8 साल के बच्चे को सौरभ या शमशाद बनाने की जल्दबाजी क्यों?
अचानक सौरभ का 'सुन्नत' करवा कर उसे शमशाद बना दिया जाता है. वह जो महज 8 साल का बच्चा है उसे समझ भी नहीं आया होगा कि उसके साथ क्या हो रहा है. 'सुन्नत' की पीड़ा तो कुछ दिनों में भर जाएगी लेकिन जो घाव उसके मन पर लगा है वह कैसे भरेगा?
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एक 8 साल के बच्चे (8 year child) के बारे में सोचिए जिसके पिता हिंदू (Hindu) हैं और मां मुस्लिम (Muslim)...उसे दोनों धर्मों के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं है. उसे खुद नहीं पता कि वह हिंदू बनना चाहेगा या फिर मुस्लिम. 8 साल के बच्चे का दिमाग ही कितना होता है? वह तो खेलने में मस्त रहता है. वह अपने माता-पिता दोनों से प्यार करता है उनके साथ खुश है.
वह धर्म जैसी बातों से अनजान है, उसे तो उसके माता-पिता दिखते हैं ना कि हिंदू-मुस्लिम. ऐसे में एक दिन अचानक उसका 'सुन्नत' (Khatna) करवा दिया जाता है. वह जो महज 8 साल का बच्चा है उसे समझ भी नहीं आया होगा कि उसके साथ क्या हो रहा है. 'सुन्नत' की पीड़ा तो कुछ दिनों मे भर जाएगी लेकिन उसके मन पर जो घाव लगा है वो कैसे भरेगा.
Chattisgarh | A Hindu resident filed a complaint at Sanna PS stating that his Muslim wife forcibly circumcised their minor son & changed his name to Muslim nomenclature. Case under relevant sections of IPC & Freedom of Religion Act has been registered: Jashpur ASP Pratibha Pandey pic.twitter.com/AMuX6BHmtr
— ANI (@ANI) January 12, 2022
एक बच्चा जो अपने घर में 8 साल तक हिंदू की तरह रहा है उसे अचानक से धर्मपरिवर्तन (Religious Conversion) के बाद मुस्लिम घोषित कर दिया...वह खुद को कैसे मुस्लिम के रूप में अपना लेगा. एक बच्चा कैसे खुद को सौरभ से शमशाद मान लेगा? काश कि माता-पिता ने उसे होश संभलने भर का वक्त दिया होता. यह उसका अपनाी फैसला होता कि वह क्या बनना चाहता है. इससे ज्यादा बदनसीब मां-बाप मैंने नहीं देखे जिन्होंने अपने बेटे का बचपन छीन लिया. अगर इतना ही धर्म-धर्म करना था तो दोनों शादी ही नहीं करनी चाहिए थी. शादी के वक्त उन्हें अपना भविष्य तो पता ही होगा...
बच्चे के धर्मांतरण के बाद उसका नाम शमशाद रख दिया
दरअसल, छत्तीसगढ़ के जशपुर में एक 8 साल के बच्चे का जबरन खतना करवाकर धर्म परिवर्तन का मामला सामने आया है. बच्चे के हिंदू पिता चितरंजन सोनवानी को जब इसकी जानकारी हुई तो वह वो पुलिस थाने पहुंच गया. धीरे-धीरे बात बात हिंदू संगठनों तक पहुंत गई और फिर बवाल मच गया. चितरंजन सोनवानी ने अपनी पत्नी रेशमा पर और सास पर बेटे सौरभ की सुन्नत खरवाने और धर्म परिवर्तन के बाद नाम बदलने का आरोप लगाया है.
