बन जाना कई लोगों को नागवार भी गुजरा..

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