किसी को छूने भर से करंट लगना, नाक से खून आना; इस मौसम में ये क्यों हो रहा है?
आजकल कुछ छूने पर अचानक करंट लगने, नाक से खून आने और होठों के फटने की शिकायतें मिल रही हैं. आखिर इसके पीछे की वजह क्या है और इस बारे में साइंस क्या कहता है.
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सोशल मीडिया पर कई लोग बता रहे हैं कि लोहे की किसी सतह को छूने, कपड़े उतारने या ब्लैंकेट खींचने आदि के दौरान उन्हें करंट लग रहा है. कभी हल्का और कई बार बहुत तेज नभी. नाक से खून आने, त्वचा सूख जाने, होठ के फटने और उससे ब्लड आने की शिकायतें भी हैं. आजकल अचानक बहुत से लोगों के साथ ऐसा हो रहा है. आखिर ये अचानक से क्या हो रहा है, क्या वाकई ये अचानक है या इसके पीछे कुछ और है. जैसे कि कुछ लोग 5 जी रेडिएशन को इसकी वजह बता रहे हैं.
ये पूरा मामला साइंस से जुड़ा है और अचानक बिल्कुल नहीं हो रहा है. पहले भी लोग ऐसे अनुभव से गुजरते रहे हैं जो आगे भी जारी रहेगा. दरअसल, इसके केंद्र में परमाणु (एटम) पार्टिकल्स की भूमिका है. एटम में प्रोटोन-न्यूट्रॉन और इलेट्रॉन होते हैं. इनका संतुलन बिगड़ने (स्टेटिक इलेक्ट्रीसिटी) पर ही उन चीजों का सामना करना पड़ता है जो ऊपर बताई गई हैं. एक ये पार्टिकल्स मानव शरीर के साथ संसार की हर चीज में हैं और ये शरीर के अंदर हर क्षण होने वाली सतत प्रक्रिया है. लेकिन मौसम की वजह से ज्यादातर इसका संतुलन बना रहता है.
नाक से खून क्यों आ रहा है?
असंतुलन की वजह से करंट लगने की वजहों पर आगे बताया गया है मगर उससे पहले नाक से खून आने त्वचा के सूख जाने और होठ के फट जाने की वजह जान लीजिए. किसी मौसम में हवा के अंदर की ह्यूमिडिटी कम होने की प्रक्रिया में किसी व्यक्ति के त्वचा के अंदर की कोशिकाएं फट सकती हैं. कोशिकाओं के फटने के साथ ही नाक से खून आने जैसी शिकायतें देखने को मिलती हैं. मौजूदा मौसम में आम शिकायत है.
इस मौसम में ही क्यों लगता है करंट?
स्टेटिक इलेक्ट्रीसिटी में दो ऑब्जेक्ट के घर्षण से इलेट्रॉन्स बनते हैं. एक ऑब्जेक्ट से निकलने वाला इलेट्रॉन्स ज्यादा पॉजिटिव होता है और दूसरे ऑब्जेक्ट से निकलने वाला इलेट्रॉन ज्यादा निगेटिव चार्ज होता है और यही इलेट्रॉन कंडक्टर के संपर्क में आते ही झटका देता है. अगर हम शरीर के एटम के भीतर देखें तो प्रोटोन-न्यूट्रॉन का अपना न्यूक्लियस है. न्यूक्लियस के आसपास इलेक्ट्रान भी अपने केंद्र में एक्टिव है. जब हवा से पर्याप्त नमी नहीं मिलती है तो यह त्वचा की सतह पर जमा होने लगता है. मौजूदा मौसम में घर में स्लीपर पहने हुए, सोफे या कुर्सी पर बैठे या बेड पर लेटे रहने के दौरान शरीर के नेगेटिवली चार्ज इलेक्ट्रान त्वचा की सतह पर आकर इकट्ठा होते रहते हैं. फिर जैसे ही ये किसी कंडक्टर के संपर्क में (नल की टोटी पकड़ने, खिड़की छूने, ग्लास पकड़ने आदि) आते हैं बिजली का झटका लगने जैसा महसूस होता है.
बरसात सर्दियों में क्यों नहीं होती दिक्कत?
स्टैटिक चार्ज शरीर में (या कहीं भी) हमेशा नहीं बना रहता है. वक्त के साथ ख़त्म होता जाता है. शरीर के चार्ज का संतुलन आसपास की हवा की वजह से तय होता है. इसके लिए हवा एक कंडक्टर की तरह है. जब हवा में नमी की मात्रा ज्यादा होती है (जैसे बरसात और सर्दियों में) शरीर का चार्ज तेजी से ख़त्म होता रहता है. यानी त्वचा की सतह पर नेगेटिवली चार्ज इलेक्ट्रॉन नहीं बनते हैं. लेकिन जैसे-जैसे मौसम में (फिलहाल का मौसम) नमी की मात्रा कम होती जाती है त्वचा की सतह पर नेगेटिवली चार्ज इलेक्ट्रॉन बना रहता है. और फिर वही सबकुछ होता है जिसकी चर्चा हो रही है. जहां हवा में नमी का स्तर जितना ज्यादा होगा, वहां मामले भी उतने ही ज्यादा दिखेंगे. 5 जी रेडिएशन जैसा कुछ नहीं बस पूरा खेल बॉडी एटम की स्टेबिलिटी का है.
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