बच्चा जब जन्म लेता है वह दुनिया की तमाम बातों से अनजान होता है. जैसे मिट्टी के कच्चे घड़े को जिस शेप में कुम्हार ढालता है वह उसी रूप में ढल जाता है. बच्चे भी ऐसे ही होते हैं उनका मन कोमल होता है वो दुनिया की चालाक और फरेब को नहीं समझ पाते. बच्चे का पालन कीजिए लेकिन उसके ऊपर अपन हिसाब से वो बातें मत थोपिए जिसकी उसे समझ नहीं है. बच्चा जैसे-जैसे होश संभालता है उसके सवाल बढ़ते हैं, जैसे बच्चे ने पूछा कि भगवान कहां रहते हैं? तो आपने घर की मंदिर की तरफ इशारा कर दिया...बच्चे ने पूछा कि क्या भूत होते हैं तो आपने कोई डरावनी फोटो दिखा दी. बच्चे ने कहा अंडा खाना है तो आपने उसे मना कर दिया...आप अपने दिमाग की सारी बातें उसके मन में ढालते जाते हैं और वह वैसा ही बनता जाता है. आप बच्चे को संस्कार सिखाने के साथ-साथ अपनी सारी मर्जी भी उसी पर थोप देते हैं. इस अबोध से साथ भी यही हुआ है, मां-बाप की लड़ाई में वह पिसता रहा और एक दिन उसकी पहचान ही बदल दी गई.
पिता ने बताई पूरी कहानी
चितरंजन सोनवानी के अनुसार, करीब 10 साल पहले मेरा और रेशमा का प्रेम विवाह हुआ था. हमने हिंदू रीति-रिवाज से शादी की थी और हिंदू की तरह ही जिंदगी जी रहे थे. हमारी दो संतानें हैं जिनका पालन-पोषण भी हिंदू परंपरा के हिसाब से ही किया जा रहा है. इसी बीच 19 नवंबर 2021 को मेरी पत्नी बेटे सौरभ को लेकर अपने मायके गई. वहां से पत्नी और सास बेटे को लेकर अम्बिकापुर गए. जहां डॉक्टर से बेटे का खतना (सुन्नत) करा दिया. उसपर इस्लाम धर्म अपनाने का का दबाव बनाया गया और उसका नाम भी बदल दिया गया. जबसे मेरा शादी हुई है मुझपर भी इस्लाम धर्म अपनाने लगातार दबाव बनाया जा रहा है. मुझे कई बार लालच दिया गया. यहां तक कि मुझे पिकअप गाड़ी देने की बात तक की गई. मैं इस्लाम धर्म स्वीकारने के पक्ष में ना था और ना अब हूं. इसी सजा आज बेटे दी गई. मेरी पत्नी ने ही अपने मायके वालों के साथ मिलकर बेटे को यह सजा दे दी. इस मामले में चितरंजन के ससुराल पक्ष का कहना है कि सुन्नत की प्रक्रिया बच्चे के पिता से पूछ कर की गई थी. हालांकि जांच में यह मामला साबित हो चुका है.
पुलिस ने क्या कहा
इस मामले में पुलिस का कहना है कि जांच के बाद नगरटोली के चितरंजन की शिकायत सही मिली है. जांच में नाबालिग लड़के का खतना करवाने एवं धर्मान्तरण परिवर्तन कराने का अपराध पाया गया. इसके बाद तीनों के खिलाफ धारा 295 (क), 323, 34 एवं छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्रता अधिनियम की धारा 3, 4 कायम की गई है. तीन दिन तक चले बवाल के बाद पुलिस ने आखिरकार बच्चे की मां और नानी को गिरफ्तार कर लिया है. कानूनी प्रक्रिया के बाद बीते बुधवार को उन्हें जेल दाखिल करा दिया गया है.
असल में हिंदू संगठन से जुड़े लोगों ने पुलिस थाने के बाहर तीन प्रदर्शन किया और आरोपियों की जल्द गिरफ्तारी की मांग की. तीन दिन तक चले बवाल के बाद आखिरकार पुलिस ने बच्चे की मां और नानी को गिरफ्तार कर लिया है.
अबोध बच्चों पर धर्म क्यों थोप दिया जाता है?
