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Updated: 20 सितम्बर, 2022 05:11 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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'मॉरेलिटी पुलिस' की हिरासत में एक 22 वर्षीय ईरानी महिला महसा अमिनी की मौत ने ईरान में महिलाओं को हुकूमत के विरोध में सड़कों पर उतरने और अपने दमन पर रोशनी डालने के लिए अनोखे तरीके अपनाने के लिए प्रेरित किया है. ज्ञात हो कि, अभी बीते दिन महसा अमिनी को तेहरान में गिरफ्तार किया गया, जहां कोमा में जाने के बाद उसकी मौत हो गई थी. एंटी हिजाब मूवमेंट की पक्षधर अमिनी पर आरोप था कि उसने सही तरीके से हिजाब (हेडस्कार्फ़) नहीं लगाया था. मामले के तहत जो रिपोर्ट्स  बाहर आईं उनमें बताया गया कि हिरासत में किये जाने के बाद 'मॉरेलिटी पुलिस' द्वारा अमिनी को कुछ हद तक यातनाएं दी गयीं कि उसे दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हुई.

बीते कुछ वर्षों से ईरान में महिलाएं हिजाब और हुकूमत के तानाशाही भरे रवैये के विरोध में हैं. ऐसे में अब जबकि गिरफ़्तारी में लिए जाने के बाद एक मौत हुई और आरोप मॉरेलिटी पुलिस पर लगा है सरकार एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गयी है. माना जा रहा है कि एंटी हिजाब मूवमेंट में  महसा अमिनी की मौत उत्प्रेरक की भूमिका निभाएगी. 

Hijab, Iran, Mahsa Amini, Death, Muslim, Burqa, Niqab, Police, Opposeमहसा अमिनी की मौत के विरोध में अपने बाल काटती ईरानी महिलाएं

घटना को लेकर लोगों में गुस्सा है. चाहे वो राजधानी तेहरान हो या फिर सोशल मीडिया अलग अलग प्लेटफॉर्म पर लोगों द्वारा विरोध रैलियों का तो आयोजन किया ही जा रहा है साथ ही ये बताया जा रहा है कि बदलते वक़्त के साथ अब सरकार को भी बदलना होगा. वहीं ईरान की सरकार को प्रदर्शनकारी एक बड़ी चुनौती की तरह नजर आ रहे हैं इसलिए पुलिस की क्रूर कार्रवाई बदस्तूर जारी है. गोलियां चल रही हैं. लाठी चार्ज हो रहा है और प्रदर्शन कर रहे लोगों को तितर बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे जा रहे रहे हैं.

चूंकि सरकारी दमन पर रोशनी डालने के लिए जनता द्वारा अनोखे तरीके अपनाने का जिक्र हुआ है तो बताते चलें कि तमाम महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपने बाल कटवाते और अपने हिजाब में आग लगाते हुए वीडियो भी पोस्ट किए हैं.  

विषय हिजाब है इसलिए ईरान में  इसके प्रति लोगों का रवैया क्या है? इस सवाल के जवाब की तलाश में हमें इधर उधर भटकने की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है. लेकिन जब हम हिजाब को भारत के अंतर्गत देखते हैं तो यहां कहानी पूरी तरह से अलग है. भारत में मामला ईरान की तरह नहीं है. भारत में मुस्लिम महिलाएं चॉइस का हवाला देकर हिजाब धारण करने की बात कह रही हैं. भारतीय महिलाएं इस बात की भी वकालत कर रही हैं कि यहां शिक्षण संस्थानों में हिजाब को बैन कर सरकार उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है.

भले ही भारत में संविधान का हवाला देकर अभी कुछ दिनों पहले ही हमने मुस्लिम महिलाओं को सड़कों पर आते देखा हो. लेकिन ईरान में ऐसा नहीं है. हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि ईरानी महिलाएं यदि विरोध कर रही हैं तो वहां मुद्दा चॉइस क न होकर सरकार और मॉरेलिटी पुलिस द्वारा उसे एवं पर थोपे जाने का है. 

हिजाब के तहत देखा जाए तो भारतीय और ईरानी महिलाएं दो बिलकुल विपरीत धुरी पर खड़ी हैं. वहीं मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही मुल्कों में पुरुषों का नजरिया बल्कि एक जैसा है. चाहे ईरान हो या भारत मुस्लिम पुरुष यही चाह रहे हैं कि कुछ भी हो जाए मुस्लिम महिलाओं को हिजाब धारण करना चाहिए. ताउम्र पर्दे में ही अपनी जिंदगी को बिता देना चाहिए.

सवाल होगा कैसे तो जवाब के लिए हमें कहीं दूर नहीं जाना. हम उस ट्वीट को देख सकते हैं जो महसा अमिनी की मौत के विरोध में ट्विटर पर डाला था. अपने ट्वीट में कविता ने उन ईरानी महिलाओं के जज्बे को सलाम किया था जो  महसा अमिनी की मौत के बाद सड़कों पर थीं और जिन्होंने अपने हिजाब उतार फेंके थे.

कविता का इस ट्वीट को करना भर था. हिजाब के हिमायतियों को ये बात बुरी लग गयी थी. हिजाब जैसे मसले पर किसी आम मुसलमान की राय क्या है इसे हम पीस पार्टी के प्रवक्ता शादाब चौहान के उस रिप्लाई से समझ सकते हैं जो उन्होंने कविता कृष्णन को दिया. 

अपने ट्वीट में शादाब ने कविता को टैग करते हुए इस बात को बड़ी ही प्रमुखता से बल दिया कि मुस्लिम धर्म में निश्चित रूप से प्रत्येक व्यक्ति इस्लामी कानून के अनुसार शरीयत के लिए बाध्य है. वहीं उन्होंने ये भी कहा कि, मैं क्रूरता के पक्ष में नहीं हूं. लेकिन नियम का पालन करना चाहिए और महिलाओं के लिए हिजाब सोने के गहने या कोहिनूर हीरे से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है. शादाब के इस लॉजिक को कविता ने भी गंभीरता से लिया और उन्हें तर्कों के हवाले से समझाने की कोशिश की. 

 

लेकिन चाहे वो शादाब हों या उनके जैसे और लोग, वो यही चाहते हैं कि, मुस्लिम महिलाएं ऐसे ही घुटन भरी ज़िन्दगी को जिएं.

शादाब की बातों से इतर जब हम इस पूरे मामले को ईरान के सन्दर्भ में देखें तो वहां भी हिजाब को महिलाओं पर थोपने वाले लोग पुरुष ही हैं.यदि महसा अमिनी को सजा मिली और उस सजा के बाब उसकी मौत हुई तो कारण पुरुष ही हैं जिन्होंने कसम खा ली है कि वो धर्म की ठेकेदारी करेंगे चाहे इसकी कीमत मानवता और इंसानी रिश्ते को अपनी हरकतों से शर्मसार करना ही क्यों न हो.  

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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