अनोखा शहर जहां दो महीने का दिन होता है और 1.5 महीने की रात
आर्क्टिक सर्कल के पास बसे शहरों में सबसे दिलचस्प है रशिया का Murmansk (मरमंस्क) ये वो शहर है जहां 60 दिनों तक सूरज नहीं ढलता और 40 दिनों तक सूरज निकलता ही नहीं है.
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सर्दियों ने दस्तक दे दी है और पूरे उत्तर भारत में थोड़े ही दिनों में शीत लहर चलने लगेगी. ये वो मौसम है जब न बहुत ज्यादा ठंडक रहती है और न ही बहुत ज्यादा गर्मी और रात में कंबल में दुबक कर सोना और दिन में पंखे की हवा खाना अच्छा लगता है. भारत का माहौल और शहरों का मौसम ऐसा नहीं है कि यहां रहना बहुत मुश्किल हो. अगर आपसे पूछा जाए कि दुनिया में किसी ऐसे शहर का नाम बताएं जहां मौसम बेहद एक्स्ट्रीम यानी चरम पर रहता हो. iChowk.in अपनी ट्रैवल सीरीज 'अजीब शहर: अनोखा जीवन' में ऐसे ही शहरों के बारे में बताएगा जहां लोग एकदम चरम पर रहते हैं.
आज बात करते हैं एक ऐसे शहर की जहां के दिन दो महीने लंबे होते हैं और जहां काली रात डेढ़ महीने तक रहती है. ये शहर है रशिया का मरमंस्क. आर्क्टिक सर्कल पर बसा हुआ ये शहर दुनिया के सबसे सुदूर इलाकों में से नहीं है. यहां ट्रैवल करना आसान है. और साथ ही साथ यहां कई टूरिस्ट भी आते हैं. जरा सोचिए दोपहर का दो बज रहा हो और बाहर ऐसा अंधेरा हो जैसे अमावस पर होता है. या फिर रात के दो बज रहे हों और मई की दोपहर की तरह आकाश में सूरज चमक रहा हो.
ये है हाल यहां के मौसम का. फोटोग्राफर Sergey Ermokhin ने यहां के दिन और रात दोनों में अपना समय बिताया और देखा कि असल में मरमंस्क की जिंदगी कैसी है.
60 दिनों तक नहीं होती रात-
जिस समय लंबी गर्मियां मरमंस्क में आती हैं तो यहां दिन और रात का अहसास होना बंद हो जाता है. सूरत का ताप तेज रहता है और लोग अपने हिसाब से दिन और रात का अहसास ही भूल जाते हैं. Sergey Ermokhin का कहना है कि वो रात में दो बजे (जब सूरज चढ़ा हुआ था) टहल रहे थे और उन्हें भूख लगने लगी, उनके शरीर के हिसाब से तो वो बिलकुल दिन की तरह ही था और इसके बाद उन्हें बहुत दिक्कत हुई क्योंकि वहां के लोगों के हिसाब से तो रात हो रही थी और दुकानें खुली नहीं थी. ये वो जगह है जहां सूरज डूबता ही नहीं है बल्कि बस सूरज चक्कर लगाता है आसमान में.
रात में 2 बजे भी कुछ ऐसा नजारा दिखेगा मरमंस्क के पोलर दिन में
नॉर्थ रशिया में साल को पोलर दिन और पोलर रात में विभाजित किया जाता है और क्योंकि दिन 60 दिनों तक लंबा होता है (22 मई से 22 जुलाई तक) तो उस समय लोगों को अच्छी खासी समस्या होती है. कुछ स्थानीय लोगों से बात करने पर Sergey को पता चला कि वो अपने घरों में मोटे पर्दे लगाकर रखते हैं. रात में अगर बच्चे जाग जाते हैं तो उन्हें बेहद दिक्कत होती है ये समझाने में कि वो असल में दिन में नहीं बल्कि आधी रात में उठे हैं. सभी होटलों में भी मोटे पर्दे लगे होते हैं ताकि वहां आने वाले पर्यटकों को कोई दिक्कत न हो. साल के अधिकतर समय ठंड में रहने वाले इस शहर में जब गर्मियां आती हैं तो लोगों को सनबर्न की शिकायत भी होती है. भले ही तापमान ज्यादा बढ़ता नहीं है, लेकिन ऐसा होता है.