बच्चे अभी होश भी नहीं संभालते कि उनपर धर्म का बोझ थोप दिया जाता है. लोग अपनी कम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए धर्म को बढ़ाना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि बच्चे बड़े होकर उनके नक्से कदम पर चले इसलिए छोटे पर से उनके दिमाग में ये सारी बातें भरी जाती हैं और उनका माइंड को इसी रूप से वकसित किया जाता है. रेशमा के दिमाग में भी यह बात होगी कि मेरा बेटा है, यह जब बड़ा होगा तो इसकी शादी होगी और इसके जरिए मेरा कौम को बढ़ने का मौका मिलेगा. ऐसे लोग अपनी संस्कृति और अपने रहन-सहन को फैलाना चाहते हैं इसलिए दूसरे दूसरे धर्म के लोगों को अपने धर्म में शामिल करना चाहते हैं. तो फिर ये अपनी संतानों को कैसे आजाद छोड़ सकते हैं. बचपन से ही बच्चों के दिमाग में धर्म के नामपर जहर भरा जाता है.
बच्चों को मौका दीजिए
अपने बच्चों को खुली जिंदगी दीजिए. उन्हें आगे बढ़ने का मौका दीजिए. अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाइए, फिर वो जो धर्म चाहें चुन लेंगे और यदि नास्तिक रहना चाहें तो वो भी रह लेंगे? इंसानियत और मानवता को पहले उन्हें समझने का मौका दीजिए. बच्चों को धर्म या जाति के बंधन में बच्चों को क्यों बांधना, बालिग होने पर चुनने दीजिए उन्हें अपनी पहचान? जब वे होश संभालेगे वे खुद जान जाएंगे कि उन्हें क्या चाहिए और क्या नहीं?
सरनेम लगाना भी क्यों जरूरी?
जब भी हम किसी की नाम पूछते हैं तो उसका पूरा नाम पूछते हैं. हमारा पूरा नाम पूछने का मतलब सामने वाले ही जाति जानने से होती है. उसका धर्म जानने से होता है. बच्चा पैदा हुआ और हमने उसका सरनेम जोड़ दिया फिर वह उसी सरनेम में उसकी पूरी पहचान कैद हो जाती है. वह दुनिया को उसी नजरिए से देखने लगता है. वह सिंह है वह मिश्रा है वह अंसारी है वह गौतम है...बच्चे का सरनेम न लगाने से आखिर क्या हो जाएगा? एक बार उसके नाम से साथ उसके पिता का सरनेम लग गया फिर सारी दुनिया उसे उसी सरनेम के हिसाब से ट्रीट करने लगती है. बच्चे को 18 साल का हो जाने दीजिए. 18 ही क्यों उसे मैच्योर हो जाने दीजिए फिर उसे खुद तय करने दीजिए कि वह अपनी जिंदगी से क्या चाहता है?
No Caste, No Religion रखने वाली स्नेहा हैं मिसाल
तमिलनाडु, वेल्लोर के तिरूपत्तूर की रहने वाली स्नेहा भारत की पहली ऐसी महिला बन गई हैं, जिनकी अब ना कोई जाति है और ना ही धर्म. पेशे से वकील स्नेहा ने खुद 'No Caste, No Religion' का सर्टिफिकेट बनवाया है, जिसके लिए उन्हें 9 साल का समय लगा. स्नेहा ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बचपन से सभी सर्टिफिकेट में जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ देते थे. स्नेहा का कहना है कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है. मुझे जाति और धर्म से ज्यादा खुद की एक अलग पहचान चाहिए थी. स्नेहा अपनी तीन बेटियों के फॉर्म में भी जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ती हैं. स्नेहा के इस कदम की काफी सराहना हुई थी.
अगर माता-पिता की जाति और धर्म अलग है तब तो ये बातें और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं. पता नहीं बच्चा किस धर्म को अपनाना चाहता है? वह भले बड़ा होकर नास्तिक हो जाए उसे मौका तो दीजिए. कम से कम यह उसकी च्वाइस रहेगी. बच्चे को इंसानियत का पाठ पढ़ाइए ताकि बड़ा होकर वह एक अच्छा इंसान बने. 8 साल के बच्चे को सौरभ या शमशाद बनाने की जल्दबाजी क्यों है? यह फैसला उसके ऊपर ही छोड़ दीजिए...
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