वो धमाके जिन्होंने हिंदुस्तान-पाकिस्तान दोनों को रुला दिया था!
समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट को 12 साल हो गए हैं और इन 12 सालों में सरकारों के अलावा और कुछ नहीं बदला. अभी भी मरे हुए लोगों को इंसाफ का इंतजार है और मुख्य आरोपी जमानत पर घूम रहा है.
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18-19 फरवरी की दर्मियानी रात वो हादसा हुआ था जिसने हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों देशों के लोगों को हिला कर रख दिया था. ये हादसा था समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट. ये हादसा 2007 में हुआ था और इसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी. सैंकड़ो अन्य लोग घायल हो गए थे.
कैसे अंजाम दिया गया इतना विभत्स हादसा..
12 साल पहले हुए समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में कई सूटकेस में बम दो पैसिंजर बोगियों के बीच रख दिए गए थे. इनमें से एक सूटकेस में टाइमर था जिसे प्लास्टिक केस में रखा गया था. इसके आस-पास कई केमिकल की बोतलें थी और साथ ही तेल भी था. इससे धमाके की तीव्रता काफी बढ़ गई थी. ये भारत के पानीपत के पास हुआ था. इसका समय भी काफी सोच समझकर चुना गया था. जिस दिन धमाका हुआ उसके एक दिन बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी को दिल्ली आना था. ये धमाके दोनों देशों की दोस्ती में खटास डालने के मंसूबे से किए गए थे.
2001 में संसद हमले के बाद समझौता एक्सप्रेस को बंद कर दिया गया था और इसके बाद ये ट्रेन 2004 में फिर से शुरू की गई थी. 2007 फरवरी 18-19 को रात में करीब 11:55 पर धमाका हुआ था. ये धमाका ट्रेन की जनरल बोगियों में हुआ था. मारे गए 68 लोगों में 16 बच्चे भी थे. अधिकतर पाकिस्तानी यात्रियों की मौत हुई थी.
इस मामले से जुड़ी पहली गिरफ्तारी मार्च में की गई थी और वो भी इंदौर से. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बताया जा रहा था कि पुलिस संधिग्दों तक सूटकेस के कवर के सहारे पहुंची थी. सूटकेस में जो कवर इस्तेमाल किए गए थे वो इंदौर से खरीदे गए थे. इसके बाद इसी तर्ज पर हैदराबाद के मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और मालेगांव में भी धमाके हुए थे. बताया गया कि उन सभी ब्लास्ट के तार आपस में जुड़े हुए हैं.
हिंदू संगठन भी शामिल!
हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र के एटीएस को समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में एक हिंदू संगठन अभिनव भारत के शामिल होने की शंका थी. इस मालमे में पाकिस्तानी संगठन लशकर-ए-तैयबा के शामिल होने की बात भी कही गई थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक आरिफ कस्मानी इस ब्लास्ट में शामिल था.
सिमी लीडर सफदर नगोरी, कमरुद्दीन नागोरी, अमिल परवेज़ पर भी नार्को टेस्ट किया गया. बाद में स्वामी असीमानंद ने ये कहा कि उनके लोग ब्लास्ट में शामिल थे. यहां से पूरी रिपोर्ट ही पलट गई. स्वामी असीमानंद जो पूर्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य था. उस पर अजमेर शरीफ दरगाह, मक्का ब्लास्ट, मालेगांव ब्लास्ट और समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट का इल्जाम लगा और अभी भी इस मामले में केस चल रहा है.
असीमानंद ने 18 दिसंबर 2010 में तीस हजारी कोर्ट में बयान दिया था कि वो और उनके आदमी चाहते थे कि सभी इस्लामिक आतंकियों को ये समझ आ जाए कि बम का जवाब बम से दिया जा सकता है. 15 जनवरी 2011 को असीमानंद अपने बयान से पलट गया और उसने कहा कि बयान देने के लिए उसपर ज़ोर डाला गया था.
एनआईए ने 26 जून 2011 को पांच लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की. पहली चार्जशीट में नाबा कुमार उर्फ़ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम था.
जांच एजेंसी का कहना है कि ये सभी अक्षरधाम (गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू), संकट मोचन (वाराणसी) मंदिरों में हुए इस्लामी आतंकवादी हमलों से दुखी थे और 'बम का बदला बम से' लेना चाहते थे.
जमानत पर बरी..
स्वामी असीमानंद को उनके एक और साथी के साथ 2017 मार्च में बेल मिल गई थी. अब तक 10 गवाह अपने बयान से पलट चुके हैं और ये केस फास्ट ट्रैक कोर्ट के बाद भी 11 सालों से लगातार चल रहा है और इस केस की तारीख एक के बाद एक बढ़ रही है.
हिंदुस्तान और पाकिस्तान में ब्लास्ट का सिलसिला तो 1947 से ही जारी है और लगातार आतंकी संगठन दोनों देशों के बीच दोस्ती को खत्म करने की कोशिश करते रहते हैं. पर इस पूरी प्रक्रिया में मरता आम आदमी ही है.
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