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Updated: 25 जनवरी, 2016 10:09 PM
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अभी तक माना जाता था कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में तलाक आम बात है. यदि इस्लाम में महज तीन शब्द बोलने पर तलाक हो जाता है तो अमेरिका और यूरोप में तीन साल में तीन बार तलाक हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होता. लेकिन इन सभी आंकड़ों को अब एक ऐसा देश धता कर रहा है जहां शादी और परिवार की अहमियत हजारों साल से लगातार कायम थी. जी हां, चीन के नए आंकड़ें बता रहे हैं पूरे देश में शादियों के टूटने में अप्रत्याशित तेजी आई है. तलाक पर फैसला करने के लिए चीन के मौजूदा कानून के मुताबिक यहां महज 30 मिनट में और मात्र 100 रुपये की फीस अदा करके तलाक लिया जा सकता है.

यह हैरतअंगेज इसलिए है कि चीन में कम्युनिस्ट सरकार से हजारों साल पहले से शादी किसी के लिए भी जीवन पर्यंन्त के लिए रहती थी और इसे तोड़ना लगभग न के बराबर था. शादी और परिवार के लिए यह अहमियत कम्युनिस्ट सरकार के समय भी कायम रही. यहां तक कि माओ जिदॉंग के काल में तो तलाक लेना नामुमकिन ही था. शादी-शुदा जिंदगी में आम आदमी के लिए अपने पति अथवा पत्नी के अलावा किसी से रिश्ता बनाते पाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान था. इसी दौर में शादी-शुदा जोड़ों के लिए सरकार से जारी हुआ मैरिज कार्ड रखना बेहद जरूरी हुआ करता था और यदि कोई जोड़ा बिना इस कार्ड के घर में पाया जाता था तो उनका जेल जाना तय होता था. वहीं इस कार्ड को दोबारा बनवाने के लिए शादी-शुदा जोड़ों को अपने मूल गांव जाना होता था जहां उनकी शादी का रजिस्ट्रेशन हुआ था.

आखिर चीन में ऐसा क्या हुआ कि आज शादी-शुदा जोड़े बड़ी संख्या में तलाक के लिए न सिर्फ अर्जी दे रहे हैं बल्कि मिनटों में जाकर तलाक की प्रक्रिया को पूरी करके अलग हो रहे हैं. आंकड़ो के मुताबिक चीन में तलाक में तेजी का रुख 1980 के दशक में शुरू हुआ. हालांकि 1994 में पारित हुए मैरिज एक्ट में तलाक लेने के लिए पती-पत्नी को अपने एम्प्लॉयर या कम्युनिटी लीडर से रेफेरेंस लेना जरूरी था. लेकिन 2003 में कानून में संशोधन कर इस नियम को हटा दिया गया जिसके बाद देश में तलाक लेना काफी आसान हो गया.

चीन में तलाक का सबसे हैरतअंगेज पहलू यह है कि यहां महिलाएं इस काम में सबसे आगे हैं. महिलाओं में बढ़ती शिक्षा और उन्हें अपने अधिकारों की पूरी समझ के बाद आज चीन में प्रति वर्ष हो रहे कुल तलाक में आधे से ज्यादा तलाक के एप्लीकेशन महिलाओं की तरफ से दर्ज की जा रही है. जानकारों का मानना है कि बीते दशकों में चीन के इंडस्ट्रियल शहरों के लोगों की कमाई में कई गुना इजाफा देखने को मिला है. इसके चलते महिलाओं को यह भी अहसास हुआ है कि वह अपनी कमाई पर अकेले गुजर-बसर करने में सक्षम है लिहाजा उन्हें अब परिवार की जरूरत नहीं महसूस हो रही है.

कुछ समाजशाष्त्रियों का दावा है कि बढ़ती समृद्धि के साथ महिलाओं को अपनी स्वतंत्रा के लिए प्रेरित करने में चीन का एक शिशु नियम भी काफी हद तक जिम्मेदार है. ऐसा इसलिए कि पती के माता पिता के वृद्धावस्था की जिम्मेदारी पत्नी पर आ जाती है. ऐसी स्थिति में अक्सर शादी-शुदा जिंदगी पर विपरीत असर पड़ता है क्योंकि यदि उन्हें अपने बेटे की पत्नी से शिकायत रहती है तो वह लगातार बेटे पर तलाक लेने के लिए दबाव बनाते रहते हैं. इसे चीन के एक और कानून से भी मदद मिलती है. यदि माता-पिता ने शादी के बाद कोई संपत्ति बेटे अथवा उसकी पत्नी के नाम खरीदी है तो तलाक हो जाने की स्थिति में वह संपत्ति एक बार फिर माता-पिता और बेटे के नाम की जा सकती है.

अब इन आसान होते नियमों के साथ-साथ पिछले कुछ दशकों में महिलाओं की साक्षरता बढ़ी है. वे ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर हुई हैं. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक एक साल में लगभग 36 लाख तलाक हुए हैं. यह आंकड़ा 2004 के मुकाबले दोगुना है. वहीं चीन में मौजूदा (2014 के आंकड़े) तलाक-दर 2.7 है जो कि यूरोपीय देशों से अधिक है और अमेरिका के लगभग नजदीक पहुंच रहा है. ऐसे में चीन की नई पीढ़ी, खासकर महिलाओं, में परिवार के प्रति बढ़ते नकारात्मक रुख से आने वाले दिनों में नई चुनौती देखने को मिल सकती है.

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