अरब शेख आराम से बोला 'जय सियाराम' और हमारे यहां 'भारत माता की जय' पर बवाल !
क्या इस्लामिक हैं और क्या गैर-इस्लामिक... इसे लेकर हमारे यहां कुछ लोग वंदे मातरम और राष्ट्रगान तक को बहस में ले आए. अब एक वीडियो देखिए जब मोरारी बापू के कार्यक्रम में अबुधाबी के प्रिंस 'जय सियाराम' बोल रहे हैं!
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क्या इस्लामिक हैं और क्या गैर-इस्लामिक...इसे लेकर हमारे यहां कितनी बहस होती है. यहां तक कि कुछ लोग वंदे मातरम और राष्ट्रगान तक को इस बहस में खींच आए. और तो और भारत माता की जय बोलें की नहीं, इस पर भी तू-तू-मैं-मैं हो गई. एक से बढ़ कर एक तर्क दिए गए.
अब एक वीडियो देखिए...जो अबुधाबी का है. सोशल मीडिया पर ये वीडियो इन दिनों वायरल है. इसमें अबुधाबी के प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नहयान नजर आ रहे हैं. बताया जाता है कि मौका मोरारी बापू के एक प्रवचन कार्यक्रम का है जो अबुधाबी में हो रहा है. लेकिन दिलचस्प बात ये कि उस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे मोहम्मद बिन जायद को जब मंच पर बुलाया जाता है तो वो अपनी बात 'जय सियाराम' कह के शुरू करते हैं और फिर खत्म भी उसी अंदाज में.
देखिए वो वीडियो-
अब सवाल तो बनता है. सवाल उनसे जो यहां इस्लाम के नाम पर पता नहीं कैसी-कैसी दलील देते रहते हैं. इसमें असदुद्दीन ओवैसी जैसे राजनेता भी हैं और खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताने वाले कुछ मौलवी भी. अगर इनकी बातों को मानिए तो फिर तो अबुधाबी के प्रिंस गैर-इस्लामिक हो गए. उन्होंने इस्लाम का अपमान कर दिया. आश्चर्य है कि एक हफ्ते से ऊपर हो गया, किसी मौलवी को फतवा देने की नहीं सूझी! जबकि कार्यक्रम में केवल प्रिंस बिन जायद नहीं बल्कि कई शेख बैठे हुए थे. किसी को इसमें कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा.
मोरारी बापू के कार्यक्रम में एक शेख का 'जय सियाराम' |
अबुधाबी में एक शेख के लिए 'जय सियाराम' कहना इतना सहज क्यों है, जबकि हमारे यहां वंदे मातरम को गैर इस्लामिक करार दे दिया जाता है! यहां तक कि आम मुसलमानों से भी अब पूछिए तो वे भारत मात की जय या वंदे मातरम कहते हुए कतराने लगे हैं. ये माहौल किसने बनाया.
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जब भारत मात की जय बोलने न बोलने पर खूब बहस हो रही थी तो ओवैसी ने कहा था कि उनके गले पर कोई चाकू भी रख दे तो वे भारत माता की जय नहीं बोलेंगे. ये सच है कि किसी के वंदे मातरम या भारत माता की जय बोलने या नहीं बोलने से इस बात का फैसला नहीं हो जाता कि वो देशभक्त या नहीं.
लेकिन सवाल तो ये है कि ऐसी नौबत आई क्यों? इसे कुछ लोग गैर इस्लामिक बताने पर क्यों तुल गए. कोई वहाबी विचारधारा का व्यक्ति सियाराम के लिए जय बोल सकता है तो भारत माता की जय गैर इस्लामिक कैसे हो गया?
पिछले साल आई फिल्म बजरंगी भाईजान का एक दृश्य तो याद होगा. सीमा के उस पास यानी पाकिस्तान में सलमान खान इस्लामिक गुरु का किरदार निभा रहे ओम पुरी से मिलते हैं. फिर विदा लेने के समय ओम पुरी खुद सलमान से पूछते हैं कि संबोधन में वहां (भारत) क्या बोलते हैं? फिर खुद ही कहते हैं-'जय श्रीराम'. जबकि हिंदू किरदार निभा रहे सलमान सलाम करके आगे बढ़ जाते हैं.
फिल्मों की ये कहानी असल जिंदगी में भी नजर आएगी? क्या ओवैसी के मुख से हमें कभी जय श्रीराम सुनने को मिलेगा और मोहन भागवत से सलाम वालेकुम! शायद नहीं, क्योंकि राजनीति इसकी इजाजत भला कहां देता है...है कि नहीं?
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