लो जी हो गई नोटबंदी !
यूपी के वरिष्ठ IPS अफसर नवनीत सिकेरा जब एक बड़े मॉल में गए, तब नोटबंदी का अहसास हुआ. वहां जो भी हुआ, उसे देखकर उन्होंने भी यही कहा कि 'मेरा भारत महान'.
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अभी काफी दिनों बाद नॉएडा के DLF मॉल में गया, काफी भीड़भाड़ गहमागहमी थी और आधुनिकता इतनी जैसे किसी अमेरिकन मॉल में आ गए हों. कहीं दूर-दूर से भी नहीं लग रहा था कि भारत में कोई गरीबी नाम की चीज़ है. जमकर खरीददारी हो रही थी, फ़ूड कोर्ट भी भरा हुआ था. मैंने भी सोचा कुछ खरीद लूं, एक हुडी पसंद आयी, लेकर पहुंच गया काउंटर पर, तब याद आया बेटा नोट बंदी हो चुकी है, पर्स में कुछ है कि नहीं?
ये देखकर क्या कहा जा सकता है किभारत में कोई गरीबी नाम की चीज़ है? |
लोगों की निगाह बचाकर पर्स चेक किया, कुल 710 रुपये थे और पे करने थे 1900, अब टेंशन इस बात का, कि मेरा डेबिट कार्ड (SBI) का वह भी अभी हाल ही में बदल कर आया था (आपको याद होगा SBI ने करीब 6 लाख डेबिट कार्ड बदले थे) अब एक नई समस्या कि कार्ड का पिन याद नहीं था (याद कहां से होगा लाइन में लगकर पैसे निकाले होते तो याद रहता हा हा). इसी उधेड़ बुन में लगा था पिन याद करने की कोशिश कर रहा था. दो अलग-अलग पिन याद आए, अब टेंशन ये कि अगर गलत निकले तो.
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भाई साहब इज़्ज़त दांव पर लगी हुई थी. तभी मेरे पीछे से एक मैडम आयी और सीधे काउंटर पर पहुंची बड़ी सी ट्रॉली लिए. काउंटर वाले ने उनका बिल बनाना शुरू किया. थोड़ी ही देर में बिल पहुंच गया 59,560 रुपये. मैं सोच रहा था देखें मैडम कैसे भुगतान करेंगी. ब्रांडेड पर्स से लहलहाते हुए गुलाबी तीस नोट झम्म से थमा दिए, हो गयी शॉपिंग.
अब मैं ये सोच रहा था कि एक दिन पहले जब मैंने बैंक से 24000 रूपये मंगवाये तो बैंक मैनेजर ने सिर्फ दस हजार दिए, बोले इतना ही मिलेगा. इस मैडम को कहां से मिल गए इतने सारे नोट, ये मैडम लाइन में तो नहीं लगी होगी, दूसरा चौबीस हज़ार से ज्यादा एक सप्ताह में निकाल नहीं सकती. फिर इतने सारे कहां से आ गये इसके पास. खैर वह तड़ी से आयी, तड़ी से गयी, हो गयी नोटबंदी.
यहां बजरंगबली से प्रार्थना जारी थी कि पिन याद आ जाए और एक्सेप्ट हो जाये. जय हो बजरंगबली इज़्ज़त बचा ली मेरी.
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फिर रात को IIT गया देखा रात में 1 बजे भी पास वाले एटीएम के सामने लाइन लगी है और लाइन छोटी मोटी नहीं बहुत लंबी, लड़कियों की अलग, लड़कों की अलग, 4 लड़के के बाद एक लड़की की व्यवस्था बना रखी थी (लड़कियां कम थीं). उलझन भरे दिमाग को सिर्फ एक बात बहुत अच्छी लगी सब के सब अनुशासन में खड़े थे. ठण्ड थी ठिठुर रहे थे, लेकिन आस थी नम्बर आने की, लगे हुए थे लाइन में, इतना अनुशासन कभी नहीं देखा. मैं तो IIT यादें ताजा करने गया था, गरम-गरम चाय पी, वो मैडम याद आ गयी और इधर लाइन में खड़े देश के भविष्य को देखा, फिर सोचा शायद इसीलिए लोग कहते हैं 'मेरा भारत महान'.
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