धार्मिक भावनाओं पर ज्ञान देने वाली 'भावनाएं' जुबैर की गिरफ्तारी से आहत क्यों हैं?
बात तो शुरू होती है 'फ्री स्पीच' से. यदि मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) बेगुनाह हैं, तो नुपुर शर्मा भी हैं. और यदि धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप है, तो दोनों गुनाहगार हैं. किसी एक के खिलाफ सख्ती तो किसी के खिलाफ नरमी बरतने की वकालत कैसे की जा सकती है?
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दिल्ली कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका को खारिज कर एक दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया है. मोहम्मद जुबैर के खिलाफ एक ट्विटर यूजर की ओर से धार्मिक भावनाएं आहत करने और दंगे भड़काने की शिकायत पर उसे गिरफ्तार किया गया था. मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी के बाद से ही सेलेक्टिव सेकुलरिज्म, सेलेक्टिव एजेंडा, सेलेक्टिव विचारधारा, सेलेक्टिव लिबरल जैसी तमाम सेलेक्टिव खासियतों वाले प्रगतिशील लोगों का एक तबका भड़क गया है. मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी को लेकर ये स्वघोषित लिबरल वर्ग लोकतंत्र के खतरे में आने से लेकर नागरिकों की स्वतंत्रता तक पर ज्ञान बघारने बैठ गया है. सोशल मीडिया पर मोहम्मद जुबैर के समर्थन में कई एकड़ से लेकर बीघा भर तक की पोस्ट की जा रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सेलेक्टिव लिबरलरिज्म को अपनाते हुए भावनाओं पर ज्ञान देने वालों की भावनाएं जुबैर की गिरफ्तारी पर जमकर आहत हो रही हैं. लेकिन, सवाल यही है कि क्या मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी गलत है?
फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी सरकार के खिलाफ किये गए किसी फैक्ट चेक पर नहीं हुई है.
पैगंबर पर संवेदनशील जुबैर हनुमान पर खिलंदड़ क्यों थे?
सबसे पहले मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी के मामले को समझना जरूरी है. तो, फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी उनके किसी फैक्ट चेक के खिलाफ नहीं हुई है. दिल्ली पुलिस ने जुबैर के द्वारा उजागर किये गए किसी झूठ को लेकर उस पर कार्रवाई नहीं की है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो फैक्ट चेकर के रूप में मोहम्मद जुबैर की स्वीकार्यता पर तो मैं भी उनके साथ ही खड़ा हूं. क्योंकि, उनके इस फैक्ट चेक के कारण ही कई बार झूठी खबरों के फेर में फंसने से बहुत से लोग बच जाते हैं. लेकिन, यहां मामला जुबैर के खिलाफ की गई धार्मिक भावनाएं आहत करने और दंगे भड़काने की शिकायत का है. मोहम्मद जुबैर को फिलहाल जिस मामले में गिरफ्तार किया गया है. ये उनकी ही की गई एक पोस्ट को लेकर है. जिसमें उन्होंने 2014 से पहले हनीमून होटल और 2014 के बाद हनुमान होटल लिखते हुए एक फिल्म का वीडियो शेयर किया था.
Present case registered on basis of a post on Twitter by handle Hanuman Bhakt @ balajikijaiin where he showed his anger against another Twitter handle in name of Mohammed Zubair regarding the post “BEFORE 2014: Honeymoon Hotel. After 2014: Hanuman Hotel”:Delhi police sr officials
— ANI (@ANI) June 27, 2022
अब इसे लेकर लिबरलों का कहना है कि मोहम्मद जुबैर ने कुछ भी गलत नहीं किया. उन्होंने एक फिल्म की क्लिप को शेयर किया है. जिसे धार्मिक भावनाएं या दंगा भड़काने वाला मानना गलत होगा. और, अगर ये सही भी है, तो फिल्म बनाने वालों पर मामला दर्ज किया जाना चाहिए. लेकिन, अपने सेलेक्टिव सेकुलरिज्म और सेलेक्टिव एजेंडे के चलते ये स्वघोषित लिबरल ये बताना भूल जाते हैं कि नूपुर शर्मा की कथित टिप्पणी भी हदीस को आधार बनाकर ही गई थी. लेकिन, नूपुर शर्मा के खिलाफ यही लोग हदीस की बात को मानने के लिए तैयार नही थे. बल्कि, नूपुर शर्मा पर कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने के लिए देशभर में दंगे तक भड़काने की कोशिश कर दी गई. ये लिबरल बताना भूल जाते हैं कि प्रगतिशीलता को एकतरफा नहीं घोषित किया जा सकता है. और, जिस तरह नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर एक मुस्लिम के तौर पर सेकुलर और लिबरल फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की भावना आहत हो सकती है. तो, मोहम्मद जुबैर की हिंदू देवी-देवताओं पर की गई टिप्पणी से हिंदुओं की भावनाएं क्यों आहत नहीं होगी?
