जब बिहार का 'नकल-मॉडल' गुजरात पहुंचा!
गुजरात में 12 वीं के एग्जाम में 959 स्टूडेंट्स द्वारा सामूहिक नक़ल का मामला सामने आया है. मामला देखकर ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि नकल का यूपी-बिहार मॉडल गुजरात पहुंच गया है और उसने गुजरात के स्टूडेंट्स के जीवन को बर्बाद करने की शुरुआत कर दी है.
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भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना का एक बड़ा कारण 'नकल' है. देश की शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार कुछ इस हद तक व्याप्त है कि, पैसे देकर कोई भी बड़ी ही आसानी के साथ मनचाही मार्कशीट घर ला सकता है. बात शिक्षा में नक़ल की हो, तो उत्तर प्रदेश और बिहार वो राज्य हैं जिनका नाम अपने आप ही किसी भी व्यक्ति के जेहन में आ जाता है. तो वो लोग जो ये सोचते हैं कि नक़ल केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में होती है. वो जरा ठहर जाएं और गुजरात का रुख करें. गुजरात सेकंडरी ऐंड हायर सेकंडरी एजुकेशन बोर्ड (GSHSEB) के अधिकारी उस वक्त सकते में आ गए, जब उन्होंने सामूहिक नकल का एक ऐसा मामला पकड़ा जिसे यदि कोई भी आदमी सुने तो वो हैरत के चलते दांतों तले अपने अंगुली दबा ले. दिलचस्प बात ये है कि 12वीं की परीक्षा में हुई इस सामूहिक नकल में 959 छात्र शामिल थे. माना जा रहा है कि GSHSEB के इतिहास में इससे बड़ा नक़ल का मामला अब तक कोई सामने आया ही नहीं है.
गुजरात में सामूहिक नकल का जो मामला सामने आया है उसने पूरे देश को हैरत में डाल दिया है
बताया जा रहा है कि परीक्षा में नक़ल न हो इसके लिए गुजरात सेकंडरी ऐंड हायर सेकंडरी एजुकेशन बोर्ड ने काफी सख्ती की थी. मगर अब जबकि ये मामला सामने आ गया है तो कहा यही जा रहा है कि गुजरात सरकार और वहां का एजुकेशन बोर्ड नक़ल रोकने में बुरी तरह नाकाम हुआ है. ज्ञात हो कि ये मामला इसलिए भी खास हो गया है क्योंकि शिक्षा व्यवस्था में किरकिरी होने के कारण नक़ल करने वाले स्टूडेंट्स पर 2020 तक रोक लगा दी गई है. साथ ही स्टूडेंट्स ने जिन विषयों में नक़ल की थी उसमें भी उन्हें फेल कर दिया गया है.
ध्यान रहे कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को खबर मिली थी कि नागढ़ और गिर-सोमनाथ जिलों के सेंटर्स में बम्पर नक़ल हुई है. ऑफिसर्स ने इस शिकायत पर एक्शन लिया और उत्तर पुस्तिकाओं की दोबारा जांच करवाई. अधिकारियों के होश उस वक़्त उड़ गए जब उन्होंने देखा कि सभी स्टूडेंट्स ने बिल्कुल एक जैसी गलती की हैं. यानी अगर किसी स्टूडेंट ने दूसरा उत्तर गलत है तो अगले स्टूडेंट ने भी वही गलती दोहराई थी.
GSHSEB से प्राप्त जानकारी के अनुसार 959 परीक्षार्थियों ने एक सवाल का एक जैसा जवाब लिखा था. यही नहीं उनके उत्तर का क्रम भी बिल्कुल एक जैसा और गलतियां भी उन्होंने एक दूसरे से मिलती जुलती की थीं. कहावत है कि नक़ल के लिए भी अक्ल चाहिए होती है. हमें ये बात पता है मगर शायद GSHSEB के स्टूडेंट्स इस कहावत से अंजन थे इसी लिए तकरीबन 200 स्टूडेंट्स ने एक निबंध 'बेटी परिवार का चिराग है' को एक ही तरह की शैली में लिखा. बताया जा रहा है कि जिन विषयों में सामूहिक नकल के मामले सामने आए हैं, उनमें अकाउंटिंग, इकनॉमिक्स, अंग्रेजी साहित्य और स्टैटिस्टिक्स शामिल हैं.
मामले में खबर ये भी है कि GSHSEB अब अमरापुर (गिर-सोमनाथ), विसानवेल (जूनागढ़) और प्राची-पिपला (गिर-सोमनाथ) में 12वीं की परीक्षा के केंद्र रद्द करने की तैयारी कर रहा है. वहीं जब इस मामले में छात्रों से बात हुई तो मालूम चला है कि परीक्षा केंद्रों पर शिक्षकों ने उन्हें डिक्टेशन देते हुए उत्तर लिखवाए. बड़ा सवाल ये भी है कि, एक ऐसे वक़्त में जब हम क्वालिटी एजुकेशन की बात कर रहे हों. इस तरह के मामले न सिर्फ हमारे शिक्षा के स्तर पर सवालिया निशान लगाते हैं. बल्कि ये भी बताते हैं कि जब बच्चों को पता है कि इस तरह पैसे देकर डिग्री/ मार्कशीट खरीदी जा सकती है तो वो पढ़ाई की तरफ आखिर क्यों ध्यान देंगे.
चाहे गुजरात में 959 छात्रों द्वारा की गई ये सामूहिक नकल हो या फिर बिहार का वो मामला जहां उस वक़्त लोग हैरान हुए थे जब उन्होंने परीक्षा केन्द्र में सीढ़ी लगा लगाकर देखा था साफ बताता है कि आखिर क्यों देश के युवा नौकरी पाने में असफल होते हैं.
बहरहाल अब जबकि ये मामला हमारे सामने आ गया है और गुजरात सेकंडरी ऐंड हायर सेकंडरी एजुकेशन बोर्ड की भारी किरकिरी हो चुकी है तो देखना ये भी दिलचस्प रहेगा कि केंद्र और राज्य सरकार इसे कैसे देखती हैं ? देखती हैं भी या फिर आंख पर पट्टी बांध कर इसे सिरे से खारिज कर दिया जाएगा? कुल मिलाकर मामला देखने के बाद ये कहना हमारे लिए कहीं से भी गलत नहीं है कि बिहार का 'नकल-मॉडल' गुजरात पहुंच चुका है और इसके गुजरात पहुंचने से जो हानि हुई है उसका अंदाजा जनता को तभी होगा जब बहुत देर हो जाएगी और संभालने को उनके पास कुछ शेष रहेगा नहीं.
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