मरमंस्क में पोलर दिन में सूरज ढलता नहीं है बस आस्मान में घूमता रहता है.
कई बार तो आलम ये होता है कि पार्टी कर रहे लोगों को ये नहीं पता होता कि दिन के 11 बज रहे हैं या रात के. AM और PM से समय का अंदाजा होता है. स्थानीय लोगों का कहना था कि पोलर दिन के समय इलेक्ट्रिसिटी की कीमत बहुत कम हो जाती है क्योंकि न ही हीटरों का ज्यादा इस्तेमाल होता है और न ही बत्ती जलाने की जरूरत पड़ती है. पर जितना भी बचता है वो सब कुछ पोलर रात में बह जाता है.
वो रात जिसकी सुबह नहीं होती-
सबसे खतरनाक होती है मरमंस्क की पोलर रात. जब मरमंस्क की लंबी गर्मियां खत्म होती है तो कड़ाके वाली ठंड आती है. मरमंस्क में साल के अधिकतर समय सर्दियां ही रहती हैं, लेकिन अक्टूबर के बाद ऐसा समय आता है जब सूरज उगता ही नहीं है. जरा सोचिए -35 डिग्री का तापमान और 40 दिनों तक सूरज ही नहीं. यही वजह है कि मरमंस्क को Sunless city (बिना सूरज वाला शहर) कहा जाता है.
मरमंस्क की रातों में यहां आस्मान में नॉर्थन लाइट्स दिखती हैं.
जरा सोचिए आप दरवाजे पर ताला लगा कर गए हों और वापस आएं तो देखें कि ताला जम गया है. यहां के लोग ताला खोलने के लिए ब्लो टॉर्च का इस्तेमाल करते हैं जिससे ताले को गर्म कर इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं. यहां खेती भी नहीं की जा सकती क्योंकि यहां सूरज कई दिनों तक नहीं उगेगा. यहां खाना पीना अधिकतर जानवरों पर निर्भर करता है. मरमंस्क में रशिया के सबसे बड़े समुद्री पोर्ट्स में से एक है जो वर्ल्ड वॉर 1 के समय से चला आ रहा है और इसका इस्तेमाल हमेशा किया जाता है.
ताला खोलने के लिए भी इतनी मशक्कत करनी होगी.
मरमंस्क में जब पोलर रात खत्म होती है तो लोग जश्न मनाते हैं. पिछले साल जब सूरज उगा था तो पहले दिन ये सिर्फ 34 मिनट के लिए रहा था. स्थानीय लोग पहाड़ पर चढ़कर सूरज उगने का जश्न मनाते हैं. 2 दिसंबर से 11 जनवरी के बीच यहां पोलर रात होती है और यहां सूरज की एक किरण भी नहीं दिखती. 11 जनवरी के बाद जब सूरज उगना शुरू होता है तो ये अपने पूरे शबाब में आते-आते कई दिन लगा देता है और रात का अंधेरा कभी भी हो सकता है जैसे एक दिन अगर सूरज 34 मिनट के लिए उगा तो दूसरे दिन 50 मिनट के लिए और ऐसा करते-करते पूरा दिन निकलता है और फिर शुरू होता है मई में पोलर दिन.
सूरज को उगते हुए देखते मरमंस्क के स्थानीय निवासी
सूर्य का न निकलना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है जहां लोगों को विटामिन डी और अल्ट्रा वॉयलट किरणों की कमी के कारण स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याएं होने लगती हैं.
यहां पोलर रातों में आसमान में नॉर्थन लाइट्स (उत्तरीय रौशनी) दिखती है और इसी को थोड़ा बेहतर माना जा सकता है. पर ये बहुत ठंडी होती हैं और शहर अपनी तैयारी में लग जाता है. यहां अंधेरे में ही लोग ऑफिस जाते हैं, बच्चे स्कूल जाते हैं, और त्योहार भी अंधेरे में ही मनाए जाते हैं.
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