वैसे, देखा जाए, तो आमिर खान की फिल्म PK से लेकर अक्षय कुमार की फिल्म Oh My God तक में किरदार निभाने वाले एक्टर्स ने कभी खुद को धर्म के मामले में इतना संवेदनशील नहीं माना है. जितना मोहम्मद जुबैर पैगंबर मोहम्मद पर की गई कथित टिप्पणी मामले में नजर आए थे. क्योंकि, अगर ऐसा होता, तो पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के खिलाफ आमिर खान के बयान देने पर लोग उनसे भी उनकी सेलेक्टिव धर्मनिरपेक्षता पर सवाल जरूर करते. जबकि, खुद को फैक्ट चेकर कहने वाले मोहम्मद जुबैर पैगंबर पर टिप्पणी मामले में अपने मजहब के प्रति काफी संवेदनशील नजर आते हैं. इस्लाम धर्म के पैगंबर पर कथित टिप्पणी से मोहम्मद जुबैर की भावनाएं इस कदर आहत हुईं कि उन्होंने नूपुर शर्मा के बयान की क्लिप बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दी.
अब यहां सवाल ये है कि पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ नूपुर शर्मा की कथित टिप्पणी के वीडियो की क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल करने में महती भूमिका निभाना किस तरह के फैक्ट चेक को दर्शाता है? लिखी सी बात है कि इस मामले में स्वघोषित लिबरल और प्रगतिशील फैक्ट चेकर की भावनाएं इस्लाम के आखिरी पैगंबर के नाम पर आहत हो गई थीं. इस मामले के विवाद के बाद लोगों ने मोहम्मद जुबैर की भी ट्विटर प्रोफाइल खंगाल डाली. जिसके बाद इनके कई पुराने ट्वीट सामने आए. जिसमें मोहम्मद जुबैर अन्य धर्मों के मामलों में फैक्ट चैकर की जगह एक ट्रोल की भूमिका निभाते हुए कई मीम्स शेयर करते दिख रहे हैं. सवाल यही है कि ये कैसी प्रगतिशीलता है, जो दूसरे धर्मों पर मीम्स शेयर करने की आजादी देती है. लेकिन, इस्लाम या पैगंबर पर की गई कथित टिप्पणी पर फैक्ट चेकर को ट्रोल बनाने में समय नहीं लगाती है.
मेरी राय
मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी को लेकर सबसे अहम बात यही है कि उसकी गिरफ्तारी किसी फैक्ट चेक पर नहीं, बल्कि एक भावनाएं भड़काने वाले पोस्ट पर की गई है. और, इसे जिन लिबरल और प्रगतिशील लोगों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार दिया जा रहा है. वो नूपुर शर्मा से लेकर महाराष्ट्र में केतकी चितले की गिरफ्तारी तक के मामले में अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में आवाज उठाने से पीछे क्यों रह जाते हैं? आसान शब्दों में कहा जाए, तो एकतरफा प्रगतिशीलता विविधताओं से भरे हुए भारत जैसे देश में तो कतई संभव नहीं है. बहुत सीधी सी और स्पष्ट सी बात है कि अगर अभिव्यक्ति की आजादी ही आधार है, तो नूपुर शर्मा और मोहम्मद जुबैर दोनों ही पीड़ित हैं. और, अगर इसे आधार नहीं माना जा सकता है, तो दोनों ही अपराधी हैं. इन दोनों में से सेलेक्टिव तरीके से किसी एक का समर्थन और एक का विरोध नहीं किया जा सकता है.
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