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Updated: 17 अप्रिल, 2015 07:43 AM
आदित्य मेनन
आदित्य मेनन
  @aditya.menon.75
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मान लीजिए कि हिंदू पक्ष जीता है. उन्होंने वो करना शुरू कर दिया, जो वे हमेशा से करना चाहते थे. भारत के अल्पसंख्यकों को उनकी जगह दिखा दी.

अब हिंदू पक्षधरों को आगे आना चाहिए और एक हिंदू राष्ट्र की घोषणा कर भारतीय धर्मनिरपेक्षता नाम के तमाशे का खात्मा करना चाहिए. एक शब्द के रूप में यह "धर्मनिरपेक्षता" अपमानजनक और बेमानी हो गई है. यहां तक कि मजाकिया शब्द "sickular" इन दिनों उपयोग नहीं किया जा रहा, जितना "धर्मनिरपेक्ष" शब्द गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

बिल्कुल सच कहें तो भारतीय धर्मनिरपेक्षता उसी दिन मर गई थी जिस दिन नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे. यही वे इंसान हैं जिनकी सत्ता के दौरान 2000 से ज्यादा मुसलमान मारे गए थे. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को जानबूझकर या मिलीभगत से या अक्षमता के चलते 2002 के दंगों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. बावजूद इसके भाजपा में उनका उदय इन्हीं दंगों की वजह से हुआ था. भाजपा के कट्टर समर्थकों ने उन्हें एक विकास प्रतीक के रूप में ही नहीं बल्कि "मुसलमानों को उनकी जगह दिखाने वाले" के तौर भी देखा. प्रधानमंत्री के रूप में उनकी तोजपोशी ने यह दिखा दिया कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के समर्थन और धर्मनिरपेक्षता का पालन किए बिना भी सत्ता हासिल की जा सकती है.

कांग्रेस ने इस देश पर एक धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाया था. शायद एक बार वो सभी के लिए हट गया है. कम से कम यह हिंदु ब्रिगेड की खूनी वासना को शांत कर सकेगा. और हम लोगों को रोजाना की बयानबाजी और हमलों से राहत मिलेगी, जो मोदी के सत्ता में आने के बाद से लगातार जारी हैं.

इसी श्रृंखला में नई कड़ी है शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपा संजय राउत का लिखा हुआ संपादकीय. राउत लिखते हैं कि "वोट बैंक की राजनीति" को खत्म करने के लिए "मुसलमानों के मताधिकार को रद्द करने की जरूरत है." मुसलमानों का मताधिकार को लेकर शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने भी एक समय मांग की थी और फिर से वही हो रहा है. ठाकरे भी मानते थे कि भारत अकेले हिंदू समुदाय का देश है. और ये बात अल्पसंख्यकों को बताने की जरूरत है. अगर संजय राउत एक मुस्लिम होते तो उन्हें नफरत भरा बयान देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता. ठाकरे अगर मुस्लिम या सिख होते तो उन पर आतंकवादी होने का तमगा लगा दिया जाता. मगर इसके बजाय जब ठाकरे की मौत हुई तब तथाकथित 'उदार' और 'धर्मनिरपेक्ष' पत्रकारों ने उन्हें समर्पित सराहना भरे विस्तृत लेख लिखे थे. जबकि वह जहरीले बयान देने वाले एक नेता के अलावा कुछ भी नहीं थे.

हिंदू राष्ट्र को लेकर अगर राउत एक नजरिया रखते हैं, तो अखिल भारतीय हिंदू महासभा की अध्यक्ष साध्वी देवा ठाकुर का नजरिया बिल्कुल अलग है. वो चाहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत में आपातकालीन स्थिति की घोषणा करें. मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए उन्हें नसबंदी के लिए मजबूर करें. इसी संबंध में भाजपा सांसद साक्षी महाराज का एक उदारवादी विचार बयान की शक्ल में आता है. वह अधिक रचनात्मक दृष्टिकोण की वकालत करते हुए हिन्दू महिलाओं से कम से कम 4-5 बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं!

एक और हिंदुत्ववादी और भाजपा के पोस्टरों पर अक्सर चमकने वाले नेता योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मृत मुस्लिम महिलाओं को कब्र से निकालकर उनके साथ बलात्कार किया जाना चाहिए. लव जिहाद के खिलाफ प्रस्तावक बने आदित्यनाथ ने यह बयान बहुत सारे लोगों की मौजूदगी में दिया था.

यहां तक कि आधुनिक और जिम्मेदार सुषमा स्वराज भी गीता को भारत की राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने में विश्वास रखती हैं.

लेकिन ये केवल अलग-अलग नेताओं के दिए हुए बयान नहीं हैं. मोदी की जीत ने हिंदू पक्ष को भरोसा दिला दिया है कि उनका समय आ गया है.

हमेशा अपराधी एक मुस्लिम नाम के साथ पकड़ा जाता है. उसे पहले एक मुस्लिम और बाद में एक अपराधी के रूप में देखा जाता है. माना यह जाता है कि उसके भीतर जुर्म की प्रवृत्ति इस धर्म के कारण उपजी है. हमारे कई शहरों में मुसलमानों को घर देने से साफ इनकार कर दिया जाता है और वे बस्तियों में रहने को मजबूर हैं. लोग हिन्दू टैक्सी चालकों की मांग करते हैं और एक मुस्लिम ड्राइवर के लिए मना कर दिया जाता है. एक हिंदू महिला के साथ रिश्ता करने वाले मुस्लिम व्यक्ति को जोखिम उठाना पड़ता है और उसे लव मुजाहिद बुलाया जाता है. जब भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी गणतंत्र दिवस परेड के दौरान प्रोटोकॉल का पालन करते हुए राष्ट्रीय ध्वज को सलाम नहीं करते तो उन्हें गद्दार कहा जाता है. इस तरह के तमाम किस्से हैं.

आज भारत में रहने वाले हर मुस्लिम पुरुष और महिला को अहसानमंद होना चाहिए कि उन्हें जिंदा रहने की इजाजत दी जा रही है. (हिंदुत्ववादी गर्व से कहते हैं कि भारत में मुसलमान दुनिया में किसी भी जगह से ज्यादा सुरक्षित हैं.) लेकिन इसके बदले मुसलमानों को यह मान लेना चाहिए, मर्जी से या जबरदस्ती, कि उन्हें इस देश में समान नागरिक का दर्जा देने वाले अपने अधिकार और अपनी आजादी को कुर्बान करना होगा.

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लेखक

आदित्य मेनन आदित्य मेनन @aditya.menon.75

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में पत्रकार हैं.

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